Saraikela / Jamshedpur : झारखंड में ओड़िया भाषा के साथ अन्याय होने के मुद्दे को लेकर चलाया जा रहा अभियान जोर पकड़ता दिख रहा है. इस मामले में अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर ओड़िया भाषी स्कूली बच्चों के हितों का ध्यान रखने की बात कही है, साथ ही झारखंड में नयी शिक्षा नीति 2020 को पूरी तरह लागू करते हुए इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की है.
झारखंड में 20 लाख ओड़ियाभाषी
पत्र में धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि झारखंड का सरायकेला-खरसावां जिले में ओड़िशा भाषी बहुतायत में हैं और यह ओड़िशा रियासत के 26 गढ़जात में शामिल रहा है, जिससे बाद में ओड़िशा राज्य का निर्माण हुआ. वर्तमान में झारखंड में 20 लाख ओड़िया भाषी रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर कोल्हान में रहते हैं, इसके अलावा रांची, गुमला, धनबाद, बोकारो, सिमडेगा, लोहरदगा और लातेहार जिले में भी ओड़ियाभाषी रहते हैं. ओड़िया भाषियों के राज्य आंदोलन में इनका साझा इतिहास रहा है. प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी गोपबंधु दास का इस क्षेत्र में खासा प्रभाव रहा है. जिसके परिणामस्वरूप 1913 से 1948 के बीच सरायकेला-खरसावां सहित सिंहभूम क्षेत्र में 300 ओड़िया स्कूल खोले गए. ओड़िया भाषा का उपयोग लैंड रिकॉर्ड और स्कूली शिक्षा में किया जाता रहा है.
राज्य निर्माण के समय ही ओड़िया को भाषाई अल्पसंख्यक की मान्यता सुनिश्चित हुई थी
झारखंड निर्माण के समय यह सुनिश्चित किया गया था कि यह नवनिर्मित राज्य ओड़िया भाषी लोगों को भाषाई अल्पसंख्यक के तौर पर मान्यता देता रहेगा और उनके अधिकारों की रक्षा करेगा. काफी संघर्ष और प्रतिरोध के बाद 1 सितंबर 2011 को झारखंड सरकार ने पांच दूसरी भाषाओं के साथ ओड़िया को भी राज्य की दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया था. रांची विश्वविद्यालय में ओड़िया विभाग है, वहीं जेपीएससी और एसएससी में ओड़िया को इलेक्टिव पेपर के तौर पर शामिल किया गया है.
इन मुद्दों पर केंद्रीय मंत्री ने जताई आपत्ति
- लेकिन हाल के वर्षों में ओड़िया भाषी स्कूलों और उसे मिलने वाली सुविधाओं में कमी आई है. ओड़िया माध्यम स्कूलों में रिटायर हुए शिक्षकों के स्थान पर हिंदी भाषी शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है.
- एनसीईआरटी ने झारखंड स्टेट अथॉरिटी को ओड़िया भाषी पुस्तकें प्रकाशित करने का कॉपीराइट दे रखा है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा.
- झारखंड का शिक्षा विभाग ओड़िया माध्यम के स्कूलों को हिंदी माध्यम के स्कूलों के साथ मर्ज किया जा रहा है, ऐसा ओड़िया भाषी छात्रों और शिक्षकों की कमी का हवाला देकर किया जा रहा है. यह हमारे संविधान में उल्लेखित भाषाई विविधता और भाषाई अल्पसंख्यक के अधिकारों की भावना के पूरी तरह विपरीत है.
- 2006-07 से ओड़िया भाषा में सभी विषयों के टेक्स्ट बुक छात्रों को मुहैया नहीं कराए जा रहे. सिर्फ ओड़िया भाषा विषय की कक्षा एक और दो की किताबें ही दी जा रही हैं.
- साथ ही कक्षा नौ से 12 तक के लिए जैक बोर्ड ने ओड़िया भाषा की किताबों को मान्यता नहीं दी है, जिससे ओड़िया भाषी बच्चे अपनी मातृभाषा को छोड़ हिंदी भाषा का विकल्प चुनने को मजबूर हो रहे हैं.
- ओड़िया भाषा में रिसर्च और शिक्षा के लिए सरकारी ग्रांट या फेलोशिप को लगभग पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है.
केंद्र और मेरा पूरा साथ राज्य सरकार को मिलेगा
भारतीय संविधान की धारा 350 बी भाषाई अल्पसंख्याकों को सुरक्षा प्रदान करता है. नई शिक्षा नीति 2020 भी जहां भी संभव हो मातृभाषा या स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई सुनिश्चित करने की बात करता है. धर्मेंद्र प्रधान ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कहा है कि नई शिक्षा नीति और ओड़िया भाषी स्कूली बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए मैं उम्मीद करता हूं कि आप झारखंड में ओड़िया भाषियों की इस समस्या पर ध्यान देंगे. उन्होंने कहा कि इसके लिए केंद्र सरकार और वे स्वयं राज्य सरकार की हर मदद करने को तत्पर रहेंगे. [wpse_comments_template]
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