भारत में लोकतंत्र को आईना दिखाती वी-डेम की रिपोर्ट
Faisal Anurag विश्वगुरू भारत का डंका एक बार और बज गया है. इस बार स्वीडन के एक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बजाया है. वी-डेम नाम की रिसर्च संस्था की ताजा लोकतंत्र रैकिंग में भारत को बांग्लादेश और नेपाल से भी नीचे की श्रेणी देते हुए इसे चुनावी निरंकुश बताया है. अमेरिका के फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के एक सप्ताह के अंदर यह दूसरी रिपोर्ट है, जिसमें भारत में लोकतंत्र और स्वतंत्रता को लेकर नकारात्मक टिप्प्णी की गयी है. 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही भारत को विश्वगुरु बताया जाता रहा है और मीडिया प्रचारों से यह धारणा बनायी जाती रही है कि भारत की छवि दुनिया में बेहतर हुई है और भारत का लोहा पहली बार माना जा रहा है. प्रेस की स्वतंत्रता हो या लोकतंत्र का सवाल हर रैंकिग में भारत पिछड़ा ही है. दुनिया भर में सम्मानित और ख्यात V-Dem (Varieties of Democracy) Institute ने भारत में एक ऐसी निरंकुशता की बात की है जो चुनावों की प्रक्रिया से निकलती है. वी-डेम स्वीडन का एक स्वतंत्र संस्थान है. 2018 के बाद से तो भारत के लोकतंत्र को लेकर दुनिया भर में चिंता व्यक्त की जाती रही है. भारत के उदार लोकतंत्र की सराहना करने वालों की रिपोर्ट इस अर्थ में अहम है कि दुनिया भर में इन रिपोर्टों को गंभीरता से लिया जाता है. वी-डेम की रिपोर्ट में कहा गया हे कि पाकिस्तान की तरह ही भारत एक चुनावी निरंकुशता के दौर में है. लोकतंत्र के मामले में भारत की तुलना पाकिस्तान से किया जाना चिंता की बात है. भारत के दो पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल को भी भारत से ऊपर रखा गया है. दुनिया के दस निरंकुश देशों में भारत का स्थान बांग्लादेश ओर नेपाल के बाद लिया जाना सामान्य बात तो नहीं ही है. अमेरिकी फ्रीडम हाउस ने भारत को आंशिक स्वतंत्र बताया था. फ्रीडम हाउस अमेरिकी सरकार के धन से चलता है. जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद इस रिपोर्ट में भारत को आंशिक स्वतंत्र बताये जाने के कूटनीतिक प्रभाव को भी समझा जा सकता है. वैसे बाइडेन प्रशासन भारत को साथ लेकर चलने की बात कर रहा है. लेकिन दुनिया भर में जिस तरह वह लोकतंत्र के समर्थन की बात करता है, उसे आसानी से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हांगकांग हो या म्यांमार या उक्रेन हर देश में अमेरिका लोकतंत्र समर्थकों के साथ होने की बात करता है. ऐसे में भारत में लोकतंत्र को लेकर जाने वाली रैंकिग के महत्व को समझा जा सकता है. वी-डेम की रिपोर्ट में कहा गया है सत्तारूढ़ सरकारें पहले मीडिया और नागरिक समाज पर हमला करती हैं और विरोधियों का अनादर करके और गलत सूचनाएं फैलाकर समाज का ध्रुवीकरण करती हैं. भारत के संदर्भ का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है भारत की निरंकुशता की प्रक्रिया ने पिछले दस वर्षों में ‘तीसरी लहर’ के देशों के लिए विशिष्ट पैटर्न का अनुसरण किया है. मीडिया, शिक्षाविदों और नागरिक समाज की स्वतंत्रता को पहले कम किया गया और फिर उसमें अवरोध पैदा किया गया. वी-डेम के पैमाने पर भारत 2013 से 2020 के बीच 23 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है. पिछले दस वर्षों में दुनिया भर में भारत के नाटकीय बदलावों की दर सबसे ज्यादा है. भारत के साथ ब्राजील, अर्जेटीना, तुर्की और हंगरी को रखा गया है, जिनमें सबसे ज्यादा नाटकीय बदलाव आये हैं. प्रेस पर अंकुश, देशद्रोह, मानहानि और विरोधियों को चुप कराने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार के आतंकवाद रोकथाम कानूनों के बेजा इस्तेमाल को इस निरंकुशता का कारण बताया गया है. नागरिक समाज को कमजोर करने के लिए मोदी सरकार के कदमों का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की सेकुलर छवि के खिलाफ कदम उठाये गये हैं. इसमें नागरिकता कानूनों का हवाला भी दिया गया है जो भारत की सेकुलर वैश्विक छवि को प्रभावित करता है. रिपोर्ट में विरोध करनेवालों को जेलों में बंद कर उनके खिलाफ यूएपीए के इस्तेमाल करने की बात करते हुए बुद्धिजीवियों, प्रतिरोध आंदोलनों और नागरिक सामाजिक संगठनों के खिलाफ दमनातमक कदमों को भारत की रैंकिंग गिरने का कारण बताया गया है. नागरिक स्वतंत्रता और अधिकार भी जिस तरह सरकार के निशाने पर हैं, उसे लेकर लोकतंत्रादियों की चिंता बढ़ी है. हाल ही के दिनों में किसानों के आंदोलन के संदर्भ में गायिका रिहाना और पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट पर जिस तरह की प्रतिक्रिया हुई है, उससे भारत में लोकतांत्रिक विरोध की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठे हैं.

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