- 20 से 25 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर तय होता है सौदा
- दबंग बंदियों को दी गयी है वसूली की जिम्मेदारी
- पैसा नहीं दे पानेवाले बंदियों को गंदे शौचालय के बगल वाला मिलता है वार्ड
Hazaribagh : हजारीबाग जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारागार में बंदियों के वार्ड बिकते हैं. सुविधाजनक वार्ड की बोली लगती है. माल डाउन करो, वार्ड में सुविधा भोगो. जेल प्रशासन के अफसरों की मिलीभगत से यह सबकुछ किया जाता है. वार्ड की सौदेबाजी की जिम्मेदारी दबंग बंदियों के पास होती है. पिछले माह जेल से छूटकर आये एक बंदी का कहना है कि 20 से 25 हजार रुपये प्रतिमाह किराये पर वार्ड का सौदा तय किया जाता है. उस वार्ड में बंदियों को एशो आराम की सुविधा मुहैया करायी जाती है. वहां दबंग बंदियों के नेतृत्व में कई बंदी आराम फरमाते हैं. जो बंदी उन वार्डों में जाने की रकम नहीं दे पाते, उन्हें गंदे शौचालय के बगल में रहने के लिए जगह दे दी जाती है. शौचालय के दुर्गंध के कारण वहां उनका जीवन नरक बन जाता है. ऐसे में कई बंदी चाहते हैं कि आराम वाले वार्ड में ही उन्हें जगह मिल जाये. इसके लिए वे मेहनत या किसी अन्य विधि से रकम जुटाने या पैरवी-पैगाम के फेर में लगे रहते हैं. उस वार्ड से जो पैसे आते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा जेल सुपरिटेंडेंट के पॉकेट में भी जाता है. जैले से लौटे कैदी ने बताया कि जेल अधीक्षक की जानकारी में ही सबकुछ होता है. वीआईपी या पैसेवाले कैदियों को आराम वाला वार्ड उपलब्ध कराने की डील ऊपर-ऊपर ही हो जाती है.
जेल सुपरिटेंडेंट के कारनामों की खबर सीएम को एक्स किया, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी भेजी जानकारी
कांग्रेस ओबीसी प्रकोष्ठ के झारखंड स्टेट को-ऑर्डिनेटर सुरजीत नागवाला ने हजारीबाग सेंट्रल जेल के कारनामों की शुभम संदेश में प्रकाशित हो रही खबरें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक्स (पूर्व में ट्वीट) की है. उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली के साथ-साथ मंत्री चंपई सोरेन, आलमगीर आलम, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, डीसी और डीडीसी को भी इसकी जानकारी एक्स के माध्यम से दी है. उन्होंने कहा कि जेल में हर कोई अपराधी नहीं है. कई निर्दोष बंदी भी हैं, जो इंसाफ की आस में हैं. उनका शोषण किया जा रहा है. इसकी ईमानदारी, पारदर्शी तरीके और निष्पक्षता से उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए. साथ ही दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए. अगर कार्रवाई नहीं हुई, तो वह जेल व जेल अधीक्षक के कारनामों के खिलाफ धरने पर बैठेंगे.
बिना डॉक्टर के हस्ताक्षर के बंदियों के भोजन मामले में 50 लाख के हेरफेर का नहीं किया कोई जिक्र
जेल अधीक्षक कुमार चंद्रशेखर ने मंगलवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर वही बातें दोहराईं, जो खबरों के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने बताया था. 27 गायों में 18 को दुधारू बताते हुए हर दिन 70 लीटर दूध मिलने की बात कही है. वहीं बताया गया है कि आत्मसमर्पण करनेवाले नक्सली बंदियों को दूध की आपूर्ति की जाती है. लेकिन जब इनसे उनका पक्ष मांगा गया था, तो उन्होंने कहा था कि जेलकर्मी दूध खरीदते हैं और मरीज बंदियों, बच्चों और दुर्बल महिलाओं को दूध दिया जाता है. ऐसे में अपनी ही बात से जेल अधीक्षक मुकर गए हैं.
गायों के चारे पर प्रतिदिन 250 रुपए खर्च बता रहे हैं. यहां यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि बाहर से दूध इसीलिए मंगाने की आवश्यकता है. विज्ञप्ति में 180 लीटर ईंधन की खपत को कम बताया गया है. लेकिन इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया कि अगर डीजल कम पड़ जाते हैं, तो वह क्षतिपूर्ति कहां से करते हैं. यह बात भी स्वीकारी गई है कि जेल अस्पताल में 120 मरीजों की क्षमता है और हर दिन सौ से 125 बंदी भर्ती रहते हैं. दिलचस्प बात यह है कि जेल में डॉक्टर के हस्ताक्षर के बिना बंदी मरीजों के भोजन में 50 लाख की अनियमितता के संबंध में कोई जिक्र नहीं किया गया है. इस मामले का जिक्र करना जेल अधीक्षक कैसे भूल गए.
खर्च के बारे में क्या बताते हैं गोपालक और पशुपालन पदाधिकारी
मंडई के गोपालक दिनेश गोप बताते हैं कि अगर दुधारू गायों को 250 रुपये का चारा खिलाएं, तो कम-से-कम 10 लीटर दूध देती हैं. वहीं औसतन 100 से 150 रुपये का खर्च एक साधारण गाय के चारे में होता है. इस तरह अगर जेल की 17 गायों की ही चर्चा करें, तो जेल अधीक्षक के मुताबिक 70 लीटर दूध होने की बात साफ-तौर पर झुठला रही है. इतनी गायों में कम-से-कम 150 लीटर दूध तो होना ही चाहिए. चारे में कुछ ऐसा ही खर्च जिला पशुपालन पदाधिकारी ने भी बताया.