Surjit Singh
भारत व पाकिस्तान के बीच सीजफायर (संघर्ष रोकने) को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सीजफायर की घोषणा से पहले से ही क्रेडिट लेने में लग गए. भारत सरकार ने जरुर इसका खंडन किया. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी कुछ नहीं कहा.
इस बीच 23 मई को ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार अदालत को जो लिखित में जानकारी दी है, उसमें कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुए सीजफायर में उनकी भूमिका थी.
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री ने हावर्ड लुटनिक ने अदालत में कहा है कि ट्रंप ने दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने और युद्धविराम कराने के लिए अपने टैरिफ से जुड़े अधिकारों का इस्तेमाल किया. ट्रंप प्रशासन ने यह भी कहा है कि अगर टैरिफ से जुड़े नियमों का पालन नहीं किया गया तो यह सीजफायर टूट भी सकता है.
हालांकि भारत सरकार ने अमेरिकी प्रशासन के इस दावे का खंडन किया है. भारत ने साफ किया है कि सीजफायर का निर्णय पूरी तरह द्विपक्षीय था, जिसमें दोनों देशों के सैन्य अभियान महानिदेशकों (DGMO) के बीच बातचीत के बाद सहमति से बनी.
भारत ने इसमें किसी भी तीसरे पक्ष, विशेषकर अमेरिका की मध्यस्थता से इंकार किया. विदेश मंत्री ने संसदीय समिति में भी इस बात को दुहाराया.
अब सवाल यह उठता है कि सच क्या है. ट्रंप प्रशासन कोर्ट में कह रहा है कि व्यापारिक दबाव में सीजफायर कराया. या भारत सरकार का यह बयान कि सीजफायर द्विपक्षीय था. या फिर यह मामला वैश्विक मंच पर सीजफायर की क्रेडिट लेने की राजनीति और वास्तविक तथ्यों के बीच टकराव को उजागर करता है.