- कोरोना से 30 लाख से ज्यादा जानें गईं, स्पैनिश फ्लू से हमने खोये थे 5 करोड़ लोग
- प्लेग ने भी मचाई थी तबाही, दुनियाभर में 20 करोड़ लोग मारे गये थे
- 45 साल में एड्स से दुनियाभर में 3.6 करोड़ लोगों की मौत
LagatarDesk : इतिहास गवाह है कि महामारियों ने हर काल खंड में तबाही मचाया है. सदियों से मानव जाति इन महामारियों से जूझता रहा है. इस सदी की अबतक की सबसे बड़ी महामारी बनकर आये कोरोना की दहशत बढ़ती जा रही है. दुनिया भर में इस संक्रमण ने 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. 2020 में जब यह महामारी पहली लहर के साथ तबाही लेकर आयी तो पूरी दुनिया ने इससे मजबूती से लड़ाई लड़ी.
इसपर बहुत हद तक काबू भी पाया गया, लेकिन सरकार और आम लोगों की लापरवाहियों के कारण फिर से स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल हो चुकी है, लेकिन हम बहुत जल्द इस वायरस को खत्म करने में कामयाब होंगे. मानव जाति पर 430 ईसा पूर्व से ही महामारियों का हमला होता रहा है. उस वक्त जब हम इतने सभ्य नहीं थे. इतने प्रगतिशील, वैज्ञानिक रूप से मजबूत और चिकित्सकीय सुविधाओं से इतने लैस नहीं थे. तब हमने प्लेग, हैजा और इन्फ्लुएंजा जैसी भयानक महामारियों को हराया था. आज तो हमारे पास सारी सुविधाएं हैं.
महामारी से बचने का उपाय है तो फिर हम कैसे नहीं इसपर कंट्रोल करेंगे. हमने वह दौर भी देखा है जब 100 साल पहले 1918 से 1920 के बीच मदर ऑफ ऑल पैंडिमिक्स यानी स्पैनिश इन्फ्लुएंजा ने पूरी दुनिया में जबरदस्त तबाही मचाई थी. उस वक्त 2 साल में 5 करोड़ लोग इस महामारी की चपेट में आकर मौत की नींद सो गये थे.
प्लेग ने मचाई थी भारी तबाही
1346 से 1353 के दौरान यूरोप में प्लेग महामारी फैली थी. इसने अफ्रीका और एशिया में भी कहर बरपा दी थी. बताया जाता है कि इससे कुल 7.5 करोड़ से 20 करोड़ लोग मारे गए. कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत एशिया से हुई. इसके बाद 1720 में दुनिया में द ग्रेट प्लेग आफ मार्सेल फैला था. यूके की डिफेंस इवैल्युएशन एंड रिसर्च एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक अकेले भारत में ही प्लेग से 1 करोड़ लोगों की मौत हुई थी. आखिरकार हमने इस महामारी से जंग जीती और यह पूरी तरह खत्म हो गया.
हैजा महामारी ने 10 लाख लोगों की जान ली थी
वैश्विक महामारी हैजा का प्रकोप 1852 से 1860 के दौरान सबसे अधिक रहा. इसकी शुरुअत भी भारत से हुई और फिर यह एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका तक फैल गया. इसने 10 लाख लोगों की जान ली. ब्रिटिश डॉक्टर जॉन स्नो ने गरीब इलाकों में रहते हुए इसकी पहचान की. उन्होंने पता लगाया कि खराब पानी इसकी सबसे बड़ी वजह है. 1854 में इस बीमारी ने ग्रेट ब्रिटेन में 23,000 लोगों को मौत के घाट उतारा था. एशियाई देशों में कॉलरा यानी हैजा ने महामारी का रूप लिया था. इस महामारी ने जापान, अरब देशों, भारत, बैंकॉक, मनीला, जावा, चीन और मॉरिशस जैसे देशों को अपनी जकड़ में ले लिया था. जागरुकता और बचाव के उपाय कर इसपर पर भी काबू पाया गया.
स्पैनिश फ्लू से हुई थी 5 करोड़ लोगों की मौत
इसके बाद 1920 के करीब महामारी की तबाही स्पैनिश फ्लू की शक्ल में आई. 1918 से 1920 के बीच पूरी दुनिया में यह फ़्लू फैल गया था. इसने दुनिया की एक-तिहाई आबादी को संक्रमित कर दिया था. जब यह ख़त्म हुआ, तब तक पांच करोड़ लोग इससे मारे जा चुके थे. वैज्ञानिकों और इतिहासकारों का मानना है कि उस वक्त दुनिया की आबादी 1.8 अरब थी और आबादी का एक-तिहाई हिस्सा संक्रमण की चपेट में आ गया था. उस वक्त अमेरिकी शहरों में किए गए उपायों के एक विश्लेषण से पता चलता है कि जिन शहरों ने लोगों के इकट्ठे होने, थिएटर खोलने, स्कूलों और चर्चों के खुलने पर रोक लगा दी थी वहां मौतों का आंकड़ा काफी कम था.
एड्स से अबतक 3.6 करोड़ लोगों की मौत
एचआईवी की शुरुआत साल 1976 में अफ्रीकी देश कॉन्गो से हुई थी. बाद में यह पूरी दुनिया में फैल गया. 1976 के बाद इसने 3.6 करोड़ लोगों की जान ली थी. अभी करीब 3.1 से 3.5 करोड़ लोग एचआईवी संक्रमित हैं. ज्यादातर लोग अफ्रीकी देशों के हैं. बढ़ती जागरुकता और इलाज की नई प्रणालियों के विकास ने एचआईवी को जड़ से खत्म तो नहीं किया है, मगर इसकी रोकथाम को लेकर कई इलाज तैयार कर लिए हैं.
साल 2005 से 2012 के दौरान इसका प्रभाव सबसे अधिक था. इस दौरान वार्षिक मौत का आंकड़ा 22 लाख से 16 लाख तक घटा है. अनुमान के मुताबिक 2025 तक एड्स से भारत में 31 मिलियन और चीन में 18 मिलियन लोगों की मौत हो सकती है. अफ्रीका में एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या 2025 तक 90-100 मिलियन तक पहुंच सकती है.