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विधानसभा की पवित्रता को नष्ट करने का अर्थ है लोकतंत्र को कमजोर करना
alt="" width="600" height="400" /> विधायकों और राजनीतिक दलों को यह समझना चाहिए कि झारखंड की जनता के अनेक सवाल हैं. उन सवालों पर सरकार को घेरने और सरकार का जबाव सुनने के बजाय राजनीतिक हितों का अखाड़ा बना देना बेहद खतरनाक प्रक्रिया और प्रवृति है. विधानसभा की पवित्रता को नष्ट करने का अर्थ है लोकतंत्र को कमजोर करना. विधानसभा न तो पूजापाठ की जगह है, न ही नमाज, प्रेयर या अरदास की. इससे बचने की सख्त जरूरत है. लेकिन न तो सरकार, न ही विपक्ष अपने लोकतांत्रिक दायित्व को निभाने के लिए तैयार दिख रहे है. जो विधानसभा की पूर्व की पंरपराये है अगर उसका पलान किया जाता है. तो न ही सत्ता पक्ष को परेशानी होनी चाहिए, न ही विपक्ष दलों को. इसके बाद भी विधानसभा सत्र बधित होता. राज्य की जनता के सरोकार पर सीधा कुठाराघात है. [caption id="attachment_149395" align="aligncenter" width="600"]
alt="" width="600" height="400" /> सदन के बाहर प्रदर्शन करते बीजेपी विधायक[/caption] इसे भी पढ़ें - ये">https://lagatar.in/what-an-online-system-dr-shukla-mohanty-is-still-the-principal-of-womens-university-on-the-chancellors-portal-on-online-enrolment/">ये
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सशक्त विपक्ष ही सरकार के दायित्व से भटकने की राह रोक सकता है
विधायकों को इस तथ्य को समझना चाहिए की वोटरों के लिए बेमानी के मुद्दे खड़े नहीं किए जाने चाहिए. छोटे से सत्र का इस्तेमाल राज्य के हितों के लिए होना चाहिए. एक सशक्त विपक्ष ही सरकार के दायित्व से भटकने से रोक सकता है. इस भूमिका से पलायन न तो जनता माफ करती है और न ही इसकी कोई माफी होती है. सरकार में रहने से कई बार ज्यादा जरूरी होता है विपक्ष में रहना. जो ताकतवर भूमिका से सरकार को दबाव में रखना. इस समय विपक्ष में 27 सदस्य हैं लेकिन इसके बावजूद उनकी भूमिका अब तक ऐसी नहीं रही है कि कोई भी सरकार दबाव महसूस करे. न तो परेशान करने वाले सवाल हैं और न ही सरकार की नीतियों पर प्रहार की ईमानदारी. डा. राम मनोहर लोहिया जिस जमाने में लोकसभा के सदस्य थे. विपक्ष बेहद कमजोर था, लेकिन उनकी बहस सुनने के लिए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सदन में मौजूद रहते थे. तीन आना बनाम तेरह आना की वह बहस संसदीय इतिहास में आज भी महत्वूपूर्ण माना जाता है. जिसने नेहरू काल की नीतियों को बेपर्द किया था. लोहिया तो यहां तक कहा करते थे कि सदन को आवारा होने से रोकने के लिए सड़क और बहस जरूरी है.alt="" width="600" height="400" /> इसे भी पढ़ें - झारखंड">https://lagatar.in/see-photo-video-of-the-performance-of-bjp-mlas-outside-the-house-on-the-second-day-of-jharkhand-assembly/">झारखंड
विधानसभा के दूसरे दिन सदन के बाहर बीजेपी विधायकों के प्रदर्शन का देखें फोटो, वीडियो
रोजगार ,सेवा की गारंटी जैसे विषय पर सदन में क्यों नहीं होती चर्चा
झारखंड की विधानसभा में अब तक हुई बहसों में देखा जाये तो एक दो ही विधायक ऐसे रहे हैं जिन्हें राज्य सरकार ओर नौकरशाही ने गंभीरता से सुना हैं. राज्य में तो हर दिन रोजगार और सेवा की गारंटी के लिए आंदोलन हो रहे हैं. यदि पिछले 15 दिनों को देखा जाये तो नौकरी के लिए सड़क पर आंदोलन के स्वर बुलंद होते रहे. लेकिन इस गंभीर सवाल पर विधायकों की भूमिका निराशा ही पैदा करती है. इसे भी पढ़ें - विधानसभा">https://lagatar.in/monsoon-session-of-the-assembly-bjp-mlas-reached-the-well-raised-slogans-of-jai-shri-ram-and-har-har-mahadev-protesting-against-the-planning-policy/">विधानसभाका मानसून सत्र : वेल में पहुंचे BJP विधायक, जय श्री राम व हर हर महादेव के नारे लगाये, नियोजन नीति का विरोध
माननीय राज्य की जनता का मर्म समझिये
माननीय आप तो वोटरों से जो वयदे किए हैं उनके प्रति गंभीर बनिए. राजनीति जरूर कीजिए लेकिन विधानसभा के सत्र का बेहतर इस्तेमाल कीजिए. यह तो पांच कार्य दिवस का ही सत्र है इसे बर्बाद होने नहीं दीजिए. लोकतंत्र में सत्ता स्थायी नहीं होती, जिसे राजनीतिक दलों को भी समझना चाहिए. सदन परिसर में धार्मिक भेदभाव का काई कदम नहीं उठाया जाये. इसे भी पढ़ें - महाराष्ट्र">https://lagatar.in/ed-issues-look-out-notice-to-former-maharashtra-home-minister-anil-deshmukh/">महाराष्ट्रके पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को ईडी ने जारी किया लुक आउट नोटिस [wpse_comments_template]
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