Basant Munda
Ranchi : सरना सदान मूलवासी मंच के अध्यक्ष सूरज टोप्पो ने कहा कि आज सरना झंडा और प्रतीक चिन्हों को बचाने की जरूरत है.यह बात रविवार को करमटोली केंद्रीय धुमकुड़िया भवन में आदिवासी सरना धर्म संरक्षण समिति के तत्वावधान में विभिन्न आदिवासी संगठनों की बैठक के दौरान कही. उन्होंने कहा कि सरना झंडा का दुरूपयोग हो रहा है. प्रत्येक राजनीतिक कार्यक्रमों में सरना झंडा लहराया जा रहा है. कलशा और रंपा-चंपा जैसे धार्मिक प्रतीक चिह्न का दुरुपयोग हो रहा है. नेताओं औऱ अधिकारियों के स्वागत सम्मान में आदिवासी महिलाओं को नचाना गलत है.
बुद्धिजीवि लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक हैं. आदिवासियों पर सामाजिक औऱ राजनिति रूप से हमला किया जा रहा है. इसे पहचानने की जरूरत है. आज समाज चौतरफा संकटों से घिरा हुआ है. जल,जंगल और जमीन, सम्मान पर चोट सदियों से जारी है. हमारी प्रकृति में आस्था, विश्वास, पहचान और धर्म सब पर चोट किया जा रहा है.1871 से 1951 तक जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था. इसे 1961 में हटा दिया गया. कांके रोड सरना समिति के अध्यक्ष डब्लू मुंडा ने कहा कि एशिया महाद्वीप में आदिवासियों का संख्या सबसे अधिक है. भारत में इनकी संख्या दूसरे नम्बर पर है. इसके बाद भी आदिवासियों को अलग धर्मकॉलम नहीं दिया जा रहा है. लेकिन आज नेताओं के कार्यक्रम में सरना झंडा का उपयोग हो रहा है. जिसे कभी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
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पांच प्रस्ताव किये गये पारित
-सामुदायिक,सार्वजनिक, जमीन अतिक्रमण और सरना झंडा पर रोक लगाया जाए
-राजनीतिक पार्टियों के कार्यक्रम और अधिकारियों के स्वागत में रंपा-चंपा, कलशा के प्रयोग पर पाबंदी लगायी जाए.
-आदिवासियों के धार्मिक जमीन को सुरक्षित किया जाए.
– सरना झंडा को संरक्षित और सम्मान दिलाने के लिए जन जागरण अभियान शुरू होगा.
मौके पर ये रहे मौजूद
मौके पर अमित मुण्डा,जगलाल पाहन,बबलू मुण्डा,फुलचन्द तिर्की,बलकू उराँव,रवि तिग्गा,चंम्पा कुजूर,तानसेन गाड़ी,सोनू खलखो,दिनकर कच्छप,दरिद्र चंद्र पहान,साधुलाल मुंडा, मोहन तिर्की,साधुलाल इत्यादि मौजूद थे.
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