-10,000 की आबादी पर केवल 4 डॉक्टर उपलब्ध
-कोरोना काल में रेमडेसिविर दवाओं के वितरण में भारी अनियमितता
Ranchi: प्रधान महालेखाकार इन्दु अग्रवाल ने वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2021-22 की अवधि के लिए स्वास्थ्य विभाग की ऑडिट रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में कई गंभीर अनियमितताओं और लापरवाहियों का खुलासा हुआ है. ऑडिट रिपोर्ट रिपोर्ट में बताया गया कि राज्य में राष्ट्रीय औसत के अनुसार प्रति 10,000 की आबादी पर 37 डॉक्टर होने चाहिए, लेकिन झारखंड में यह संख्या मात्र 4 है. डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी के कारण मरीजों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है.
राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है. डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी, दवाओं की अनुपलब्धता और संसाधनों की कमी के चलते मरीजों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं. राज्य सरकार अपने ही विजन रिपोर्ट को लागू करने में फेलियर रही है. कोडरमा और चाईबासा में नये मेडिकल कालेज सरकार तय समय पर बना नही पाया. कई भवन तैयार तो हो गये है लेकिन कार्मीयों के अभव में राज्य को लोगों को उसका लाभ नहीं मिल रहा है. सरकार की लापरवाही और कुप्रबंधन के कारण राज्य की जनता स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा: मरीजों को नहीं मिल रही उचित सुविधा
जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी अस्पतालों में ओपीडी, ऑपरेशन थिएटर और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है. ओपीडी में मरीजों को डॉक्टर औसतन 5 मिनट से भी कम समय देते हैं. पैथोलॉजिस्ट और रेडियोलॉजिस्ट की कमी के कारण सही जांच संभव नहीं हो पा रही. सरकारी अस्पतालों में भारी भीड़ और संसाधनों की कमी के चलते मरीज परेशान हैं.
कोरोना काल में 756 करोड़ के फंड में से केवल 32% खर्च
कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार से झारखंड को 756 करोड़ रुपये का आपातकालीन फंड मिला था. राज्य सरकार ने इसमें से 436 करोड़ रुपये जारी किए, लेकिन सिर्फ 137 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए. RT-PCR लैब जिलों में नहीं बन पाए, जिससे डॉक्टर बिना जांच रिपोर्ट देखे ही मरीजों का इलाज करते रहे.
स्वास्थ्य विभाग दवा खरीद में अनियमितता, स्टोरेज करता रहा है लापरवाही
सरकारी अस्पतालो में दवा की खरीद के लिए स्वास्थ्य विभाग में पूरी टीम है. 2016 से 2022 तक दवा खरीद के लिए 1395 करोड़ रुपये का बजट था, लेकिन सिर्फ 280 करोड़ रुपये की ही दवा खरीदी गई. 77% से 88% दवाएं खरीदी ही नहीं गईं, जिससे सरकारी अस्पतालों में दवाओं की भारी कमी बनी रही. 66% से 94% तक दवाएं स्वास्थ्य केंद्रों में अनुपलब्ध रहीं. खरीदी गई दवाओं को बाथरूम में स्टोर करने के मामले भी सामने आए.
राज्य के स्वास्थ्य केंद्रों में 61% पद खाली
राज्य में बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के दावे विभाग के मंत्री करते रहे हैं लेकिन झारखंड के स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों के 61% पद खाली हैं. खाली पदो को विना भारे बेहतर स्वास्थ्य सेवा राज्य क लोगो को नही मिल पा रहा है. ओपीडी और आईपीडी में जरूरी सेवाओं की कमी के कारण मरीजों को निजी अस्पतालों की ओर जाना पड़ता है.
कोरोना काल में रेमडेसिविर दवाओं के वितरण में भारी अनियमितता
झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोरोना काल में रेमडेसिविर दवाओं के वितरण में भारी अनियमितता सामने आई है. फरवरी 2022 तक राज्य के केंद्रीय भंडार, रांची में 1,64,761 रेमडेसिविर इंजेक्शनों का स्टॉक था, लेकिन ये इंजेक्शंस समय पर जरूरतमंद मरीजों तक नहीं पहुंच सके.
सरकारी अस्पतालों में केवल 15% इंजेक्शंस ही उपयोग में आए
कोरोना के दौरान रेमडेसिविर दवाओं का वितरण और निजी अस्पतालों को दी गई स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में झारखंड सरकार की व्यवस्था में भारी खामियां उजागर हुई हैं. लापरवाही और अनियमितता के कारण सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं, जिसके चलते मरीजों को आवश्यक उपचार समय पर नहीं मिल सका. सरकारी अस्पतालों को भेजे गए 53,205 इंजेक्शंस में से सिर्फ 15% ही उपयोग में आए, जबकि बाकी का स्टॉक पड़ा रहा. यह स्थिति गंभीर सवाल उठाती है कि जरूरतमंद मरीजों को ये दवाएं क्यों नहीं दी जा सकीं.
निजी आपूर्तिकर्ताओं को भी दी गई रेमडेसिविर इंजेक्शंस
झारखंड के राज्य औषधि नियंत्रक, रांची को 6,990 शीशियां रेमडेसिविर इंजेक्शंस निर्गत मिले थे. ये इंजेक्शंस बिना उचित प्रक्रिया के एमडी, एएनएम और राज्य औषधि नियंत्रक के टेलीफोनिक आदेश पर निजी आपूर्तिकर्ताओं को जारी किए गए. जबकि इसके लिए त्रहीमाम राज्य में मचा हुआ था.
निजी अस्पतालों को वेंटिलेटर किराए पर दिए गए, लेकिन किराया नहीं वसूल पाया गया
कोरोना महामारी के दौरान झारखंड ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन सोसाइटी (जेआरएचएमएस) और सीएस-सह-सीएमओ ने निजी अस्पतालों को वेंटिलेटर किराए पर दिए थे, लेकिन किराए के रूप में 69 लाख रुपये की सुरक्षा जमा राशि और 3.16 करोड़ रुपये का किराया सरकार वसूल नहीं कर पाई.
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