Ranchi : झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और राज्य के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा कि हमारा इतिहास रहा है कि अनुसूचित जनजाति के बीच ही लोग अपना राजा चुनते रहे हैं. उन्होंने मोरहाबादी-बोरिया रोड में शनिवार को महाराजा मदरा मुंडा की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया.
इस मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जमीन की रक्षा और शोषण के खिलाफ चाहे वह ईस्ट इंडिया कंपनी हो या ब्रिटिश हुकुमत हो, आदिवासियों ने ही विद्रोह और संघर्ष का बिगुल फूंकने का काम किया. राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्र में चाहे वह कोल विद्रोह हो या भगवान बिरसा मुंडा का अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष हो अथवा 1858 में संतालपरगना इलाके में हूल आंदोलन हो, सभी स्थानों पर जनजातीय समाज ने जमीन बचाने के लिए एवं शोषण से मुक्ति के लिए संघर्ष किया. सत्ता भले ही इधर से उधर गयी, लेकिन जमीन की रक्षा और शोषण के खिलाफ पूर्वजों का इतिहास संघर्ष भरा रहा.
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डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा, हम अपनी जमीन का अधिकार नहीं दे सकते
डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा कि हम अपने पूर्वजों का इतिहास पढ़ेंगे, हम रांची जिला में अलग-अलग जगहों पर महाराजा मदरा मुंडा की प्रतिमा भी लगाएंगे. आदिवासी मूलवासी के हाथों में अभी शासन आया है, देश सबका है, राज्य सबका है, रहने का सबको अधिकार है, सबकी लेकिन शोषण करने का और जमीन लूटने का अधिकार हम किसी को नहीं दे सकते. हमारी परंपरा हमारी संस्कृति, हमारी भाषा, हमारी जमीन, हमारा सबकुछ है.
शासक का पहला हक मुंडाओं को मिलना चाहिए : विधायक
मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद सिमडेगा के विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी ने मुंडाओं के इतिहास पर रोशनी डालते हुए कहा कि 600 ईसा पूर्व हमारे पूर्वज पिठोरिया के सुतियाम्बे में आये थे. हमारा जुड़ाव सिंधु घाटी सभ्यता, मोहनजोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति से है, जिनके इतिहास, संस्कृति, परंपराओं को दबाया जा रहा है. मुंडा समाज अत्याचार के शिकार हुए हैं. विधायक ने कहा, शासक का पहला हक मुंडाओं को मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि महाराजा मदरा मुंडा एक बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी शासक थे. मदरा मुंडा का शासनकाल महाभारत काल के समकक्ष था. इन्होंने महाभारत के युद्ध में भी भाग लिया था और छोटानागपुर के एक बहुत ही लोकप्रिय शासक थे. इन्हीं के कार्यकाल में पड़हा शासन व्यवस्था विकसित हुई.
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