झारखंड की राजधानी रांची में बीते दो वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति लगातार बिगड़ती रही है. सरकारी और निजी अस्पतालों की लापरवाही, उपकरणों की खराबी और एंबुलेंस सेवाओं के संकट ने मरीजों की जान के लिए खतरा पैदा कर दी है. अदालत और सरकार के आदेशों के बावजूद स्थिति में सुधार की जगह हालात बिगड़ते जा रहे हैं.
सबसे बड़ी समस्या आपातकालीन सेवाओं की है. अक्टूबर 2024 में 108 एम्बुलेंस कर्मियों की हड़ताल से पूरे राज्य में करीब 500 एंबुलेंस चली ही नहीं. मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में भारी कठिनाई हुई. दिसंबर 2024 में एक रिपोर्ट ने खुलासा किया कि झारखंड की 543 एंबुलेंस में से 77 खराब थीं और 45 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया था.
इस वजह से रोजाना आने वाली 650–700 कॉल्स में से केवल 70–80 तक ही एंबुलेंस पहुंच पा रही थीं. इसके बाद मई 2025 में सरकार ने आदेश दिया कि 450 एंबुलेंस को 15 दिनों में फिर से सेवा में लाया जाए, लेकिन वास्तविक स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया.
जुलाई 2025 में एक बार फिर 108 एंबुलेंस चालकों की हड़ताल ने संकट खड़ा कर दिया. रांची के सदर अस्पताल के गेट पर एक महिला ने बच्चे को जन्म दिया. उसे समय पर एंबुलेंस ना मिलने की वजह से यह परिस्थिति आई. गंभीर मरीजों को ई-रिक्शा और निजी वाहनों में अस्पताल लाते हुए देखा जा सकता है. यह स्थिति झारखंड की आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था की सच्चाई को उजागर करती है.
झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स और सदर अस्पताल की हालत भी बहुत बेहतर नहीं है. अगस्त 2025 में रिम्स में 150 में से केवल 10 वेंटिलेटर काम कर रहे थे, जबकि सदर अस्पताल में 50 में से सिर्फ दो ही चालू थे. आईसीयू में गंभीर मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिला और परिजनों ने मजबूर होकर निजी अस्पतालों का रूख किया. एबीजी जैसी जांचों में पांच से आठ घंटे की देरी दर्ज की गई.
रक्त की आपूर्ति में भी गंभीर कमी सामने आई. जुलाई 2025 में थैलेसीमिया मरीजों और प्रसव पीड़ित महिलाओं को समय पर रक्त नहीं मिला. परिजनों को सोशल मीडिया और स्वयंसेवी संगठनों के जरिये दाताओं की तलाश करनी पड़ी.
बीते दिन रांची के सादर अस्पताल में बच्चे को संक्रमित खून चढ़ाने का मामला सामने आया, जिससे कई बच्चे एचआईवी संक्रिमत हो गए. आज भी राज्य के किसी भी ब्लड बैंक में AB- ब्लड उपलब्ध नहीं है. AB का सिर्फ एक ही यूनिट है.
सरकारी अस्पताल से उम्मीद छोड़ लोग बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पताल जाते हैं, पर निजी अस्पतालों की मनमानी ने हालात को और बिगाड़ कर रख दिया है.
अगस्त 2025 में रांची के एक निजी अस्पताल पर आरोप लगा कि मृत नवजात को तीन दिन तक वेंटिलेटर पर रखा गया और परिजनों से पैसे की मांग की गई.
इस मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और स्वास्थ्य विभाग ने जांच समिति गठित की. इस मामले में अभी तक कोई ठोस कारवाई नहीं की गई है.
इन घटनाओं को देखते हुए जुलाई 2025 में झारखंड उच्च न्यायालय ने रिम्स प्रशासन को चार सप्ताह के भीतर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया. अदालत ने कहा कि स्टाफ की कमी और उपकरणों की खराबी से मरीजों की जान जोखिम में है.
कुल मिलाकर पिछले दो वर्षों में रांची की स्वास्थ्य व्यवस्था ने कई बार आम मरीजों को निराश किया. एंबुलेंस सेवा की हड़ताल, वेंटिलेटर और उपकरणों की खराबी, रक्त की कमी और निजी अस्पतालों की मनमानी ये सब घटनाएँ बताती हैं कि राजधानी की स्वास्थ्य सेवाएं खुद आईसीयू में हैं और सुधार के लिए ठोस कदमों की सख्त जरूरत है.
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