Kaushal Anand
Ranchi: झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है. इसके साथ ही आचार संहिता लागू हो जाएगी. पार्टियां भी प्रत्याशियों की घोषणा करना शुरू कर देंगी. भाजपा ने प्रत्याशियों का चयन लगभग कर लिया है. सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय है, लेकिन इंडी गंठबंधन में अभी भी सीट शेयरिंग को लेकर सस्पेंस है. सीट शेयरिंग के साथ ही साथ प्रत्याशियों की घोषणा होते ही वैसे नेता, जो टिकट की आस में बैठे थे, वे दूसरे दलों में संभावना तलाशेंगे. कुछ बगावत कर चुनावी समर में कूदेंगे, तो कुछ दूसरी पार्टियों से टिकट का जुगाड़ करेंगे, वैसे झामुमो, भाजपा, कांग्रेस, आजसू सहित अन्य दलों के कई नेता जयराम महतो से भी लगातार संपर्क बनाए हुए हैं और जैसे ही उनके गठबंधन की सीटों की घोषणा होगी और टिकट मिलने की किसी तरह की उम्मीद न होगी, तो वे जयराम से भी हाथ मिला सकते हैं.
भाजपा एक साथ 25-30 प्रत्याशियों की सूची जारी करने की तैयारी में
मिली जानकारी के अनुसार, भाजपा ने अपने 25-30 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करने की तैयारी कर ली है. यह भी जानकारी छन कर आ रही है कि भाजपा के कई सीटिंग विधायकों का टिकट कट सकता है. हो सकता है, डेढ़ से दो दर्जन सीटिंग विधायकों का पत्ता साफ हो सकता है. कुछ की उम्र सीमा की वजह से, तो कुछ की क्षेत्र में पकड़ न होने की वजह से छुट्टी की जा सकती है. लेकिन भाजपा जैसे ही प्रत्याशियों की घोषणा करेगी, दूसरी पार्टियों में भी हलचल होगी, यह तो तय है, लेकिन यह हलचल तूफान का भी रूप ले सकती है.
चर्चा यह भी कि कई दिग्गज बदल सकते हैं पाला
भाजपा, झामुमो, कांग्रेस और आजसू की बात करें, तो इन पार्टियों के कई बड़े नेता सीट शेयरिंग के चक्कर में फंस सकते हैं. या फिर पार्टियां वैसे नेताओं को किनारे कर सकती हैं, जिनका परफॉरमेंस ठीक नहीं रहा है. ऐसा खासकर भाजपा में ही हो सकता है. ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि भाजपा की पहली सूची जारी होते ही कुछ का पत्ता साफ होगा, तो भगदड़ भी मच सकती है. कोयलांचल की एक प्रमुख सीट से भाजपा प्रत्याशी बदले जाने की चर्चा राजनीतिक गलियारे में है. लेकिन उनके बारे में यह भी बताया जा रहा है कि टिकट कटते ही वे तत्काल पाला बदल सकते हैं. ऐसे ही कांग्रेस के भी दो-तीन नाम की चर्चा है, जिन्होंने पाला बदलने की तैयारी कर रखी है. संथाल, कोयलांचल और उत्तरी छोटनागपुर से भी कांग्रेस के एक-एक सीटिंग विधायकों के पाला बदलने की चर्चा हो रही है. वैसे यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि वे पाला बदलेंगे ही, लेकिन इन माननीयों के हावभाव से तो ऐसा ही लग रहा है कि ये कभी भी घोलटनिया मार सकते हैं.
डरे हुए तीर-धनुष के धनुर्धर, कहीं शंटिंग यार्ड में न डाल दिए जाएं
दक्षिणी छोटानागपुर के जनजातीय आरक्षित सीट के एक सीटिंग विधायक की बार-बार चर्चा होती है कि वे दूसरी पार्टी में शामिल हो सकते हैं. लेकिन उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में बागी प्रत्याशी बनकर अपनी ताकत आंक ली है. उन्हें पता चल गया है कि यदि पार्टी ने दुत्कार दिया, तो वे कहीं के न रहेंगे. विधायक जी डरे हुए भी हैं. उन्होंने पार्टी को ऐन जरूरत के मौके पर बहुत ही नाच नचाया है, तो अब कहीं पार्टी ने उन्हें शंटिंग यार्ड में डाल दिया, तो वे कहीं के न रहेंगे. तो ये भी इधर-उधर ताक-झांक कर रहे हैं. ये भी हो सकता है कि ये जयराम के साथ चले जाएं या कमल फूल थाम लें. वैसे बताया जाता है कि कमल फूल वाले नेताजी भी इनको ट्रैप करने की कोशिश में लगे हैं.
गठबंधन की घोषणा होते ही आजसू में सबसे अधिक बढ़ेगी नाराजगी
सीट शेयरिंग की घोषणा होते ही सबसे ज्यादा बवंडर तो आजसू पार्टी में ही उठेगा. वैसे भी आजसू पर पति-पत्नी, मौसा, ससुर की पार्टी होने का ठप्पा लग चुका है. पार्टी के जिन नेताओं ने पांच साल तक बतौर प्रभारी और संभावित प्रत्याशी जिन विधानसभा क्षेत्रों में मेहनत की है, वहीं की सीट यदि उनकी पार्टी के खाते में न आयी, तो भागा-भागी मचेगी ही. आजसू पार्टी में प्रभारी का मतलब सीधा है कि वह संबंधित विधानसभा का टिकट और चुनाव लड़ने का प्रबल दावेदार है. झारखंड गठन से लेकर अब तक (केवल 2019 को छोड़कर) पार्टी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ी. भाजपा उसे पांच से सात सीट देती रही है. लेकिन इन सीटों में दो से तीन सीट पर सुदेश महतो के परिवार के लोग ही लड़ते रहे हैं, बाकी दो से तीन सीट पर ही अन्य नेता चुनाव लड़ पाते हैं. अब पार्टी में चर्चा होने लगी है कि गठबंधन के तहत कम सीट पर ही चुनाव लड़ना है, तो क्या जिन नेताओं ने फील्ड में पांच साल तक पसीना बहाया, पैसे खर्च किए, वे सिर्फ झंडा ही ढोते रह जाएंगे. परिवारवाद का ठप्पा और आजसू पार्टी के शीर्ष नेता की दोहरी नीति के कारण पार्टी का ग्राफ तेजी से नीचे गिर रहा है.
आजसू सुप्रीमो की प्रतिष्ठा ही दांव पर, लग सकता है झटके पे झटका
कभी पांच विधायक जिताने वाली पार्टी दो तक भी सिमट कर रह चुकी है. पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो खुद ही सिल्ली सीट से दो बार हार चुके हैं. उनकी प्रतिष्ठा तो खुद ही दांव पर लगी है. सुदेश की हालत यह रहती है कि वे दूसरी सीटों पर खड़े प्रत्याशियों के लिए ढंग से प्रचार तक नहीं कर पाते हैं. अपनी ही सिल्ली सीट में उलझ कर रह जाया करते हैं या फिर भाजपा के भरोसे वैतरणी पार करने की जुगत भिड़ाए रहते हैं. इस बार सुदेश के सामने और बड़ी चुनौती है. कुरमी समाज का सबसे बड़ा नेता होने का दंभ भरनेवाले सुदेश को अपने ही समाज के जयराम महतो से ज्यादा खतरा हो गया है. सुदेश भले ही पार्टी के लिए सात सीटों का जुगाड़ कर लें, लेकिन कितनी सीटों पर परचम लहरा पाएंगे और अपने कैडर को एकजुट रख पाएंगे. कहा नहीं जा सकता. क्योंकि आजसू पार्टी से नाराज नेताओं-कार्यकर्ताओं की जयराम से निकटता बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में आजसू पार्टी को चुनाव आते-आते धक्के पे धक्का, झटके पे झटका लगना तय बताया जा रहा है.
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