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यह कैसा दौर आ गया है जिसमें नेता ही अवैज्ञानिक ज्ञान दे रहे हैं

FAISAL ANURAG

एक हैं तीरथ सिंह रावत और एक हैं त्रिवेंद्र सिंह राव. तीरथ सिंह रावत मार्च में ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने हैं. उसके पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत थे. दोनों ही अजीबो गरीब ज्ञान बांटने के लिए मसहूर हो गये. लेकिन उनके ज्ञान से दुनिया भर के वैज्ञानिक अभिभूत है. उनके विज्ञान संबंधी ज्ञान ने तो त्रिपुरा के मुख्यमंत्री को पीछे छोड़ दिया है. ये वहीं रावत हैं जिन्हें हवाई जहाज में लड़की की फटी जिंस दिखती है. और उन्हें पता चल जाता है कि वह लड़की जेएनयू ब्रांडय अतिभज एनजीओ की है. यह तो शायद न्यूटन और आईंस्टीन जैसे वैज्ञानिक भी नहीं बता पाते. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कोरोना वायरस भी एक प्राणी है और उसे भी जीने का अधिकार है. अब जो लोग यह सवाल उठाते हैं कि कोराना की महामारी की दूसरी लहर के लिए धार्मिक आयोजन, राजनीतिक आयोजन और केंद्र सरकार जिम्मेदार है, उन्हें समझ लेना चाहिए कि रावतों के ज्ञान का वे मुकाबला नहीं कर सकते. कुछ ही समय पहले तो तीरथ सिंह रावत ने कहा था कुंभ में गंगा स्नान से कोरोना नहीं फैल सकता. त्रिवेंद्र सिंह रावत तो यहीं नहीं ठहरे, उन्होंने तो यहां तक ज्ञान दिया है कि कोराना वायरस के पीछे लोग पड़े हुए हैं. जबकि वह जान बचाने के लिए अपना रूप बदल रहा है और बहुरूपिया बन गया है.

इस तरह ज्ञान नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पसंद केवल रावत ही नहीं देते, बल्कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव भी देते रहे हैं. लेकिन अब वे रावत से पीछे रह गए हैं. कभी पूर्वोत्तर के राज्यों में राज्यपाल रहे तथागत राय भी इस तरह के ज्ञान देने में नाम कमा चुके हैं.

केंद्र में एक मंत्री हैं सदानंद गौड़ा उनकी बातें भी कम दिलचस्प नहीं हैं. उन्होंने ने तो एक ऐसी बात कह दी है जो शायद मंत्री के पद पर बैठा कोई जिम्मेदार व्यक्ति कहने का साहस कभी नहीं जुटा सकता है. उन्होंने कहा है कि वैक्सीन की कमी के लिए क्या हमें फांसी पर लटक जाना चाहिए ? पूरे केंद्र सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने के इस प्रयास को क्या कहा जा सकता है. यह तो संवेदनशील नागरिक ही तय कर सकते हैं. लेकिन इस संदर्भ में नोटबंदी के बाद के उस भाषण को याद किया जा सकता है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पचास दिनों का समय मांगते हुए कहा था कि यदि वे कामयाब नहीं हुए तो चौराहे पर वे जनता की सजा के लिए हाजिर हो जाएंगे. वे 50 दिन बीत गये, लेकिन नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की तबाही का सिलसिला थमा ही नहीं है.

एक बात साफ हो गयी है जब जब ब्रांड मोदी की आलोचना होती है. भाजपा के नेता ऐसी ही बेतुकी बातें करना शुरू कर देते हैं. लेकिन इस बार का ममला बेहद पेचीदा है. बड़ी संख्या में लोग मरे हैं, और अब भी खतरें में हैं. सरकारी आंकड़ों को तो श्मशान और कब्रिस्तान के आंकड़े झूठ साबित कर चुके हैं. गुजरात की हकीकत को तो भास्कर समूह के गुजराती अखबार दिव्य भास्कर ने उजागर कर दिया है और गुजरात समाचार ने भी. शायद केंद्र के शासक समझ नहीं पा रहे हैं या खुद को ही धोखा दे रहे हैं कि हेडलाइन मैनेज कर लेने मात्र से इमेज नहीं बचाया जा सकता है. जो सारी दुनिया में संदेहास्पद हो चुका है.

आनेवाले दिनों तो इस तरह के और भी बयान सुनने देखने को मिल जाएगा. भाजपा सांसद मुंबई के पुलिस कमिश्नर रह चुके सत्यपाल सिंह अकेले नहीं हैं. गुजरात के उस दृश्य को याद कीजिए जिसमें एक सासंद के निर्देश पर लोग बिना मास्क और दूरी के गोबर से नहा रहे हैं. गोबर ज्ञान भी भारत में भाजपा नेता ही दे सकते हैं.