Faisal Anurag
जब देश में मरघटी मातम गहरा रहा है, तब सरकारें और उनके अगुवा क्या कर रहे हैं? लगभग 3 लाख 80 हजार नये पॉजिटिव मामलों के बावजूद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्वीट कर रहे हैं कि आखिरी दौर में लोकतंत्र का जश्न मनाने बड़ी संख्या में मतदान केंद्रो पर पहुंचें. सुपरस्प्रेडर बन चुके इन चुनावों में मतदान केंद्रों पर बचाव के उपायों की पोल खुल चुकी है. आखिर बंगाल के लिए इतनी जिद क्यों है? जिद के दबाव में ही आठ चरणों में मतदान कराये गये हैं और इसका परिणाम यह है कि पूरे बंगाल में कोरोना का तांडव हो रहा है. यही जिद पंचायत चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में है, जहां अब तक 135 मतदानकर्मियों की मौत कोरोना से हो चुकी है. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के जनपद गोरखपुर में चुनाव में तैनात 20 शिक्षकों की मौत का ताजा मामला प्रकाश में आया है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो फरमान जारी कर दिया है. जिसका साफ मायने है चाहे मौत हो या तबाही, चुप रहो. यदि बोलोगे तो सरकार संपत्ति जब्त कर लेगी. इसका ही एक ताजा मामला आया है पत्रकार आरफा खानम शेरवानी पर मुकदमा. उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया है. उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट, जिसमें उन्होंने रायबरेली के एक जरूरतमंद कोविड मरीज के लिए आक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराने की अपील की थी, को अफवाह फैलानेवाला माना गया है. यह तो होना ही था, जब आदित्यनाथ कह चुके हैं कि यूपी में बेड, ऑक्सीजन या दवा की कमी नहीं है, तब इस तरह की अपील उनकी छवि को ही प्रभावित करती है.
आदित्यनाथ की सरकार ने तो इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को भी मानने की बजाय सुप्रीम कोर्ट जाना पसंद किया, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित छह शहरों में लॉकडाउन लगाने की बात कही गयी थी. सुप्रीम कोर्ट राहत दे चुका है. चूंकि अहम चुनाव हैं, ऐसे हालात में सरकार से ऑक्सीजन की मांग करना अपराध ही तो माना जाएगा न. ऑक्सीजन की उपलब्धता का दावा करने वाली बिहार सरकार को भी पटना हाईकोर्ट ने कठघड़े में खड़ा कर दिया है. बिहार सरकार से पटना हाईकोर्ट ने पूछा है कि यदि ऑक्सीजन की कमी नहीं है, तो फिर लोग क्यों मर रहे हैं.
यह सिर्फ राज्यों में नहीं हो रहा बल्कि केंद्र सरकार का रवैया भी इससे भिन्न नहीं है. पहले तो केंद्र ने ट्वीटर से कहा कि कुछ पोस्ट को उसे हटा देना चाहिए. ये वे पोस्ट्स थे, जिन्हें लेकर केंद्र सरकार असहज थी. ट्वीटर ने 52 पोस्ट को हटा भी दिया. बुधवार को फेसबुक पर हैशटेग “रिजाइनमोदी” को ब्लॉक कर दिया. लेकिन जब सोशल मीडिया पर हंगामा हुआ और हैशटैग “फेसबुकअगेंस्टइंडिया” ट्रेंड करने लगा तो हैशटैग रिजाइनमोदी को रिस्टोर किया गया. बाद में फेसबुक ने कहा कि यह अनजाने में ब्लॉक हो गया था. इसके लिए उस पर सरकार का कोई दबाव नहीं था. तथ्य जो भी हो, लेकिन मौजूदा हालात में यह माना नहीं जा सकता कि फेसबुक ने इसे अनजाने में ब्लॉक किया.
दरअसल केंद्र सरकार ओर उसके नक्शेकदम पर कई राज्य सरकारें केवल मीडिया प्रबंधन के सहारे अपनी निष्क्रियता को छिपाना चाहती हैं. मौत के आंकड़ों को कम कर दिखाये जाने के संदर्भ में तो विदेशी मीडिया पर कई लेख और खोजी रिपोर्ट छप चुकी है. ऑस्ट्रेलिया के एक अखबार द ऑस्ट्रेलियन ने जब यह लिखा कि भारत की मौजूदा तबाही के लिए नरेंद्र मोदी के अंध राष्ट्रवादी रवैया और चुनावी प्रचार की बड़ी भूमिका है, तब भारत सरकार तथ्यों को गलत बताने के अभियान में लग गयी. भारत की मीडिया को तो नियंत्रित किया जा चुका है, लेकिन विदेशी मीडिया चुप नहीं है. फ्रांस के सबसे बड़े अखबार ली मांद, ब्रिटेन के दो बड़े अखबार जिसमें द गार्डियन भी है, में भारत की वर्तमान तबाही की चर्चा है.
जब लोग त्राहिमाम का संदेश दे रहे हैं, उस समय भी नरेंद्र मोदी सरकार ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की मदद की पहल को यह कहते हुए ठुकरा दिया है कि हमारे पास पुख्ता इंतजाम हैं. द क्विंट ने न्यूज एजेंसी पीटीआई के हवाले से बताया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेस के एक प्रवक्ता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने अपनी इंटीग्रेटेड सप्लाई चेन की मदद की पेशकश थी, जिसे भारत ने ये कहते हुए ठुकरा दिया कि उसके पास हालात निपटने की एक ‘मजबूत व्यवस्था’ है.
यानी जो बात आदित्यनाथ, नीतीश कुमार सहित कई मुख्यमंत्री कह रहे हैं, उसे अब केंद्र भी कहने लगा है. यह मजबूत व्यवस्था आखिर है कहां. मौतों के वे आंकड़े भी घबराहट और दहशत बढ़ा रहे हैं, जिसे सरकारी तंत्र ही बता रहा है. तो सरकार को बताना चाहिए कि चुनावी जिद और मजबूत लॉजिस्टिक के दावे के पीछे का मंसूबा क्या है?