युवक की पिटाई मामले में एक गिरफ्तार
1845 को पहली बार रांची आए थे चार जर्मन मिशनरी
गोस्सनर एवं जेलिकल लूथेरन (जीईएल) कलीसिया की स्थापना गोस्सनर मिशन के संस्थापक फादर योहान्नेस इवंजेलिस्ता गोस्सनर ने किया था. वर्ष 1844 में उन्होंने जर्मनी के बर्लिन शहर से चार मिशनरियों को कलीसिया बर्मा (म्यांमार) सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के लिए भेजा था. ये चार मिशनरी इमिल शत्स, फ्रेड्रिक वात्स, औगुस्त ब्रान्त और ई थेयोदोर यानके थे. पर कुछ कारण से वे वहां न जाकर कलकत्ता में बाईबिल सोसाइटी पहुंचे और इसके बाद 2 नवम्बर 1845 में ये मिश्नरी रांची पहुंचे. यहां उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करने के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया. इसे भी पढ़ें-ज्ञान">https://lagatar.in/exhibition-on-christmas-at-gyan-sindhu-academy-nirsa/">ज्ञानसिंधु एकाडमी निरसा में क्रिसमस पर प्रदर्शनी
छोटानागपुर के सबसे पुराने चर्च में पहली बार क्रिसमस
मिशन के इस कार्य में इन चारों मिस्नरियों को काफी सफलता मिली. धीरे-धीरे कलीसिया का विस्तार होने लगा. लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए एक बड़े गिरजाघर की जरुरत महसूस की गयी. जिसके बाद 18 नवंबर 1851 को जीईएल कंपाउंड स्थित छोटानागपुर के सबसे पुराने गिरजाघर, ख्रीस्त गिरजा की नींव रखी गयी. इससे बनाने में लगभग 4 वर्षों का समय लगा और 23 दिसंबर 1855 में यह पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया. 24 दिसंबर 1855 को चर्च का उद्घाटन किया गया. 24 दिसंबर की रात को ही यीशु का जन्म पर्व भी मनाया जाता है और इसी रात चर्च में पहला क्रिसमस भी बड़े धूम-धाम व हर्षों-उल्लास के साथ मनाया गया. चर्च के पहले पुरोहितों में जर्मन मिशनरी ही शामिल थे. इसे भी पढ़ें-हैप्पी">https://lagatar.in/happy-new-year-mathura-will-go-to-birhor-basti-raj-vindhyachal/">हैप्पीन्यू ईयर : मथुरा जाएंगे बिरहोर बस्ती, राज विंध्याचल
2019 में मनाया गया चर्च का 100 वां जुबली समारोह
वर्ष 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के समय जब जर्मन मिशनरियों को लौटना पड़ा. इसके बाद इसे चलाने की जिम्मेदारी छोटानागपुर के बिशप डॉ. फोस्स वेस्टकॉट को दिया गया. उसी दौरान 10 जुलाई 1919 में गोस्सनर कलीसिया को ऑटोनोमस घोषित किया गय़ा. बीते 10 जुलाई 2019 में ही जीईएल कलीसिया ने 100 वर्ष पूरे किए. इस जुबली सेलिब्रेशन को काफी धूम-धाम से मनाया गया जिसमें न केवल देशों से जीईएल चर्च के प्रतिनिधि बल्कि जर्मनी से भी कई बड़े बिशप और पुरोहित शामिल हुए थे. इसे भी पढ़ें-88">https://lagatar.in/88-years-ago-in-1932-a-landlord-of-pakur-was-murdered-in-kolkata-with-a-biological-weapon/">88साल पहले 1932 में पाकुड़ के एक जमींदार की कोलकाता में हुई थी जैविक हथियार से हत्या

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