Rajnish Prasad
Ranchi : रांची विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय का एक स्टूडेंट पीएचडी कर रहा है. रजिस्ट्रेशन करा चुका है. 7 हजार रुपये का भुगतान विभाग के अलग-अलग टेबल पर कर चुका है. लेकिन उसकी पीएचडी की फाइल प्रोसेस ही नहीं हो रही है. मतलब आगे बढ़ ही नहीं रही है. जिन लोगों ने पैसे लिए हैं, शायद उनका ढींढ (पेट) नहीं भरा है. उन्हें और पैसे चाहिए. स्टूडेंट् परेशन है, किरानी बाबू लोग मस्त हैं. बेचारा स्टूडेंट विभाग के सज्जनों के आगे-पीछे करते-करते उक्ता गया है. उसे खीज भी आती है, विवि की व्यवस्था पर. लेकिन आखिर करे तो करे क्या. जाए तो जाए कहां. कुलपति को भी अपनी व्यथा से अवगत कराया है, लेकिन किसी का कोई ध्यान ही नहीं. स्टूडेंट भाग-दौड़ करते-करते हांफ रहा है. लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा.
व्यवस्था से आजिज आकर उसने रांची विवि के कुलपति डॉ अजीत कुमार सिन्हा के फेसबुक प्रोफाइल पर मैसेज कर अपनी पीड़ा बतायी है. कहा है, कुलपति सर… पीएचडी की फाइल प्रोसेसिंग के लिए क्या करूं. 7 हजार रुपये दे चुका हूं. और पैसे मांगा जा रहा है. अब और पैसा कहां से लाऊं. सर, विश्वास कीजिए… फाइल प्रोसेसिंग के लिए अपनी किडनी बेच कर पैसे दे दूंगा, कृपया मेरी फाइल मत रोकिए. हमें पढ़ने दीजिए. मेरी प्रतिभा कुंठित मत कीजिए. बाकी आपका जैसा निर्देश होगा, वैसा ही करूंगा.
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जानिए, किस-किसने कितने पैसे झटके
स्टूडेंट फाइल प्रोसेसिंग नहीं होने के कारण परेशान था. उसकी रातों की नींद गायब हो गयी है. फाइल के बारे में सोचते-सोचते नींद ही नहीं आती. कुलपति डॉ अजीत कुमार सिन्हा को भेजे मैसेज में स्टूडेंट ने बताया है कि कहां-कहां किसे कितने पैसे दिया. बताया कि किसी प्रदीप नाम के सज्जन से पहला पाला पड़ा. उन्हें 500- 500- 500 रुपये तीन बार दिया. फिर पाला पड़ा किसी विजय वर्मा नाम के सज्जन से. उन्होंने 2000 रुपये लिया. इसके बाद अनमोल नाम के सज्जन प्रोसेसिंग के रास्ते में मिले. इन्होंने भी 1500 और 500 रुपये झटक लिए. कहा, चिंता न करियो, सब काम हो जाएगा. इसके बाद सुधीर नाम के सज्जन आए. उन्होंने भी 1500 व 500 झटक लिया. कहा, चिंता न कीजिए. सबकुछ बढि़या से हो जाएगा. इसके बाद करमवीर नाम के सज्जन भी रास्ते में मिल गए. इन्होंने भी बहती गंगा में हाथ धोने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. 500-500- 500 रुपये तीन बार झटक लिए. कहा.. काम हो जाएगा. लेकिन हुआ कुछ नहीं.
पीएचडी की फाइल प्रोसेसिंग करा दें, कृपा होगी
स्टूडेंट का कहना है कि उसकी पीएचडी की फाइल जहां अटकी थी, अब भी वहीं अटकी है. प्रोसेसिंग हो ही नहीं रही है. यानी फाइल हिलडुल भी नहीं रही. कुलपति को भेजे संदेश में छात्र ने बताया कि विवि की हालत क्या है. उससे कहा जा रहा है कि अब कुछ और दिया जाए. कुल मिला कर 7000 रुपये तो दे दिया. मगर अब और मांगा जा रहा है. क्या करूं सर, मैं किडनी बेच कर पैसे दे दूंगा, लेकिन मेरी फाइल तो मत रोकिए हुजूर. पीएचडी की फाइल प्रोसेसिंग करा दीजिए, बड़ी कृपा होगी.
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