Soumitra Roy भारत और अमेरिका के बीच कल यानी की 27 अक्टूबर 2020 को हुआ बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) असल में एक सैन्य तकनीकी समझौता है.
इसे सरल भाषा में यूं समझें
कैब की सवारी करते हुए आपने ड्राइवर के पास मोबाइल पर लगा जीपीएस देखा होगा, जो मंज़िल पर पहुंचाने के बजाय भटकाता ज़्यादा है. यह भारतीय जीपीएस का कमाल है. इसके मुकाबले अमेरिकी सैन्य संचार उपग्रहों का जीपीएस 1 मीटर की सटीकता से राह दिखाता है. रक्षा सूत्रों का मानना है कि भारत ने इस साल मार्च के बाद लगातार मिसाइल परीक्षण किए. यह देखने के लिए कि अमेरिकी जीपीएस से मिसाइलें किस कदर अचूक मार करती हैं. हमारे सिर के ऊपर मंडराते अमेरिकी उपग्रह दुनिया के चप्पे-चप्पे पर नज़र रखते हैं. चाहे ओसामा बिन लादेन को उठाना हो या ड्रोन की मदद से ईरानी जनरल की हत्या करनी हो, यही उपग्रह हवाई अभियानों को रास्ता दिखाते हैं. अगर टारगेट की लोकेशन बदल भी जाये तो भी अमेरिकी सैन्य उपग्रह मिसाइल को आखिरी एक सेकंड तक बदलती लोकेशन बताते रहेंगे. इसके उलट भारतीय मिसाइलें इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करती हैं. इसमें मिसाइल के निशाना चूकने का जोखिम है, क्योंकि इन्हें रास्ता दिखाने वाले सैन्य और जासूसी उपग्रहों के भू-स्थानिक डेटा अमेरिकी उपग्रहों जितने उन्नत नहीं हैं. तो इस समझौते से भारत ने क्या खोया और क्या पाया?
पहले देखते हैं कि क्या पाया. भारत के 70% हथियार, मिसाइलें और साजो-सामान रूसी हैं. अब तकरीबन सभी में अमेरिकी सैन्य और जासूसी उपग्रहों के जीपीएस लग जाएंगे. अगर आपके मोबाइल में ऐसा जीपीएस उपकरण लगा हो जिसका नियंत्रण एक दूसरे देश के पास हो और वह हर पल आपके लोकेशन पर नज़र रखे. भारत को दुनिया के सबसे खतरनाक प्रिडेटर ड्रोन मिलेंगे. भारत को मिले अमेरिकी निगरानी विमानों की तस्वीरें भी अमेरिका को मिलेगी और टारगेट भी वहीं से फिक्स होंगे. भारत और अमेरिका दोनों के निशाने पर चीन है, पाकिस्तान नहीं. अब आप खुश जरूर हुए होंगे. तो खोने की भी बात कर लें. `बेका` भारत और अमेरिका के बीच होने वाले चार मूलभूत समझौतों में से आख़िरी है. पहला समझौता 2002 में किया गया था, जो सैन्य सूचना की सुरक्षा को लेकर था. इसके बाद दो समझौते 2016 और 2018 में हुए जो लॉजिस्टिक्स और सुरक्षित संचार से जुड़े थे. `बेका` समझौता क्वैड देशों-भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया को जोड़ने की कड़ी है. अमेरिका दुनिया के 57 देशों के साथ बेका जैसा समझौता कर चुका है. सबसे चिंता की बात यह कि भारत के तमाम हथियारों की लोकेशन, पोजिशन और टारगेट अमेरिका के पास होंगे. दूसरी बड़ी चिंता डेटा लीक होने की है. हालांकि दोनों देशों में डेटा की सुरक्षा का समझौता है. फिर भी चिंता तो होगी, क्योंकि चीन साइबर जासूसी में अव्वल है. एक और चिंता जो सबसे बड़ी है, वह यह कि भारत के लिए इस समझौते से पीछे हटना अब लगभग नामुमकिन है. भारत की समूची रक्षा प्रणाली अब अमेरिकी हाथों में है. व्यापार, बाजार से लेकर देश के तमाम आर्थिक हितों को लेकर हम अमेरिका के इशारों पर नाचने को मजबूर होंगे. इसे एक लाइन में समझ लीजिए कि भारत का चौकीदार बदल गया है. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.