- दो दशकों में राज्य में 69 मिमी बारिश कम हुई है
- Shruti Singh
जल संकट और लू की घटनाओं में कई गुना वृद्धि
आईएमडी रांची के निदेशक अभिषेक आनंद ने कहा कि झारखंड जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील है. राज्य में जलवायु परिवर्तन का असर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है. पिछले दशक में झारखंड में जल संकट और लू की घटनाओं में कई गुना वृद्धि हुई है. झारखंड के 14 जिले जलवायु परिवर्तन के प्रति गंभीर रूप से संवेदनशील हैं. इनमें गढ़वा, पलामू, चतरा, हजारीबाग, गिरिडीह, बोकारो, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ और खूंटी प्रभावित जिलों में शामिल हैं. यह गर्मी की लहर जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप हो रही है. हम खुद को बचाने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रयास नहीं कर रहे हैं.पिछले 70 वर्षों में वर्षा के पैटर्न में बदलाव
यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन का असर राज्य में सामान्य वर्षा पर पड़ा है. पिछले 70 वर्षों में वर्षा के पैटर्न में बदलाव आये हैं. मौसम विभाग के मुताबिक पिछले दो दशकों में राज्य में 69 मिमी बारिश कम हुई है. राज्य के प्राथमिक कृषि उत्पादों चावल, गेहूं, मक्का, मूंगफली, चना और आलू सहित विभिन्न फसलों के उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अनुमान लगाया गया है.झारखंड में जलवायु परिवर्तन और उसका प्रभाव
- नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) के तहत रिपोर्ट में बताया गया है कि 6 जिलों गढ़वा, गोड्डा, गुमला, पाकुड़, साहिबगंज और पश्चिमी सिंहभूम को उच्च जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
- राज्य में जल संकट और लू की घटनाएं बढ़ी हैं. 2000 से 2014 तक राज्य में सबसे अधिक लू चली. विशेष रूप से पलामू इसका सामना कर रहा है.
- झारखंड का 69.98% से अधिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण और भूमि वारण के अंतर्गत आते हैं, जो देश में सबसे अधिक है.
- मध्य भारतीय जंगलों में प्रमुख वृक्ष प्रजातियां सागौन और साल पिछले वर्षों की तुलना में तापमान में बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील हैं. एशिया के सबसे बड़े साल वन के रूप में जाना जाने वाला पश्चिम सिंहभूम जिले का सारंडा जंगल जलवायु से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है.
झारखंड में वायु प्रदूषण और इसका प्रभाव
पिछले 20 वर्षों में औद्योगीकरण और शहरीकरण की तेज गति ने झारखंड को बड़े विकास लक्ष्यों की ओर बढ़ने में योगदान दिया है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप परिवेशी वायु प्रदूषण के स्तर में भी वृद्धि हुई है. झारखंड में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत वाहन उत्सर्जन, थर्मल पावर प्लांट, कोयला खदानें, निर्माण और विध्वंस, ईंट भट्टे, डीजी सेट, ठोस अपशिष्ट जलाना और घरेलू उत्सर्जन हैं. रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के जमशेदपुर, रांची और धनबाद खतरनाक वायु गुणवत्ता रडार में आए हैं, जबकि सिंदरी, सरायकेला-खरसावां और बड़ाजामदा जैसे अन्य शहर अभी भी एनसीएपी सूची में जगह नहीं बना सके हैं. इसे भी पढ़ें – झारखंड">https://lagatar.in/orange-alert-for-two-days-in-many-parts-of-jharkhand-possibility-of-heavy-rain/">झारखंडके कई हिस्सों में दो दिनों का ऑरेंज अलर्ट, भारी बारिश की संभावना [wpse_comments_template]
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