Saurav Shukla
Ranchi : पहली नजर का प्यार क्या होता है, ये सवाल कोई उस महिला से पूछे जिसके सामने पहली बार उसका नवजात शिशु आया हो. मां-बच्चे का रिश्ता इस दुनिया में सबसे खूबसूरत और अनमोल है. बच्चा दर्द में होता है, तकलीफ मां को होती है. वो मुस्कुराता है तो खुश मां होती है. मां के प्यार, त्याग, समर्पण को शब्दों में बताना आसान नहीं है. वैसे तो हर दिन ही बच्चों को पैरेंट्स के लिए खास बनाना चाहिए जो पूरी तरह मां को समर्पित है. ये दिन है मदर्स डे का, जो इस साल 9 मई, रविवार यानी आज है. मदर्स डे के अवसर पर कुछ ऐसी माताओं की कहानी बता रहे हैं. ये माएं जिम्मेदारी, जज्बात और डर के बीच हर रोज अपनी ड्यूटी पर तैनात हैं.
पिछले 1 सालों से कोरोना मरीजों की सेवा कर खींच रही एक अलग रेखा
रिम्स के ट्रॉमा सेंटर जिसे कोविड वार्ड बनाया गया है. यहां पिछले 1 साल से भी अधिक समय से मरीजों की सेवा कर रही हैं सीनियर नर्स रामरेखा राय. रामरेखा राय ने अपनी सेवा से एक ऐसी रेखा खींच दी है, जिस पर उनके बच्चों को भी नाज है. रामरेखा कहती हैं कि मैं मरीजों की सेवा हर रोज करती हूं और यही मेरा कर्तव्य. मेरे तीन बच्चे हैं और बच्चों की भावना मेरे प्रति हमेशा रहती है. कोविड ड्यूटी के दौरान मेरे बच्चे सहयोग करते हैं. मेरे लिए टिफिन बना कर देना और अस्पताल लाने और ले जाने में हर रोज मदद करते हैं.
परिवार सर्वोपरि, लेकिन जिम्मेदारी ऐसी की समाज की सेवा करना मेरा परमकर्तव्य
रिम्स ब्लड बैंक की चिकित्सक डॉ कविता देवघरिया कहती हैं कि परिवार सर्वोपरि है. लेकिन जिस पेशे से मैं जुड़ी हुई हूं, यहां मेरे लिए समाज सर्वोपरि है. मेरे परिवार के लोग कोरोना संक्रमित हुए और मैंने उनकी बेबसी को सामने से देखा है. इस महामारी में कैसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है ये मैंने देखा है. उन्होंने कहा कि हर एक कोरोना संक्रमित मरीजों के परिजनों की परिस्थिति को भी समझती हूं. बच्चे भी जानते हैं कि मेरी मां एक ऐसे पेशे से जुड़ी हुई है जहां समाज की सेवा करने की जरूरत है. हमारे बच्चे हर रोज मेरा सहयोग करते हैं. आज मदर्स डे है और मेरे बच्चों ने मुझे मदर्स डे विश किया और इससे आत्मसंतुष्टि मिलती है.
डॉक्टर होने के नाते महामारी में कर्तव्य और बढ़ा है
रिम्स ब्लड बैंक में बतौर असिस्टेंट प्रोफ़ेसर काम कर रही डॉ उषा सरोज ने कहा कि चिकित्सक होने के नाते इस महामारी में हमारा कर्तव्य ज्यादा बढ़ गया है. अपने बच्चों को कम समय दे पा रही हूं. लेकिन बच्चे समझदार हैं. वे जानते हैं कि इस महामारी में लोगों की जान बचाना सबसे जरूरी है. काम खत्म करने के बाद घर लौट कर बच्चों के साथ समय बिताती हूं.
महामारी में ड्यूटी करने के बाद बच्चों से रहती हूं दूर
रिम्स में बतौर वार्ड अटेंडेंट काम कर रही हैं, खेलगांव की रहने वाली रीता कहती हैं कि मेरे दो बच्चे हैं. लेकिन कोरोना वार्ड में ड्यूटी करने के कारण घर लौट कर के बच्चों से दूरी बना कर रखती हूं. मां की ममता है, लेकिन संक्रमण का खतरा भी बना रहता है. ऐसे में उन्हें दूर से ही निहारती और पुचकारती हूं. आज मदर्स डे है और बच्चों ने मुझे मदर्स डे विश कर अपने हाथों से बनाया हुआ कार्ड गिफ्ट किया.