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बिहार में उबाल, गुजरात में शांति!

बिहार बंद की सांकेतिक तस्वीर.

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श्रीनिवास


मकसद ‘वोट’ है! मौजूदा ‘गाली प्रकरण’ में एक बात समझ से परे है कि मोदी जी के आपमान का मुद्दा बिहार और बिहारियों के लिए इतना अहम क्यों और कैसे हो गया? स्वतःस्फूर्त हुआ या एक योजना के तहत ऐसा बताने का प्रयास हुआ और हो रहा है?

 

मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए उनकी मां का अपमान बेशक अधिक गंभीर लगता है, लेकिन क्या और किसी की मां को गाली का कोई महत्व नहीं!  मोदी जी गुजरात के हैं, उनकी माताजी गुजराती थीं, मोदी जी 13 वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, आज भी वहां सर्वाधिक लोकप्रिय हैं. तो मोदी जी या उनकी मां के अपमान के खिलाफ स्वतःस्फूर्त आक्रोश तो गुजरात में दिखना चाहिए था, जो कहीं नहीं दिखा! कोई जुलूस नहीं, कोई धरना-प्रदर्शन नहीं! क्या आम गुजराती इसे गंभीर मुद्दा नहीं मानता? मोदी जी बनारस (उत्तर प्रदेश) से सांसद है, पर वहां भी छिटपुट प्रदर्शनों के अलावा ऐसा कुछ नहीं दिखा!

 

कहा जा सकता है कि वह गालीकांड बिहार में हुआ था, इसलिए बिहार में ऐसा रिएक्शन  हुआ! यदि ऐसी घटना मध्यप्रदेश में या हरियाणा में हो जाती तो? ऐसे सनकी/विक्षिप्त और शैतान तो कहीं भी ऐसी हरकत कर सकते हैं. तो क्या उन राज्यों में भी बंद बुलाया जाता?

 

इस आक्रोश प्रदर्शन का रिश्ता कहीं बिहार में आसन्न विधानसभा चुनाव से तो नहीं? क्या भाजपा के पास बिहार फतह के लिए कोई मुद्दा नहीं है? तो क्या यह भी मान लिया जाये कि देश के प्रधानमंत्री ने अपनी दिवंगत मां के कथित अपमान को चुनावी चौपड़ के दांव पर लगा लिया! यह सोचना भी बुरा लग रहा है, मगर और कोई कारण समझ में तो नहीं आ रहा

 

फिलहाल इस बात को रहने देते हैं कि भाजपा के कतिपय नेता और खुद मोदी जी महिलाओं के लिए कैसी भाषा का प्रयोग करते रहे हैं, वह सब सर्वविदित है! हालांकि मोदी जी के मुताबिक विपक्ष के लोग उनको रोज ढाई से तीन किलो गाली देते हैं! लेकिन उनके ही अनुसार विधाता ने उनके शरीर की ऐसी संरचना कर दी है कि सारी गालियां प्रोसेस होकर ऊर्जा में बदल जाती हैं! लेकिन लगता है, फिलहाल उनके शरीर की उस विलक्षण तकनीक में कुछ लोचा हो गया है, जिस कारण उन्हें बिहारियों को ललकारना पड़ा- मेरी मां के अपमान का बदला आप लेना! कैसे, खुल कर यह तो नहीं बताया, लेकिन लोग आशय समझ गये- चुनाव में ‘कमल’ छाप पर वोट दे देना.

 

तो क्या सचमुच बिहारियों ने ऐसा तय कर लिया है? सच तो यह है कि चार सितंबर का बिहार बंद भाजपा ने बुलाया था, एनडीए ने नहीं. बंद के जो विजुअल दिख रहे हैं, उनमें भाजपा के अलावा उसके अन्य संगठनों के कार्यकर्ता नहीं दिख रहे, किसी और का झंडा भी नहीं! यानी गुस्सा सिर्फ भाजपाइयों को था और है!

 

इस बीच बिहार के एक विधायक गोपाल मण्डल (जदयू) का एक बयान सामने आया है, जिसमें ‘माननीय’ कह रहे हैं कि हमारे यहां तो इसे (मादर... बेन..) गाली माना ही नहीं जाता. यही हमारी आम बोलचाल की भाषा है! बिहारी मूल का होने के नाते कह सकता हूं कि विधायक जी ने बहुत गलत भी नहीं कहा.

 

मेरी समझ से चुनाव का नतीजा जो भी हो, मगर भाजपा/एनडीए को सफलता मिलेगी भी, तो उसके कारण अन्य होंगे, मोदी जी की मां को गाली नहीं! शायद ‘वोट चोरी’ का शोर भी नहीं! या तो नीतीश सरकार के अच्छे-बुरे काम पर, या संभवतः लालू प्रसाद के पक्ष-विपक्ष में गोलबंदी के आधार पर. यानी जातीय समीकरण मायने रखेगा.  

 

एनडीए के लोग, खुद नीतीश कुमार जिस तरह लोगों को ‘जंगल राज’ की वापसी का डर दिखा रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि उनको  ‘सुशासन’ के नाम पर वोट मिलने का बहुत भरोसा नहीं है!

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