Ranchi: स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी ने अपने बेटे को लेकर बड़े ही भावुक अंदाज में अपनी बातें रखी है. उनके बेटे के द्वारा हॉस्पिटल निरीक्षण का वीडियो वायरल होने के बाद डॉ इरफान ने कहा है कि मेरे बेटे कृष अंसारी को लेकर जो बातें कुछ मीडिया माध्यमों और राजनीतिक मानसिकता के लोग फैला रहे हैं, वो पूरी तरह निराधार, भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण है.
कृष रिम्स किसी निरीक्षण या नेतागिरी के लिए नहीं गया था
*"सच्चाई को समझें – मेरे बेटे कृष को गलत तरीके से घसीटा जा रहा है..."*
— Dr. Irfan Ansari (@IrfanAnsariMLA) July 19, 2025
मेरे बेटे कृष अंसारी को लेकर जो बातें कुछ मीडिया माध्यमों और राजनीतिक मानसिकता के लोग फैला रहे हैं, वो पूरी तरह *निराधार, भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण* हैं।
कृष रिम्स किसी निरीक्षण या नेतागिरी के लिए नहीं गया… pic.twitter.com/ILd0BpYJfy
सोशल मीडिया पोस्ट में डॉ इरफान ने आगे लिखा है कि कृष रिम्स किसी निरीक्षण या नेतागिरी के लिए नहीं गया था. वह तो अपने शिक्षक आदित्य कुमार झा के पिता जी को देखने गया था, जो रिम्स में भर्ती हैं. इसी क्रम में बीती रात कुछ आदिवासी परिवार हमारे आवास पर सहायता के लिए पहुंचे, जो रिम्स में अपने परिजन के इलाज को लेकर बेहद परेशान थे. उनके आग्रह पर ही कृष मानवीय आधार पर वहां गया. किसी की तकलीफ कम करने की कोशिश करने.
Lagatar.in प्रकाशित खबर और Live lagatar के इसी वीडियो पर मंत्री ने दी है प्रतिक्रिया
साथ ही संयोग से एक वरिष्ठ पत्रकार बंधु के परिजन भी रिम्स में भर्ती थे, जिन्हें भी सहायता की आवश्यकता थी. कृष ने इंसानियत और संवेदनशीलता के भाव से, यथासंभव मदद की, बस इतना ही.
बिना तथ्यों के किया जा रहा पेश
डॉ इरफान ने कहा कि आज जिस तरह इस घटना को तोड़-मरोड़ कर, राजनीति का रंग चढ़ाकर, बिना तथ्यों के प्रस्तुत किया जा रहा है, वह बेहद दुखद और चिंताजनक है. कृष एक पढ़ा-लिखा, संवेदनशील और होनहार छात्र है. वह अभी छुट्टियों में रांची आया हुआ है.
सेवा की भावना उसके भीतर सहज रूप से मौजूद है, आखिर वह पूर्व सांसद फुरकान अंसारी का पोता है, जिन्होंने झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ऐसे परिवार में जन्मे युवा में जनभावना और सेवा का स्वाभाविक संस्कार होना कोई अचरज नहीं.
लेकिन क्या अब मदद करना भी अपराध है?
कृष बार-बार मुझसे एक ही सवाल कर रहा है –"पापा, क्या लोगों की मदद करना गुनाह है? क्या किसी की तकलीफ देखकर मदद करना नेतागिरी कहलाता है?" यह सवाल मुझे भीतर तक तोड़ देता है. मेरा बेटा न तो किसी किसान को गाड़ी से कुचलता है और न ही सत्ता के नशे में इंसानियत भूल जाता है.
उसने तो बस एक बीमार को देखा और मदद की. क्या अब संवेदनशीलता और करुणा भी अपराध मानी जाएगी? मैं इस सोच से बेहद व्यथित हूं और सोचने को मजबूर हूं कि आखिर हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है?" क्या हर युवा हाथ जो मदद के लिए उठता है, अब राजनीति की काली स्याही से रंग दिया जाएगा? यह हाय-तौबा, यह मानसिकता, समाज के लिए घातक है.
मैं आप सभी से हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं, कृपया सच्चाई को समझें. राजनीति के चश्मे को उतारें. यह एक युवा की संवेदनशीलता और सेवा-भावना का अपमान है. कृष का मन टूटा हुआ है, लेकिन उसके इरादे मजबूत हैं.