Ranchi: आदिवासी प्रतिनिधिसभा ने आदिवासी समुदाय के 32 मुद्दों पर चर्चा किया. इसके साथ ही कई प्रस्ताव पारित किए गए. यह सभा आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद्, दरबार और आदिवासी समन्वय समिति द्वारा संयुक्त रूप से विधायक क्लब, पुराना विधानसभा में आयोजित की गई. इस आयोजन में आदिवासी समाज के अधिकारों, परंपराओं और संवैधानिक हनन को लेकर तीखी बहस हुई.
आदिवासी विधानसभा की जरूरत क्यों?
सभा की अध्यक्षता करते हुए बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष देवेंद्र चंपिया ने कहा, यह आदिवासी समुदायों की असली विधानसभा है. ब्रिटिश शासनकाल में भी आदिवासी क्षेत्रों को नॉन-रेगुलेशन एरिया घोषित किया गया था, लेकिन आज झारखंड बनने के 24 साल बाद भी आदिवासी अधिकार सुरक्षित नहीं है.
सभा में सत्तापक्ष के नेता और पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने कहा, हम भारत के मूल निवासी हैं, लेकिन भारत सरकार संयुक्त राष्ट्र में आदिवासी पहचान को नकार चुकी है. जबकि सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि आदिवासी ही इस देश के असली मालिक हैं. 24 सालों में झारखंड की मूल भावना ‘अबुआ दिसुम, अबुआ राईज (हमारा देश, हमारा शासन) पूरी नहीं हुई, इसलिए आज हमें अपनी अलग ‘आदिवासी विधानसभा’ चलाने की जरूरत पड़ रही है.
संविधान के खिलाफ हो रहा है शासन
प्रतिपक्ष के नेता और पूर्व विधायक लोबिन हेमरोम ने झारखंड में आदिवासी नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा, अब तक बने आदिवासी मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक सिर्फ नाम के आदिवासी हैं, वे अपने समाज के लिए कोई ठोस काम नहीं कर रहे. राज्य में जेपीआरए 2001 और नगरपालिका कानून 2011 को जबरन लागू किया जा रहा है, जबकि यहां केवल पेसा अधिनियम 1996 ही मान्य होना चाहिए. आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद् के अध्यक्ष ग्लैडसन डुंगडुंग ने भी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा, झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में असंवैधानिक रूप से ‘झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001और ‘नगरपालिका अधिनियम 2011 लागू कर दिया गया है, जबकि संवैधानिक रूप से यहां ‘पेसा कानून 1996’ लागू होना चाहिए. यह आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ा धोखा है.
प्रशासन पर गंभीर आरोप
सभा में आदिवासी समुदाय के जमीनी मुद्दों पर भी चर्चा हुई. पड़हा राजा सनिका भेंगरा ने कहा, अगर सरकार हमारी बात नहीं सुनेगी, तो हमें दोबारा उलगुलान (क्रांति) करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. सनिचारय संगा ने आरोप लगाया कि सीएनटी एक्ट होने के बावजूद हमारी जमीन छीनी जा रही है. प्रशासनिक अधिकारी, एसपी, डीएसपी और थानेदार जमीन दलालों को संरक्षण दे रहे हैं. थानों में आदिवासियों की शिकायतें तक दर्ज नहीं हो रही है. जनार्दन मानकी ने लैंड बैंक नीति की आलोचना करते हुए कहा, लैंड बैंक के जरिए हमारी जमीन पूंजीपतियों को दी जा रही है. इसे तत्काल निरस्त करने की जरूरत है. वहीं सुषमा बिरूली ने नगरपालिका कानून को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह कानून आदिवासियों की जमीन छीनने की साजिश का हिस्सा है.
आदिवासी अस्मिता पर मंडरा रहा संकट
सभा में शामिल एडवोकेट सुरेश सोय ने कहा, अनुसूचित क्षेत्रों में सरकार का कोई अधिकार नहीं है, फिर भी यहां असंवैधानिक प्रशासन चलाया जा रहा है. हमारी जमीनें छीनी जा रही हैं. हमें कानूनी संरक्षण नहीं मिल रहा. दामू मुंडा ने आदिवासी अस्तित्व के मूल में जमीन को सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा, अगर हमारी जमीनें छीनी जाती रहीं, तो हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. इस ऐतिहासिक आदिवासी प्रतिनिधिसभा में आदिवासी समन्वय समिति के संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा ने 32 एजेंडा रखे. उन्होंने कहा, झारखंड विधानसभा एक महीने से चल रही है, लेकिन वहां आदिवासी मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. इसलिए हमें अपनी अलग सभा आयोजित करनी पड़ी।.
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