Sanjay Kumar Singh
वैसे तो टेलीविजन चैनलों की बहस में भाजपा प्रवक्ताओं से लड़ने का कोई मतलब नहीं है और इसका सबसे बड़ा कारण होता है एंकर का पक्षपाती होना.
फिर भी बहुत सारे लोग इन बहसों में जाते हैं और प्रवक्ताओं की तर्कसंगत ढंग से खबर लेते हैं, वीडियो भी पोस्ट करते हैं.
आलोक शर्मा इन दिनों फॉर्म में हैं. आज तक पर एक चर्चा में (मैंने क्लिप ही देखा है, टीवी नहीं देखता) आलोक जी ने मुद्दे पर बात की तो एंकर भाजपा प्रवक्ता को जवाब देने के लिए तैयार करने लगीं.
बात हो रही थी डॉलर की कीमत की और प्रवक्ता पूछने लगे, महंगाई दर कितनी है. बार-बार पूछा. आलोक इनके घेरे में नहीं आये पर इनकी कोशिश तो देखिये.
दरअसल, खबर है कि खुद्रा मुद्रास्फीति की दर सात महीने में सबसे कम है और फरवरी 2025 में कंज्यूमर प्राइस इनफ्लेशन घट कर 3.6 रह गया है.
विकास (ग्रोथ) लगातार चार महीने से कम हो रहा है तो मुद्रास्फीति आरबीआई के लक्ष्य 4 प्रतिशत से कम है. अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इसकी वजह से आरबीआई को अगले महीने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की और कमी करनी पड़ेगी.
अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छी बात नहीं है. मोटे तौर पर मांग न होने से कीमत कम होना और डीजल-पेट्रोल पर टैक्स ज्यादा होने से माल ढुलाई महंगी होने के कारण कीमत बढ़ने में अंतर है लेकिन टेलीविजन की बहस में मुद्रास्फीति कम होने का भी श्रेय लेने की कोशिश की जा रही है.
सरकार विरोधी ऐसी खबरें अखबारों में नहीं के बराबर छपती हैं. 13 मार्च को द हिन्दू की लीड का शीर्षक था, खाद्य पदार्थों की कीमतें कम होने से खुदरा मुद्रास्फीति सात महीने में सबसे कम.
ऊपर की जानकारी इसी खबर के उपशीर्षक में है लेकिन शीर्षक मुद्रास्फीति कम होने की है तो भुनाने की कोशिश कर ली गई और भुनाई ही गई होगी.
आलोक शर्मा भाजपा प्रवक्ता के झांसे में आ जाते तो इस खबर का हवाला दिया जा सकता था (दिया ही गया है)। टेलीविजन देखने वालों को पता होगा, कि अखबार लहराये गये या नहीं. यही है हेडलाइन मैनेजमेंट.
डिस्क्लेमरः लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. जनसत्ता अखबार में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके हैं और यह टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.