- यूसीसी लागू करने को लेकर आदिवासी समाज नाराज
- कहा- अधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं करेगा हमारा समाज
- थोपा गया तो होगा पुरजोर विरोध
Ranchi: केन्द्र सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू किए जाने के संकेत के बाद इस पर राजनीति गरमा गई है. वहीं इस कानून को लेकर आदिवासी समाज के लोग खासे नाराज हैं. उनका कहना है कि इसके लागू होने से हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. केन्द्र सरकार एक साजिश के तहत ऐसा कर रही है. अपना तर्के के आधार पर वे कहते हैं कि भारत में विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं. हर समुदाय के अलग अलग रीति रिवाज हैं, हमारी भी अपनी रीति, रिवाज और परंपराएं हैं, जो इस कानून के लागू होने से खत्म हो जाएंगे. इसलिए हम आदिवासी समाज के लोग इसे कतई बर्दाशत नहीं करेंगे. अगर हम पर यह कानून जबरन थोपा गया तो इसका पुरजोर विरोध होगा. शुभम संदेश की टीम ने राज्य के विभिन्न जिलों के आदिवासी समुदाय के प्रमुख लोगों से बात की है. पेश है रिपोर्ट.
आदिवासी समाज ने यूसीसी का विरोध कर रोष व्यक्त किया
केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने का संकेत दे दिया है. परंतु सरकार की इस घोषणा पर विभिन्न वर्ग के लोगों की राय भी अलग-अलग है. आदिवासी समाज ने समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा पर रोष व्यक्त किया है. कुछ अल्पसंख्यक वर्ग के लोग भी विरोध कर रहे हैं. आदिवासियों का कहना है कि यूसीसी लागू होने से उनके विशेषाधिकारों का हनन होगा. उन्होंने समान नागरिक संहिता को जनजातियों को समाप्त करने की साजिश करार दिया है.
आदिवासी समाज के अधिकारों का हनन होगा: अंजय हांसदा
धनबाद जिले के दामोदरपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अंजय हांसदा कहते हैं कि आदिवासी समाज कस्टमरी लॉ के अनुसार काम करता है. अगर समान नागरिक संहिता ( यू सी सी ) लागू होती है तो उससे हमारे समाज के लोगों के अधिकारों का हनन होगा, जिसे हम हरर्गिज बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं.
आदिवासी समाज यूसीसी लागू नहीं होने देगा : रूप लाल किस्कू
सामाजिक कार्यकर्ता रूप लाल किस्कू ने कहा कि यू सी सी किसी खास समुदाय के लिए सही हो सकता है. लेकिन भारत में विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं. हर समुदाय के अलग अलग रीति रिवाज हैं, अलग भाषा है. खास कर आदिवासी समाज तो बिल्कुल ही अलग है. वह अपने हिसाब से रहना पसंद करता है.
आदिवासी समाज का तो अस्तिव ही खत्म हो जाएगा : कालीपद हांसदा
सामाजिक कार्यकर्ता कालीपद हांसदा कहते हैं कि यूसीसी कानून को लेकर आदिवासी समाज में काफी रोष है. हम किसी भी हाल में यूसीसी कानून लागू नहीं होने देंगे. क्योंकि इस कानून से हमारे समुदाय का अस्तिव खत्म हो जाएगा. आदिवासी समाज की अपनी रीति रिवाज हैं. इसके लागू होने से हमारी सारी परंपराएं खत्म हो जाएंगी.
यूसीसी से विशेषाधिकारों का हनन होगा,जो ठीक नहीं : कपूर बागी
चांडिल के सामाजिक कार्यकर्ता कपूर बागी ने कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर आदिवासी समाज में रोष है. आदिवासियों का कहना है कि यूसीसी लागू होने से उनके विशेषाधिकारों का हनन होगा. इसके साथ ही समान नागरिक संहिता लागू होने से आदिवासियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. आदिवासी समाज परंपराओं, प्रथाओं के आधार पर चलता है और यूसीसी यानी कि एक समान कानून लागू होने से आदिवासियों की अस्मिता ही खत्म हो जाएगी.
यूसीसी से हमारे सभी अधिकार खत्म हो जाएंगे : प्रकाश मार्डी
आदिवासी समन्वय समिति चांडिल के अध्यक्ष प्रकाश मार्डी ने कहा कि छोटानगपुर टेनेंसी एक्ट, संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा एक्ट के तहत आदिवासियों को झारखंड में जमीन को लेकर विशेष अधिकार हैं. आदिवासियों का कहना है कि समान नागरिक संहिता के लागू होने से ये अधिकार खत्म हो जाएंगे. समान नागरिक संहिता के लागू होने से पूरे देश में विवाह, तलाक, विभाजन, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार एक समान हो जाएगा, लेकिन आदिवासी जिनकी रीति-रिवाज और परंपराएं अलग हैं.
जनजातियों को समाप्त करने की साजिश हो रही : श्यामल मार्डी
माझी पारगाना महाल के पातकोम दिशोम महासचिव श्यामल मार्डी ने कहा कि समान नागरिक संहिता जनजातियों को समाप्त करने की साजिश है. समान नागरिक संहिता के लागू होने से महिलाओं को संपत्ति का सामान अधिकार मिल जाएगा. ऐसे में अगर कोई गैर आदिवासी एक आदिवासी महिला से शादी करता है तो उसकी अगली पीढ़ी की महिला को जमीन का अधिकार मिलेगा. इससे आदिवासियों की जमीन से जुड़े हित प्रभावित होंगे. इसके बाद आदिवासी भूमि जिसकी खरीद-बिक्री पर अभी रोक है, उसे हड़पने की होड़ लग जाएगी.
विलुप्त हो जाएगा आदिवासी समाज : देव कुमार धान
आदिवासी महासभा के संयोजक देव कुमार धान का कहना है कि देश में संविधान के विपरीत जाकर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बात करना दुर्भाग्यपूर्ण है. इस कानून के लागू होने से इस देश से आदिवासी विलुप्त हो जाएंगे. उनकी विशिष्ट परंपरा और रीति रिवाज खत्म हो जाएगा. झारखंड से सीएनटी – एसपीटी, विलकिंग्सन रूल, पेसा कानून और पूरे देश से पांचवी एवं छठी अनुसूची क्षेत्र समाप्त हो जाएगा. प्रधानमंत्री का बयान देखकर ऐसा लगता है कि वह एक धर्मनिरपेक्ष देश को हिंदू राष्ट्र बनाने पर अमादा हैं. इस कोशिश का पूरे देश के आदिवासी विरोध करते हैं और कड़े आंदोलन की चेतावनी देते हैं. हम किसी भी हालत मे यूसीसी लागू नहीं होने देंगे.
संविधान की मूल भावना पर कुठाराघात : लक्ष्मीनारायण
आदिवासी समन्वय समिति के सदस्य लक्ष्मीनारायण मुंडा का कहना है कि समान नागरिक संहिता आदिवासी समुदाय को मिले संवैधानिक हक- अधिकार के खिलाफ है तथा देश की संविधान की मूल आत्मा पर कुठाराघात है. यह कानून इस देश की मूल आदिवासियों की जिनकी अपनी एक विशिष्टता है,उसको खत्म कर देगा तथा उसके प्रथागत कानूनों को नष्ट कर देगा. उत्तराधिकारी की मातृसत्तात्मक और पितृसत्तात्मक दोनों परिस्थितियों का पालन करने वाला आदिवासी समुदाय प्रभावित होगा. महिलाओं को संपत्ति के समान अधिकार दिया जाएगा जिसका अर्थ है कि पैतृक भूमि, भुईहरी, मुंडारी, खुटकट्टी जमीन जो किसी व्यक्ति विशेष का न होकर समुदाय का होता है.
प्रधानमंत्री इस बात को क्यों नहीं समझते: प्रेमचंद मुर्मू
पूर्व टीएसी सदस्य प्रेमचंद मुर्मू का कहना है कि देश में यूसीसी लाने की तैयारी चल रही है और इसके लिए भारतीय लॉ कमीशन ने पब्लिक नोटिस भी जारी किया है और 14 जुलाई तक विचार मांगे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में कहा है कि एक घर में दो कानून नहीं हो सकते तो मैं प्रधानमंत्री को बताना चाहता हूं कि घर में एक परिवार को लोग रहते हैं जिनमें खून का रिश्ता रहता है, लेकिन देश में विभिन्न धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं और हमारे देश की विविधता ही हमारी विशेषता है. ये सदियों से एक साथ रहते आए हैं. नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में अलग रीति रिवाज हैं. वहां पर क्या होगा. प्रधानमंत्री को ये बात समझनी होगी.
अनुच्छेद 244ए/बी समाप्त हो जाएगा : प्रेम शाही मुंडा
आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा का कहना है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड आने से देश में आदिवासियों को दिए गए संवैधानिक अधिकार पांचवीं अनुसूची, छठी अनुसूची,पेसा कानून,आदिवासियों की शादी-विवाह नेग जोग, परंपरा, सीएनटी एक्ट,एसपीटी एक्ट और पूरे देश में अलग-अलग प्रदेशों में दिए गए स्थानीय कानून पर प्रभावी नहीं बल्कि पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. साथ ही संविधान के अनुच्छेद 244 ए/बी पर भी पूरी तरह समाप्त हो जाएगा. इस देश में एक कानून एक भाषा नहीं चल सकता है, क्योंकि इस देश में अनेक तरह की भाषा बोलने वाले,अलग अलग परंपरा मानने वाले हैँ. यह धर्मनिरपेक्ष देश हैँ. इसलिए आदिवासी जन परिषद इसका पुरजोर विरोध करती है.
यूसीसी का हम विरोध करते हैं: बिशुन नगेशिया
नेतरहाट के मुखिया राम बिशुन नगेशिया ने कहा कि वे सामान्य नागरिक संहित का विरोध करते हैं. सदियों से आदिवासियों ने अपनी संस्कृति, परंपरा व रीति रिवाजों को संभाल कर रखा है. सरकार इस विधेयक को लाकर उसे खत्म करना चाहती है. आदिवासियों की पंरपरा को समाप्त करने की यह एक साजिश है.
यूसीसी को लेकर आदिवासी समाज में रोष : जेम्स हेरंंज
सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरज ने कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर आदिवासी समाज में रोष है. यूसीसी के लागू होने से आदिवासियों के विशेषाधिकारों का हनन होगा. यह जनजातियों को समाप्त करने की एक साजिश है. इससे समाज में विद्वेष उत्पन्न होगा. समाज में हर धर्म व संप्रदाय के लोग निवास करते हैं.
आदिवासी पहचान खतरे में पड़ सकती है: कन्हाई
जिला परिषद सदस्य कन्हाई सिंह ने कहा कि यूसीसी लागू होने से देश में आदिवासी पहचान खतरे में पड़ सकती है. यूसीसी जनजातीय प्रथागत कानूनों और अधिकारों को कमजोर करेगा. उनकी अस्मिता खतरे में पड़ जायेगी. आदिवासियों के दो कानून छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट यूसीसी के कारण प्रभावित हो सकते हैं.
समान नागरिक संहिता का हो रहा विरोध : मदन
चक्रधरपुर निवासी आदिवासी हो समाज युवा महासभा के अनुमंडल अध्यक्ष मदन बोदरा ने कहा कि यूनिफर्म सिविल कोड (यूसीसी) का हमारे देश के हर राज्य में विरोध किया जा रहा है. आदिवासी का अर्थ जनजाति होता है. आदिवासियों का जुड़ाव जल, जंगल, जमीन से होता है. इनकी अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं.
यूसीसी का हर हाल में विरोध होगा : रवीन्द्र गिलुवा
चक्रधरपुर निवासी आदिवासी मित्र मंडल के सचिव रवीन्द्र गिलुवा ने कहा कि आदिवासियों के नियम को सभी के साथ जोड़कर शामिल करना गलत है. समान नागरिक संहिता का विरोध हर हाल में होगा. हमारे कोल्हान में मानकी-मुंडा स्वशासन व्यवस्था लागू है. इसके अपने नियम हैं. हम अपने नियम-कानून से किसी प्रकार का छेड़छाड़ नहीं होने देंगे.
परंपरा को नहीं बदला जा सकता : राकेश जोंको
चक्रधरपुर की बाईपी पंचायत के पूर्व मुखिया राकेश जोंको ने कहा कि आदिवासियों की अपनी पुरानी परंपरा व नियम हैं. इसे किसी भी हाल में बदला नहीं जा सकता. समान नागरिक संहिता लागू होने से संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन, विवाह, तलाक, गोद लेना इत्यादि को लेकर एक कानून बनाया जाएगा.
यूसीसी से स्वतंत्रता का हनन होगा : सनत सोरेन
मांझी परगना लहंती वैसी के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता सनत सोरेन ने कहा कि समान नागरिक संहिता सभी धर्म पर हिंदू कानून लागू करने जैसा है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 के तहत किसी भी धर्म को मानने व प्रचार करने की स्वतंत्रता का हनन होगा. यह संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता की अवधारणा के विरुद्ध होगा.
इससे हमारा अपना कानून खत्म हो जाएगा : गंगाराम
एडवोकेट सह सामाजिक कार्यकर्ता गंगाराम टुडू ने कहा कि यूसीसी लागू होने से आदिवासी समाज में आदिवासियों का कानून है उसका हनन होगा. आदिवासी समाज में बेटियों को जमीन नहीं दी जाती है, लेकिन यूसीसी लागू होने से आदिवासियों की इस परंपरा में दखल होगा. यह ठीक नहीं है. इस दिशा में सरकार को फिर से सोचना चाहिए.
समाज की पहचान पर संकट है : मानिक मुर्मू
एडवोकेट मानिक मुर्मू ने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू होने से आदिवासी समाज की पहचान और अस्मिता पर संकट पैदा होगा. आदिवासियों की जीवन पद्धति और मान्यताएं, नियम और परंपराएं अलग हैं. वे अपने अनुसार चलते हैं. समान नागरिक संहिता के ज़रिए उनकी मान्यताओं, आस्था व संस्कृति को प्रभावित करने की साजिश हो रही है.
हम नहीं चाहते कि कोई नया कानून आए : हरिद्वार भगत
झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिला समिति सदस्य सह झारखंड आंदोलन कारी हरिद्वार भगत यूसीसी को सिरे से नकारते हुए कहा है कि इससे रहन-सहन विधि व्यवस्था पर असर पड़ेगा. हम आदिवासियों की सदियों से अपनी परंपरा और व्यवस्था रही है. जिसे भारतीय संविधान की धारा 244 के तहत पांचवीं अनुसूची के रूप में स्थान प्राप्त है.
यूसीसी हमारी आस्था के साथ मजाक : जितेंद्र सिंह
झारखंड आंदोलन कारी जितेंद्र सिंह यूसीसी के बाबत कहते हैं कि भारत देश में विभिन्न जाति धर्म के लोग निवास करते हैं. सबकी अपनी अपनी परंपरा और मान्यताएं है. यहां यूसीसी लागू करना लोगों की आस्था और परंपरा के साथ मजाक होगा. इसलिये ऐसे कानून का विरोध होगा.
सभी को इस कानून से फायदा होगा : देवमोहन
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सदस्य एस टी मोर्चा के देवमोहन सिंह यूसीसी को देश हित में बताते हुए कहते हैं कि यहां जो भी लोग निवास करते हैं चाहे वे आदिवासी हो या गैर आदिवासी, सबको इस कानून से फायदा होने वाला है. आजादी के इतने वर्ष गुजर जाने के बाद भी देखा जा सकता है कि आदिवासियों का कितना विकास हुआ है.
विशेषाधिकार का होगा हनन : अनूप राजेश लकड़ा
अनूप राजेश लकड़ा कहते हैं कि जब सबकुछ ठीक चल रहा है, तो बदलाव की क्या दरकार है. समान नागरिक संहिता से जनजातियों के अस्तित्व पर खतरा है. इसे लागू करने के पहले आदिवासी नेताओं से विमर्श करने की जरूरत थी. सबकी राय से ही ऐसे कानून लागू करने की आवश्यकता है. आदिवासी समाज को कई विशेषाधिकार मिले हैं, उस पर भी खतरा है.
समाज की राय के बाद ही कदम उठाया जाए : रुचि
बाल संरक्षण आयोग की सदस्य रुचि कुजूर कहती हैं कि आदिवासी नेताओं से राय के बाद ही यूसीसी लागू करने की जरूरत थी. यूसीसी से खासकर आदिवासी समाज की सभ्यता-संस्कृति समेत उनके विशेषाधिकार को खतरा है. इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो आदिवासियों के कई अधिकारों का हनन होगा. उनके अधिकार की सुरक्षा सरकार की पहली जिम्मेवारी होनी चाहिए.
कानून ऐसा हो कि किसी का अहित नहीं हो : रमेश
रमेश हेंब्रम का कहना है कि कानून ऐसा बने, जिससे किसी का अहित नहीं हो. समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को समझने की जरूरत है, तभी इस पर कुछ बहस होनी चाहिए. सरकार ने भी कुछ सोचकर ही कानून लाया होगा. कानून से आदिवासियों के विशेषाधिकार का हनन नहीं हो, इसका ख्याल रखा जाना चाहिए. कानून से समाज का भला होना चाहिए, फिर लोग इसका विरोध नहीं करेंगे. इस दिशा में सरकार को सोचना चाहिए.
जनजातियों की सुरक्षा के लिए कानून बने : सविता
सविता खलखो कहती हैं कि कोई भी कानून बने, लेकिन आदिवासियों के विशेषाधिकार का हनन नहीं होना चाहिए. जनजातियों की सुरक्षा के लिए कानून बनना चाहिए. साजिश के तहत समान नागरिक संहिता लागू किया जा रहा है. इससे जनजातियों को समाप्त करने की कोशश की जा रही है. यह सही नहीं है कि आदिवासियों के अस्तित्व पर प्रहार हो. उनका विशेषाधिकार छीनने का किसी को हक नहीं है.
संस्कृति बचाने का प्रयास होना चाहिए : महेंद्र बेक
सरना समिति के अध्यक्ष महेंद्र बेक का कहना है कि संस्कृति को बचाने का प्रयास होना चाहिए. समान नागरिक संहिता से आदिवासियों का भला नहीं होनेवाला है. यह अप्रत्यक्ष तौर पर उनकी सभ्यता और संस्कृति पर हमला है. इस कानून को लागू करने के पहले आदिवासी समाज से सरकार को बात करने की जरूरत थी. हर तरफ से आदिवासियों पर हमला सही नहीं है. इसलिए सरकार को ऐसे कानून से बचना चाहिए.
यूसीसी से आदिवासियों के अस्तित्व को खतरा : संदीप
संदीप खलखो ने कहा कि यूसीसी से आदिवासियों के अस्तित्व को खतरा है. इससे जनजातियों के विशेषाधिकार का हनन होगा. इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है. कानून ऐसा हो, जिससे किसी समाज को नुकसान नहीं हो. इन सारी बातों पर मंथन-चिंतन करने के बाद ही कोई फैसला लेने की जरूरत है. यूसीसी से आदिवासियों की संस्कृति खत्म हो जाएगी. उनका मौलिक अधिकार छिन जाएगा.
आदिवासियों के रीति रिवाज पर कुठाराघात होगा : सन्नी सिंकू
चाईबासा के झारखंड पुनरुत्थान अभियान के मुख्य संयोजक सन्नी सिंकू कहते हैं कि भारत देश की सबसे बड़ी विशेषता विविधता में एकता है. इसी विविधता में देश के क्षेत्रवार आदिवासियों की अपनी शादी विवाह, भरण पोषण का रीति रिवाज है. जिस रीति रिवाज को उच्चतम न्यायालय भी मान्यता प्रदान करती है. ऐसे में जनहित याचिकाकर्ताओं के आधार पर केंद्र की भाजपा सरकार समान अधिकार संहिता लागू करना चाहती है, तो वर्तमान में संविधान प्रदत्त सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जायेंगे. आदिवासियों की सबसे बड़ी विशेषता उनके रीति रिवाज पर कुठाराघात होगा. संविधान के मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता के प्रतिकूल है समान नागरिक संहिता.
समाज को सुरक्षा देने वाला कानून शून्य हो जाएगा : जगदीश चन्द्र सिंकू
चाईबासा के झारखंड पुनरुत्थान अभियान के संस्थापक सदस्य जगदीश चंद्र सिंकू कहते हैं कि देश में कोल्हान की अपनी अलग आदिवासी पारंपरिक रीति रिवाज हैं. संवेदनशील इतिहासकार कोल्हानवासी डॉ. अशोक कुमार सेन ने कोल्हान की आदिवासी रीति रिवाज पर आधारित कोर्ट की सुनवाई को संकलित कर एक किताब का स्वरूप प्रदान किया है. जिस किताब का नाम फ्रॉम विलेज एल्डर टू ब्रिटिश जज कस्टम, कस्टमरी एंड ट्राइबल सोसायटी है. जिस किताब में कोल्हान की हो उपजातियों की शादी विवाह, भरण पोषण के बारे में उल्लेख है. उसी तरह से पूर्वोत्तर राज्य के मेघालय, नागालैंड राज्य के आदिवासियों के लिए विशेष कानून व्यवस्था है.
समान नागरिक संहिता का विरोध करते हैं : अमृत मांझी
चाईबासा के झारखंड पुनरूत्थान अभियान के संयोजक अमृत मांझी कहते हैं कि देश के विधि मंत्रालय ने विधि आयोग से समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और समुदायों को शासित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों की संवेदनशीलता, उनके गहन अध्ययन के आधार पर विचार करते हुए सिफारिशें करने का अनुरोध किया था. लेकिन, मुझे नहीं लगता कि देश के तीसरे सबसे अधिक जनसंख्या वाले आदिवासी संथाल समाज की रीति रिवाज के बारे में विधि आयोग ने संथाल समाज के अगुआ से जानकारी हासिल की हो. समान नागरिक संहिता आदिवासियों की व्यक्तिगत कानूनों को समाप्त कर एक समान कानून बनाना चाहती है, जिसका हम विरोध करते हैं.
आदिवासियों की जमीन छीनने की साजिश है : नमन विक्सल कोंगाड़ी
समान नागरिक संहिता का कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी ने विरोध किया है. उनका कहना है कि पीएम मोदी ने मंगलवार को एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता को लागू करने पर जोर दिया है. उनका कहना है कि यह आरक्षण, कस्टमरी लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ और आदिवासियों की जमीन छीनने के लिए केंद्र सरकार साजिश रच रही है. विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी ने कहा है कि समान नागरिक संहिता देश व देशवासियों के हित में नहीं है. उन्होंने कहा कि देश में अलग-अलग धर्म व भिन्न-भिन्न समुदाय के लोग रहते हैं. ऐसे में समान नागरिक संहिता लागू होने से वंचित आदिवासी व खास समुदाय के लोग विशेष रूप से प्रभावित होंगे.
यूसीसी जरूरत है, इसे लागू किया जाना चाहिए : सुजान मुंडा
सिमडेगा-कोलेबिरा विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी सह जलडेगा प्रखंड सांसद प्रतिनिधि सुजान मुंडा का कहना है कि समान नागरिक संहिता कानून से अभिप्राय वैसे समूह से है जो कि देश के समस्त नागरिक चाहे वह किसी भी क्षेत्र से संबंधित को पर लागू होता है. विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून अमेरिका, आयरलैंड सहित इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान, बांग्लादेश ,मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान जैसे कई देशों में लागू हैं . जिन्होंने समान नागरिकता संहिता लागू कर रखा है. भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का विचार था कि सामान नागरिक सहिंता वांछनीय है,इसे लागू करना चाहिए.
चुनावी फायदे के लिए यूसीसी : डेमका सोय
झारखंड आंदोलनकारी सह भूमि बचाओ संघर्ष मोर्चा (कोल्हान) के संयोजक डेमका सोय का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार देश में समानता की बजाय विषमता उत्पन्न करने के लिए नए-नए कानून ला रही है. समान नागरिक संहिता भी उसी का हिस्सा है. भारतीय संविधान के मूल में सभी धर्म व वर्ग के लोगों के अधिकारों का संरक्षण किया गया है. उससे छेड़छाड़ कतई बर्दाश्त नहीं होगा, क्योंकि अलग-अलग धर्म मानने वालों का अलग-अलग पारंपरिक व सामाजिक नियम है. उससे छेड़छाड़ कोई बर्दाश्त नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि भाजपा जिस मंशा (चुनावी लाभ एवं ध्रुवीकरण) के तहत यह कानून ला रही है. यह उसे काफी भारी पड़ेगा. देश के आदिवासी कभी भी यूसीसी लागू नहीं होने देंगे.
यूसीसी से हमारे अधिकार प्रभावित होंगे : कृष्णा हांसदा
आदिवासी हितों की रक्षा के लिए कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा हांसदा ने बताया कि केंद्र सरकार कुछ भी कर ले, लेकिन संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती है. संविधान के अनुच्छेद 13 में नागरिकों को मिले अधिकार के कारण यूसीसी लागू नहीं हो सकता है. अगर लागू भी हो गया तो यह सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिक पाएगा. लेकिन केंद्र सरकार भारत को नेपाल बनाने पर तुली है. सारी दुनिया नेपाल का हश्र देख चुकी है. अगर ऐसा हुआ तो 14 राज्यों के आदिवासी इसका पुरजोर विरोध करेंगे, क्योंकि यूसीसी लागू होने से बिल्किंसन रूल, सीएनटी, एसपीटी, पांचवीं अनुसूची प्रभावित होगी. इसका पुरजोर विरोध होगा.
दिमाग भटकाना चाहती है सरकार : दीपक मुर्मू
जमशेदपुर के डिमना ग्रामसभा के मांझी बाबा दीपक मुर्मू ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा यूसीसी लागू करना देश की मूलभूत समस्याओं जैसे बेरोजगारी, महंगाई, काला धन आदि मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना है. आज देश में महंगाई चरम पर है. बेरोजगारी के कारण भुखमरी की स्थिति है, लेकिन सरकार आपसी सौहार्द को बिगाड़ने की मंशा से तरह-तरह के कानून ला रही है. यूसीसी भी उसी का हिस्सा है. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जब देश में “एक कानून एक देश” लागू हो जाएगा तो क्या सरकार सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों को तोड़कर एक सर्वधर्म स्थल का निर्माण कराएगी. क्या सभी लोगों को एक जैसा खान-पान अपनाने के लिए कहेगी, लेकिन ऐसा कतई नहीं होगा.
2000 वर्ष पीछे चला जाएगा अपना देश: जयनारायण मुुुंडा
आदिवासी मुंडा समाज के नेता जयनारायण मुंडा का कहना है कि देश में समान नागरिक संहिता लागू होने से 2000 वर्ष पहले जिस स्थिति में भारत था, उसी दौर में लौट जाएगा. उन्होंने कहा कि जिस मंशा के तहत बाबा साहेब ने 1950 में संविधान बनाया तथा पिछड़े, दलित, आदिवासी, दबे-कुचले लोगों को आरक्षण का प्रावधान किया. वह धरातल पर दिख रहा है. 75 वर्षों बाद भी देश में उपरोक्त वर्ग की वही स्थिति है. आज भी देश में वर्गवाद, धर्मवाद, जातिवाद कायम है. क्या यूसीसी से यह खत्म हो जाएगा. इसकी गारंटी कौन लेगा. उन्होंने कहा कि 2000 वर्ष पहले जो उपरोक्त वर्ग की स्थिति थी, उस दौर से आगे बढ़ने की बजाय लोगों का विकास अवरूद्ध हो जाएगा.
आदिवासी अपने अधिकारों से वंचित हो जाएंगे : प्रमोद मुर्मू
आदिवासी छात्र संघ के नेता प्रमोद मुर्मू ने कहा कि समान नागरिक संहिता देश के आदिवासी सहित धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के लिए घातक सिद्ध होगा. सबसे पहले तो विधि आयोग के ओर से कोई यूसीसी को लेकर कोई प्रारूप या रूप रेखा सामने नहीं आया है. लेकिन यदि ऐसा हुआ तो परंपरागत तरीके से प्रकृति के अनुसार सभ्यता संस्कृति के पोषक रहे आदिवासी समुदाय उन अधिकारों से वंचित हो जाएगा. आदिवासियों को 5 वीं अनुसूची में विशेष अधिकार प्राप्त है. वह समाप्त हो जाएगा. यह संहिता आदिवासी समुदाय के साथ-साथ देश के लिए भी नुकसानदेह होगा. इसलिए केन्द्र सरकार को इस पर फिर से विचार करना चाहिए. इसे लेकर समाज में काफी नाराजगी है.आदिवासी समाज वर्षों से अपनी रीति रिवाज और परंपराओं के साथ चलते रहे हैं. इस कानून के लागू हो जाने से उनकी यह पहचान खत्म हो जाएगी.
केंद्र सरकार का यह गुप्त एजेंडा है,इसे हमारा नुकसान: योगो पूर्ति
सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी योगो पूर्ति ने कहा कि केंद्र सरकार का यह गुप्त एजेंडा है. इस संहिता के बहस में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहेंगे लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासी समाज को होगा. आदिवासी समुदाय की पहचान मिटाने के लिए समान नागरिक संहिता कानून लाने की बात कही जा रही है. आदिवासी इस देश के मालिक हैं. वे सबसे पहले से हैं. भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है. यहां अलग अलग जाति, बोली, भाषा, खान-पान, रहन-सहन सब कुछ अलग है. इस विविधता वाले देश में समान नागरिक संहिता अलगाव पैदा करेगी. परंपरागत कानून, मानकी मुंडा, संथाल मांझी परगना, रांची एरिया पड़ाराजा की प्रथा है, जिसपर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इसलिए केन्द्र सरकार को इस तरह का कानून लाने के पहले बहुत सोच विचार करना चाहिए. अगर यह कानून आदिवासी समाज पर जबरन थोपा गया तो इसका विरोध किया जाएगा. [wpse_comments_template]
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