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लोकतंत्र  को मजबूत करने  के लिए गहरी नींव खोदनी पड़ेगी

Nishikant Thakur

 

पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी विख्यात पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखते हैं कि राजनीति और चुनाव की रोजमर्रा की बातें ऐसी है , जिनमें हम हर जरा-जरा से मामलों पर उत्तेजित हो जाते हैं. लेकिन अगर हम हिंदुस्तान के भविष्य की इमारत तैयार करना चाहते हैं, जो मजबूत और खूबसूरत हो, तो हमें गहरी नींव खोदनी पड़ेगी,  क्योंकि आदमी इच्छा के मुताबिक काम कर सकता है.

 

 लेकिन इच्छा के मुताबिक इच्छा नहीं कर सकता.  ऐसी बातें आज इसलिए की जा रही है ; क्योंकि आगामी नंबर में होने जा रहे बिहार विधान सभा चुनाव है और सत्तापक्ष-विपक्ष  इस बात पर अड़ा है वे जैसा चाहें इसी प्रकार से चुनाव कराएं जाएं ताकि मुकाबला एक दूसरे के पक्ष-विपक्ष में बराबर का हो, जनता जिसके पक्ष मे मतदान करे सरकार उसी की बने.

 

मुद्दा इतना गरम और विवादित हो गया कि अपनी-अपनी भागीदारी साबित करने के लिए सत्तारूढ़ और विपक्षी , स्वयं सेवी संस्थाओं को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. चूंकि मामले पर निर्णय ,28 जुलाई को दिया जाना है.इसलिए इस पर सामान्य जनता को कोई निर्णय देने का औचित्य नहीं रहता, पर चूंकि प्रारंभिक दौर में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान में जो कहा वह यह कि वोटर लिस्ट में आधार पर भी विचार हो. जिस पर चुनाव आयोग ने कहा कि बिना सुनवाई के किसी को वोटर लिस्ट से बाहर नहीं करेंगे.

 


आजादी के बाद मतदान का अधिकार प्रत्येक भारतीय नागरिक को दिया गया जो सामान्य रूप से चुनाव में भागीदारी करते रहे. पिछले दशक में सरकार ने मतदान की जो आयु 21 वर्ष थी उसे कम करके 18 वर्ष कर दिया था. युवाओं ने मतदान के अपने अधिकार को पाकर मतदान किया और उसके बाद लोकसभा विधान सभाओं के माध्यम से सरकारें बनती रही, लेकिन अब बिहार चुनाव के मद्देनजर यह बात उठ खड़ी क्यों  हो गई है कि मतदाताओं की लिस्ट में सुधार आवश्यक है. 

 

इसलिए चुनाव आयोग द्वारा एक सूची घर घर पहुंचाकर उन्हें भरने की अपील की जा रही हैं जिन्हें स्थानीय निवासी गलत और अमान्य कर रहे हैं. मतदाताओं का  कहना है कि अब तक उनकेमतदान से सरकारें बनती आई हैं अब ऐसी क्या बात हो  गई जो  उनके आधार कार्ड तक को नहीं माना जा रहा है न ही राशन कार्ड न ही वोटर कार्ड  मान्य हो रहा है. ऐसा  इस चुनाव में ही क्यों ? इन्हीं मुद्दों के लेकर कई स्वयं सेवी संस्थाओं और विपक्षी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा  है कि  इतना दुरूह मतदान के अधिकार को क्यों किया जा रहा है ? मामला चूंकि निर्णय के लिए 28 जुलाई  निर्धारित है , तभी यह कहा जा सकता है कि आखिर क्या होगा. 

 


जाहिरतौर पर, अब सत्तापक्ष और  विपक्ष को एक मुद्दा मिल गया है कि वे समाज तक अपनी बात अपने तरह से पहुंचाए . इसे ही नजर में रखकर पिछले दिनों पटना में विपक्षी दलों द्वारा रैली करके चुनाव आयोग को घेरने का प्रयास किया. इस रैली में सांसद तथा सदन में विपक्ष के नेता राहुल गांधी , तेजस्वी यादव सहित बड़े नेताओं ने भाग लिया . जिसमें राहुल गांधी ने कहा था कि  राजग सरकार 2024 में महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में जो धांधली की वही बिहार में करके सरकार बनाना चाहती है.

 

विपक्ष ने कहा विशेष सघन पुनरीक्षण के माध्यम से एक बड़ी आबादी को मतदान के अधिकार से वंचित करना चाहती है, इसलिए वह सड़क पर है. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद पांच महीने में ही बड़ी संख्या में लोगों का नाम मतदान सूची में शामिल किए जाने से बदली राजनीतिक परिपेक्ष्य में बिहार में कराए जा रहें पुनरीक्षण के खिलाफ कानूनी लड़ाई के साथ-साथ जनमत तैयार करना ही बेहद अहम है. इस मद्देनजर विपक्ष एकजुट है.

 


वहीं सत्तारूढ़ दल की ओर से ओर से भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और संसद राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि  पुनरीक्षित सूची यह सुनिश्चित करने के लिए है कि केवल योग्य मतदाता ही अपने मताधिकार का प्रयोग करे. विपक्षी दलों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था , लेकिन कोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई है , जो इन विपक्षी राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा झटका है जिन्होंने यह अभियान शुरू किया था. श्री रूडी ने यह भी कहा कि विपक्षी दल अब डर गए हैं और उन्हें आगामी बिहार के चुनाव में अपनी हार का आभास होने लगा है. मतदाता सूची में संशोधन एक प्रक्रिया है इसलिए चुनाव आयोग पर आरोप लगाना अनुचित है. वैसे वैद्य मतदाताओं को जोड़ा जाना चाहिए जो लोग बिहार के मतदाता होने के योग्य नहीं है, उन्हें सूची से हटाया जाना चाहिए. 

 

वहीं भाजपा के नेता अमित मालवीय ने कहा कि मुस्लिम बहुल जिलों में आधार कार्ड सौ प्रतिशत से ज्यादा हो गए हैं, इसमें जरूर कुछ गड़बड़ है. चुनाव आयोग का दावा है कि बिहार की वोटर  लिस्ट में  विदेशी  घुसपैठिए  हैं.  अब यह समझना जरूरी हो गया है कि भाजपा नेताओं का यह कहना समझ से बाहर हो गया है कि किसी "योग्य" मतदाताओं से उनका अर्थ क्या है . क्या उनका कहना यह है कि जो मतदाताओं की तथाकथित संख्या बढ़ी है वह विदेशी घुसपैठिए तो नहीं है? 

 

यदि भाजपा का यही आशय और कहना है कि कुछ घुसपैठिए हैं तो फिर प्रश्न  यह उठता हैं कि ऐसे घुसपैठियों भारतवर्ष के अंदर घुसे कैसे और इतने वर्षों से यहां कैसे रह रहे हैं अबतक, मतदान कैसे करते आए हैं? यदि अब तक अयोग्य अर्थात फर्जी मतदाताओं ने बिहार में लोकसभा और विधान  में  मतदान किया है वे सभी फर्जी थे, तेजस्वी यादव  कहते हैं कि  फर्जी नामों के लिए सरकार ही जिम्मेदार है.तो फिर घूमकर यही बात सामने आती है किे जो वर्षों से अब तक फर्जी मतदाताओं द्वारा सरकार बनती आई है वह फर्जी और अयोग्य है? इस प्रश्न का उत्तर तो सत्तारूढ़ दल को देना ही चाहिए, वैसे अब निर्णय सुप्रीम कोर्ट को ही लेना है.

 


यह बात समझ से बाहर है कि देश के नेताओं का उद्देश्य क्या है . क्या उनकी यही सोच है कि देश को खंड खंड में बांटकर उस पर निरंकुश शासन करते रहें ? वैसे चुनाव आयोग इस बात के लिए अपने संवैधानिक अधिकारों के द्वारा ही अड़ा हुआ है कि वह मतदाता सूची में शुद्धिकरण करके उसे लागू करके संविधान प्रदत्त प्रत्येक व्यक्ति को उसके अधिकार दिलाएं जाएं अथवा सत्तारूढ़ का सहयोग करके उन्हें सत्ता में फिर से पुनर्स्थापित किया जाए.
 वैसे विपक्ष ने यही तो  आरोप लगाया  है कि चुनाव आयोग एक तरफा सत्तारूढ़ का पक्षपात कर रहा है . सच या झूठ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर ही साबित होगा, क्योंकि बड़ी-बड़ी दलील दोनों पक्षों के वकीलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट  में दिए जा चुके हैं.


 
बिहार से जुड़े कई वरिष्ठ पत्रकारों, राजनीतिक विश्लेषकों , वरिष्ठ राजनेताओं  और ग्रामीण प्रवेश में रह रहे मतदाताओं ने बताया कि सरकार का दावा है कि उस फार्म को भरने  97 प्रतिशत मतदाताओं को  दिए जा चुके हैं . ग्रामीणों ने बताया कि ऐसा  कोई फॉर्म उनके पास तक अभी  नहीं पहुंचा है, हां फॉर्म भरने लिए कई गांवों में दिए  भी जा चुके है.अब देखना यह है कि चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त अधिकारी सचमुच कितने प्रतिशत मतदाताओं तक पहुंचाए जा रहे हैं  और मतदाताओं की अंतिम  सूची में जितने नाम जोड़े गए हैं या कितने मतदाताओं के नाम काटे जा चुके तथा  सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कहां तक पालन किया गया है

 

जब तक चुनाव आयोग द्वारा अंतिम सूची जारी नहीं की जाती तबतक कुछ कहना और लिखना उचित नहीं है; क्योंकि हो सकता है चुनाव आयोग द्वारा यह सूची लोकतंत्र की दिवाल को मजबूत बनाने के लिए गहरी नींव के रूप में तो नहीं खुदाई की  जा रही है. 

 

 डिस्क्लेमर : लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.

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