Nishikant Thakur
महात्मा गांधी अपनी कालजयी आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में लिखते हैं कि 'जो मनुष्य यह कहता है कि धर्म का राजनीति के साथ कोई संबंध नहीं है, वह धर्म को नहीं जानता, ऐसा कहने में मुझे संकोच नहीं होता, और न ऐसा कहने में मैं अविनय करता हूं.' यही थी गांधी की सत्यवादिता. आज देश के लगभग सभी राजनीतिज्ञ अपनी राजनीति को धर्म से पृथक मानने में संकोच करते हैं और सार्वजनिक रूप से भरी सभा में असत्य का प्रलाप करते हुए कहते हैं कि उनकी राजनीति धर्म से अलग है.
विचार कभी भी नया नहीं होता. विचार का स्वभाव ही उसे नया नहीं होने दे सकता. मौलिकता और विचार विपरीत आयाम हैं. विचार तो हमेशा बासी होते हैं, क्योंकि शब्द बासी होते हैं, भाषा बासी होती है. इसका ताजा उदाहरण बिहार में होने जा रहे विधानसभा का चुनाव है, जहां हर रोज हर नेता धर्म को राजनीति से अलग मानते हुए खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाने का दावा करता दिखाई देता है. यह सत्य है कि महात्मा गांधी के विचार उस काल के हैं, जब राजनीतिज्ञ शुद्ध राजनीति ही करते थे; क्योंकि तब देश अंग्रेजों का गुलाम था और उन महान राजनीतिज्ञों का लक्ष्य अपनी अगली पीढ़ी के लिए एक स्वतंत्र देश का निर्माण करना था.
ऐसा इसलिए, क्योंकि उनका निज का कोई स्वार्थ नहीं होता था और इसलिए उनका तन-मन-धन सबकुछ देश के लिए समर्पित था. लेकिन, क्या आज के तथाकथित राजनीतिज्ञ उसी रास्ते पर चल रहे हैं, जिनका उद्देश्य एक सामान्य जनता को अच्छी शिक्षा, अच्छे स्वस्थ, सामान्य नागरिक जीवन के लिए ही राजनीति करना होता है?
भारतीय गृहमंत्री बिहार में अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहते हैं कि यदि उनकी सरकार बनी, तो चुन चुनकर घुसपैठिये बाहर किए जाएंगे. इस तरह का प्रश्न उनसे कोई मीडिया नहीं करता कि जिनके साथ आपने गठबंधन किया है, वही तो इस प्रदेश के पिछले बीस वर्षों से मुख्यमंत्री हैं. तो क्या यह कार्यकाल उनका नहीं था? या फिर उनका कहना यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रहते हुए उनका दायित्व नहीं बनता था कि उनकी सरकार घुसपैठियों को रोके; क्योंकि सीमा सुरक्षा तो हर दशा में केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन ही आता है.
फिर इस प्रकार का असत्य भाषण क्यों कोई दे सकता है या फिर बिहार के बुद्धिजीवी लोगों को भ्रमित करने के लिए इस तरह की बात की जाती है. हां, यह ठीक है कि बिहार में गरीबी है, इसलिए देश में सबसे अधिक बिहार के लोग आपको हर राज्य में मिल जाएंगे, लेकिन वे बौद्धिक रूप से सक्षम रूप है. पिछले बीस वर्षों में सरकार द्वारा उन्हें अपने राज्य में रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं कराए गए, इसलिए वे अन्य राज्यों में अपनी रोजी-रोटी के लिए पलायन कर गए. इसमें दोष किसका है, आम जनता का या सरकार का? संविधान यह अधिकार देता है कि जीविकोपार्जन के लिए हम देश में कहीं भी जा सकते हैं. पर, उसके बावजूद उन्हें हर जगह जलालत और अपमान का घूंट पीना पड़ता है.
क्या इस गरीबी ,पिछड़ेपन और पलायन पर आज सत्तारूढ़ दल कोई चर्चा कर रहा है? बिल्कुल नहीं. यदि वह इस प्रकार की चर्चा करेंगे और गरीबी, पिछड़ेपन की बात करेंगे तो उन्हें अपने पीछे भी देखना होगा कि आखिर बिहार की जनता के लिए सत्तारूढ़ दल की सरकार ने क्या किया. आज बिहार का कोई भी राजनीतिज्ञ यह नहीं कह सकता कि उसने अथवा उसके दल ने कितने स्वास्थ्य केंद्र खोले, कितने विद्यालय खोले, कितने उद्योग लगाए, जिससे रोजगार के सृजन हो सका?
हां, यदि आपके पास धनबल है तो आप देश ही नहीं, विदेश भेजकर अपने बच्चों को शिक्षित करा सकते हैं. फिर जब विदेश में वह शिक्षा ग्रहण करेगा तो फिर वह भारत में लौटकर क्यों आएगा. वह इस बात से परिपक्व हो चुका होता है उन्हें भारतवर्ष में किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. विश्व में और भी कई देश हैं जहां अशिक्षा है, बेरोजगारी है. लेकिन वहां की सरकार जागरूक रहती है. आज विश्व के छोटे छोटे देश ही नहीं, बड़े से बड़ा देश भी इस तरह आगे बढ़ चुके हैं कि उनके आगे हमें अपना सिर नीचे करना पड़ता है.
बिहार में महाभारत का रण सज चुका है और सभी अपनी सरकार आने पर उसे स्वर्ग में तब्दील कर देने की कसमें खाने से अपने को पीछे नहीं रख रहे हैं. यह आज से नहीं बहुत पुरानी बात हो गई है कि यदि आप सत्ता में हैं, तबतक आपकी कद्र है, जिस दिन आप सत्ता से बाहर होंगे आपकी कोई कद्र नहीं होगी. यह बात विश्व में प्रचलित है कि उगते सूर्य को सभी नमन करते है. लेकिन देश ही नहीं विश्व केवल बिहार ही है, जहां डूबते सूर्य को भी प्रणाम किया जाता है, नमन किया जाता है. यह बिहार का संस्कार है कि यदि आप आते हैं, तो भी आपको नमस्कार यदि आप जाते हैं तो भी उसी सम्मान से आपको विदा भी किया जाता है. इसलिए बिहार की जनता को आप कितना भी लुभा लें, कितना ही वादा कर लें, वे करेंगे वही, जो उनकी नजर में स्वच्छ छवि वाला और शिक्षित होगा. जो उनकी बेरोजगारी से, उनके अशिक्षित होने के सुख-दुःख में साथ रहा हो, भरोसा तो वह उन्हीं पर करेगी.
पूरे देश में यह अफवाह फैलाई जा चुकी ही कि बिहार जातिवाद में आकंठ डूबा हुआ है, लेकिन इस बार लगता है कि बिहार के लोग इस लोकोक्ति को गलत ठहरा देंगे. ऐसा इसलिए भी कि जब आंधी आती है, तब पके आम ही नहीं कच्चे आम भी टूटकर गिर जाते हैं. यहां तक कि बड़े-बड़े पेड़ भी धराशायी हो जाते हैं. इसी तरह इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में यही होने जा रहा है. बिहार के लोग जातिवादी हैं, इस गणना से ऊब चुके हैं और अब वह अपना विकास चाहते हैं. वह समझ चुके हैं कि विकास जातिवाद की आंधी से आ नहीं सकती, इसलिए उन्हें योग्य, कर्मठ और अपने जैसा उनके लिए राज्य को विकसित करने वाला ही उनकी वकालत करने वाला सदन में, विधानसभा में चाहिए.
बिहार विधानसभा का चुनाव जैसे जैसे नजदीक आने लगा है, नेताओं का बिहार आने का तांता भी बढ़ने लगा है. जिसको बिहार का ज्ञान है, वह भी और कुछ अज्ञानी भी अपना ज्ञान देने पहुंचने लगे हैं. जिन्हें बिहार के इतिहास का पता नहीं होता, वे भी दिग्भ्रमित करने बिहार पहुंचने लगे हैं. अब कई एजेंसियों द्वारा जीत हार की बात दावे से की जाएगी.
चौदह करोड़ की आबादी और साढ़े सात करोड़ मतदाताओं के तथाकथित घर घर जाकर सर्वे करेंगे और अभी से घोषित कर देंगे कि एनडीए की या महागठबंधन की सरकार सौ प्रतिशत बनने जा रही है. यह केवल एक झूठ ही नहीं, जनता को भ्रमित करने के लिए जानबूझकर किया गया एक प्रपंच है. सोचिए चौदह करोड़ लोगों के घर घर जाकर कितने लोगों से पूछा गया होगा कि आप अपना वोट किसे देने जा रहे हैं? क्या कोई मतदाता उन्हें सच बताता होगा?
इन चौदह करोड़ लोगों तक पहुंचने के लिए कितने लोग जुटाए गए होंगे, दूसरी बात यदि आप बिहार में हैं, तो यह याद कीजिए कि क्या कोई सर्वेयर आपके घर यह पूछताछ करने आया है? यदि हां, तो ठीक यदि कोई आपके घर पूछने ही नहीं आया, तो उन्होंने किस प्रकार से अनुमान लगा लिया कि इस परिवार के इतने सदस्य इस दल को वोट करेंगे. आप स्वयं कल्पना कीजिए यह सर्वे कितना सच होता है. जहां तक बिहार का जो सर्वे आया है, वह झूठ का पुलिंदा है, क्योंकि कोई भी मतदाता कुछ प्रतिशत को छोड़कर कभी आपसे यह साझा नहीं करेगा कि वह अपना मत किसे देने जा रहा है.
इसलिए आप यह मत कहिए कि राजनीति से धर्म पृथक है. फिर भी अगर आप ऐसा कुछ कह रहे हैं, तो महज इसलिए ताकि बहुमत आपके साथ हो जाए. यही तो पिछले कुछ वर्षों में होता आया है, लेकिन असली निर्णय तो बिहार की जनता को करना है.
डिस्क्लेमर : लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.

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