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वीर बुधु भगत ने फूंका था अंग्रेजों के विरूद्ध बिगुल, पढ़ें उनके संघर्ष की कहानी

-कोल विद्रोह 1831-32 के महानायक वीर बुधु भगत के शहादत के 191 वर्ष पूरे होने पर विशेष -आत्मसमर्पण करने के बजाए अपने तलवार से खुद का सिर धड़ से अलग करके शहीद हो गए Ranchi: 1831- 32 के कोल विद्रोह के महानायक वीर बुधु भगत का जन्म 17 फरवरी 1792 को रांची जिला के चान्हो प्रखंड के सिलागाई गांव में एक उरांव आदिवासी परिवार में हुआ था. प्राचीन काल से ही छोटानागपुर क्षेत्र में आदिवासी के बहुत से समुदाय आपस में मिलजुल कर शांति पूर्वक रहते थे. इनका आजीविका का मुख्य आधार खेती था. वे जंगलों की सफाई कर बंजर भूमि को खेती लायक बना कर उस पर खेती बारी करते थे और अपना जीवन यापन करते थे. आदिवासियों के जीवन में मध्यकाल में परिवर्तन आने लगा. मुगल काल में बहुत से व्यापारी और अन्य लोगों का छोटानागपुर के इलाकों में प्रवेश हुआ. आदिवासियों पर शोषण की शुरुआत हुई. बंगाल में अंग्रेजी सरकार की स्थापना के साथ ही इनके आर्थिक जीवन पर भी बहुत प्रभाव पड़ा. आदिवासियों के प्राचीन भूमि व्यवस्था के अनुसार जमीन का कोई मालिक नहीं होता था और ना ही जमीन के लिए व्यक्ति विशेष को जमीन का पट्टा दिया जाता था. आदिवासियों में राजा प्रथा का प्रचलन भी नहीं था. आदिवासी समाज में सब कुछ सामूहिकता और सहभागिता के सिद्धांत पर चलता था, लेकिन आदिवासियों के बीच राजा प्रथा का आरंभ होने तथा राजा के द्वारा जमीन की स्थाई बंदोबस्त के कारण इस क्षेत्र में जागीरदार, जमीदार और महाजन का एक नया वर्ग सामने आया. इन सभी ने मिलकर आदिवासियों का शारीरिक एवं आर्थिक शोषण करना आरंभ कर दिया. इन लोगों के द्वारा आदिवासियों के प्राचीन भूमि व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया. इन सभी ने आदिवासियों के भूमि को हथियाने के लिए निर्दयता, क्रूरता और हिंसा के तरीके अख्तियार किए. बाहरी लोगों के आगमन से आदिवासियों की प्राचीन भूमि व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई. इन बाहरी लोगों में आसपास के क्षेत्रों से आने वाले किसान,व्यवसायी और व्यापारी थे, जिन्हें जमीन की बेइंतहा भूख थी. इन लोगों ने आदिवासियों की भूमि हड़पने शुरू कर दी. बाहर से आने वाले नए लोगों ने राजा या उसके नाते रिश्तेदारों द्वारा दिए गए जमीन के पट्टे के बल पर मुंडा और मानकियों को अपने शिकंजे में जकड़ लिया और आदिवासी स्वामियों को उनके ही जमीन से निकाल बाहर कर दिया. इन बाहरी लोगों द्वारा राजा और उसके नाते रिश्तेदारों से जमीन का पट्टा लिखा कर आदिवासियों से हजारों एकड़ भुईहरी जमीन ऐठी और उस पर अपना निजी स्वामित्व स्थापित कर लिया तथा भुईहरी जमीन को मझियस जमीन में परिणत कर लिया .इस प्रकार आदिवासी जमीन के मालिक से लगान देने वाले रैयत बन गए .

अंग्रेजों के आने के पूर्व ही छोटानागपुर के इलाके में भूमि संबंधी अशांति का बीज बोया गया

अंग्रेज के आने के पूर्व से ही छोटा नागपुर के इलाकों में भूमि संबंधी अशांति के बीज बो दिए गए थे. 1765 में अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ ही छोटा नागपुर में बाहरी लोगों का प्रवेश और बढ़ गया. अंग्रेजों के शासन में भी आदिवासियों को कोई राहत नहीं मिली. अंग्रेजों ने भी छोटानागपुर के राजाओं के द्वारा लागू की गई जागीरदारी, जमीदारी व्यवस्था को बरकरार रखा और आदिवासियों की पडहा और पारंपरिक भूमि व्यवस्था की अनदेखी की. अंग्रेजी शासन में आदिवासियों पर अनेक प्रकार के कर लाद दिए गए जैसे - अबकारी कर, नमक कर, हड़िया कर, गृह कर इत्यादि. आबकारी कर में आदिवासियों पर अफीम की खेती करने हेतु जबरदस्ती दबाव बनाया जाता था. खेती नहीं करने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता था. कर नहीं चुका पाने की स्थिति में इनकी जमीन को नीलाम कर दिया जाता था. इनके गाय, बैल, बकरी, अनाज इत्यादि छीन लिया जाता था. आदिवासी स्त्री पुरुषों को जमीदारों एवं जागीरदारों के घरों में काम करने के लिए बाध्य किया जाता था. पुलिस प्रशासन एवं सरकारी कर्मचारी सभी जमीदारों और जागीरदारों के पक्ष में काम किया करते थे. सूदखोरों का भी अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा था वह भोले-भाले आदिवासियों को ऋण के जाल में फंसा कर बंधुआ मजदूर बना लेते थे .

आदिवासियों को अंग्रेजी कोर्ट-कचहरी के नियम-कानून नहीं पता था

आदिवासियों को अंग्रेजी कोर्ट कचहरी के नियम और कायदे कानून पता नहीं थे. समय-समय पर इन बाहरी लोगों द्वारा अदालत जहां इन उनकी तूती बोलती थी का भी सहारा लिया करते थे. वे अदालत में खुद को जमीदार और आदिवासियों को रैयत बतलाते थे. उनके दस्तावेजी सबूत मुंडाओं के मौखिक बयानों या अलिखित परंपराओं की तुलना में कारगर हो जाते थे. न्यायालयों का भी हाल था कि वह मुंडारी खूटकट्टी कश्त के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते थे. वहां के न्यायाधीशगण मुंडा भूमि प्रणाली और जमीदारी प्रथा के बीच का अंतर समझ नहीं पाते थे. इस प्रकार भूमि संबंधी सभी फैसले जमीदार और जागीरदारों के पक्ष में ही होते थे. वीर बुधू भगत ने जमीदारों और अंग्रेजी सेना की क्रूरता देख कर बड़े हो रहे थे. वीर बुधु भगत ने बचपन से ही जमीदारों, जागीरदारों, सूदखोरों एवं अंग्रेजी सेना की क्रूरता को देखा था, यह सब देखकर वे बड़े हो रहे थे. उन्होंने देखा था कि जमीदार और जागीरदार किस प्रकार गरीब आदिवासियों के मवेशी और तैयार फसलों को जबरदस्ती उठाकर ले जाते थे और गरीब गांव वालों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचता था. उनके घर अनाज के अभाव में कई कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था.

शोषण देखकर बेचैन रहते थे बुधु भगत

बालक बुधु भगत इस घोर शोषण को देखकर बेचैन रहते थे, वह घंटों कोयल नदी के किनारे बैठकर अंग्रेजों, जमीदारों, जागीरदारों और सूदखोरों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे. वीर बुधु भगत बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली व गुणवान थे. इसलिए लोग उन्हें देवी शक्तियों का स्वामी कहते थे. वह हमेशा अपने पास एक कुल्हाड़ी रखा करते थे. वह तलवार और तीर धनुष चलाने में निपुण थे, साथ ही वे अच्छे घुड़सवार भी थे.| उनमें अदम्य साहस व अद्भुत नेतृत्व क्षमता थी.

सिलागाईं में कोल विद्रोह का नेतृत्व किया, पत्नी, बेटे और बेटियों ने जमींदार और अंग्रेजी सेना को पस्त कर दिया

अंग्रेजी शासन एवं जमीदारों, जागीरदारों और सूदखोरों के विरुद्ध जब 11 दिसंबर 1831 में तमाड़ से महान कोल विद्रोह की शुरुआत हुई. तब वीर बुधु भगत ने सिलागाई समेत आसपास के इलाकों में विद्रोह का नेतृत्व किया. वीर बुधु भगत और उनकी पत्नी बालकुंदरी भगत उनके तीन बेटे हलधर, गिरधर और उदयकरण भगत तथा उसके दो बेटियां रुनिया और झुनिया के नेतृत्व में आदिवासी योद्धाओं ने जमीदार जागीरदार और अंग्रेज सेना को पस्त कर दिया था. वीर बुधु भगत और उनके तीनों बेटे तथा बेटियों के खौफ से बहुत सारे जमीदार जमीदार और सूदखोर अपना सब कुछ छोड़कर छोटानागपुर के क्षेत्र से भाग खड़े हुए थे. वीर बुधु भगत और उनके बेटे - बेटियों ने अंग्रेजी सेना और जागीरदारों, जमीदारों तथा सूदखोरों को जान माल की बहुत क्षति पहुंचाई थी.

गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण देकर योद्धा तैयार किया, अंग्रेजों ने बुधु भगत को पकड़ने के लिए 1 हजार रुपये का इनाम घोषित किया

वीर बुधु भगत द्वारा अपने दस्ते के योद्धाओं को गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया था. जिसका फायदा उठाकर कई बार आदिवासी योद्धाओं ने अंग्रेज सेना को परास्त किया था. वीर बुधु भगत के नेतृत्व में हजारों हथियारबंद योद्धाओं के विद्रोह से अंग्रेज सरकार और जमीदार, जागीरदार कांप उठे और उन्हें पकड़ने हेतु ₹1000 रुपये का इनाम की घोषणा की गई. वीर बुधु भगत छोटानागपुर के प्रथम क्रांतिकारी थे. जिसे पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की गई. यह एक अनूठा चारा था जिसे मुखबिर और धन लोलुप को आकर्षित करने के लिए डाला गया था. संभवत अंग्रेजों द्वारा इस प्रकार के प्रलोभन कि यह पहली घटना थी परंतु कोई भी इनाम के लालच में नहीं आया, इससे वीर बुधु भगत की लोकप्रियता एवं नेतृत्व कौशल का मूल्यांकन किया जा सकता है . छोटानागपुर में वीर बुधु भगत को प्रथम श्रेय जाता है कि उनके शीश के लिए अंग्रेजों ने पुरस्कार की घोषणा की थी. कालांतर में बिरसा मुंडा को भी पकड़वाने हेतु भी इनाम की घोषणा अंग्रेजों द्वारा की गई लेकिन दोनों योद्धाओं में महत्वपूर्ण अंतर यह थी कि वीर बुधु भगत को पकड़वाने के बारे में कोई व्यक्ति सोच भी नहीं सकता था. जबकि बिरसा मुंडा को धन लोलुपओ के द्वारा पकड़वा दिया गया था.

अजातशत्रु थे वीर बुधु भगत

वस्तुतः वीर बुधु भगत अजातशत्रु थे और जनमानस उनसे विलग होने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. वीर बुधु भगत की लोकप्रियता इतनी प्रबल थी कि चारों और बंदूकधारी सैनिकों से घिरे हुए अपने नेता वीर बुधु भगत को बचाने के लिए लगभग 300 व्यक्तियों ने वीर बुधु भगत के चारों ओर से घेरा डाल दिया था. घेरा डाले लोग अंग्रेजों की गोलियों को झेलते हुए गिरते जा रहे थे और वीर बुधु भगत अंग्रेज सेना के पहुंच से बाहर होता जा रहा था. अपने नेता के लिए प्राणों की आहुति देने की स्पर्धा, मानव शरीर की सुदृढ दीवार सिर्फ और सिर्फ वीर बुधु भगत के लिए ही हो सकता था. वीर बुधु भगत जैसा महानायक इस धरती पर इना- गिना ही जन्म लेता है. छोटानागपुर में अब तक हुए आंदोलनों में यद्यपि अनेक नेताओं एवं शहीदों का नाम आदिवासियों के बीच उभरा एवं चमका है, किंतु वीर बुधु भगत को इन सब में श्रेष्ठ और शीर्षस्थ माना जा सकता है.

थक-हार के अंग्रेजी सरकार ने बुधु भगत को पकड़ने का जिम्मा कैप्टन इंपे को दिया, मगर रहे विफल

थक हार कर अंग्रेज सरकार ने वीर बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इम्पे को सौंपा.कैप्टन इम्पे इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि वीर बुधु भगत को पकड़ना इतना आसान नहीं है. कैप्टन इम्पे ने वीर बुधु भगत को पकड़ने के लिए अपनी सारी शक्ति झोंक दी लेकिन वह वीर बुधु भगत को पकड़ नहीं सके. अंग्रेज गुप्तचरों के सूचनाओं के आधार पर जब अंग्रेज सैनिक अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचती और इन्हें घेर पाती इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत अपना कार्य पूर्ण कर जंगलों और झाड़ियों में खो जाते थे. कुछ पता ही नहीं चल पाता था कि वह किस गति से, किस मार्ग से और किस प्रकार एक क्षण इस जगह पर तो दूसरे क्षण किसी दूसरी जगह पर कैसे पहुंच जाते थे, उनकी यही चपलता, क्षिपता और कार्यकुशलता के कारण ग्रामीणों को अभास हो गया था कि उन पर दैवीय शक्ति का वास है. चूंकि वीर बुधु भगत को जंगल, पहाड़ एवं बीहड़ों के मार्गों का अच्छा ज्ञान था साथ ही वीर बुधु भगत को व्यापक जन समर्थन प्राप्त था हर घर, हर झोपड़ी उन्हें ओट देने को तत्पर रहते थे, यही कारण था कि अंग्रेजों के लाखों प्रयत्नों के बाद भी तथा अपनी संपूर्ण ताकत झोंकने के बाद भी वह वीर बुधु भगत को पकड़ ना सके.

अंग्रेजों को बाहर से बुलाने पड़े सैनिक

हैरान-परेशान अंग्रेजी सरकार ने वीर बुधु भगत को पकड़ने के लिए बाहर से सैनिक बुलाने का फैसला किया. जनवरी 1832 के अंत तक छोटानागपुर में बाहर से सैन्य बलों का आना प्रारंभ हो गया. 25 जनवरी को कैप्टन विलकिंग्सन के पास 200 बंदूकधारी और 50 घुड़सवारो का एक दल देव के मित्रभान सिंह के नेतृत्व में आया. टेकारी के महाराज मित्रजीत सिंह ने कैप्टन विलकिंग्सन को 300 बंदूकधारी और 200 घुड़सवार दिए महाराज मित्र अजीत सिंह के भतीजे विशुन सिंह ने 150 बंदूकधारी और 70 घुड़सवार भेजें तथा खान बहादुर खान ने 300 सैनिक दिए. इसके अलावा अंग्रेज सरकार ने बंगाल के बैरकपुर से एक रेजीमेंट पैदल सैनिक. दमदम से एक बिग्रेड घुड़सवार तथा तोपखाने और मिदनापुर से 300 पैदल सैनिक भेजें. बनारस और दानापुर से भी अतिरिक्त सैन्य बल बुलाया गया. अतिरिक्त सैन्य बल और घुड़सवारी दस्तों के आने से परिस्थितियां बदलने लगी. फरवरी के प्रथम सप्ताह तक छोटानागपुर की धरती अंग्रेज सैनिकों घुड़सवार दस्तों और अंग्रेज अफसरों से भर गई.

आत्मसमर्पण करने के बजाए अपनी तलवार से खुद का सिर धड़ से अलग करके शहीद हो गए

13 फरवरी 1832 को कैप्टन इम्पे ने चार कंपनी पैदल सैनिक और घुड़सवार दस्तों के साथ सिलागाई गांव को घेर लिया. वीर बुधु भगत उनकी पत्नी बालकुन्दरी भगत अपने छोटे भाई उदय करण भगत तथा अपने दो बेटियां रुनिया और झुनिया तथा अपने भाई और भतीजा समेत सैकड़ों वीर योद्धाओं ने मिलकर अंग्रेज सैनिकों से कड़ा संघर्ष किया और उनसे वीरता पूर्वक लड़े. दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ, लेकिन उनके तीर तलवार अंग्रेजों के बंदूक के आगे ज्यादा देर टिक नहीं सके और इस लड़ाई में वीर बुधु भगत, उनकी पत्नी बालकुंदरी भगत उनके छोटे बेटे उदय करण भगत उनकी दोनों बेटियां रुनिया और झुनिया उनका भाई और भतीजा समेत सैकड़ों योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए. वीर बुधु भगत को अंग्रेज सैनिकों ने चारों ओर से घेर लिया और उसे आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन वीर बुधु भगत को गुलामी करने से ज्यादा मरना पसंद था, उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बजाए अपने तलवार से खुद ही अपने सिर को धड़ से अलग कर दिया और शहीद हो गए. -लेखक : देव कुमार धान पूर्व मंत्री और संयोजक आदिवासी महासभा [wpse_comments_template]

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