कांग्रेस के लिए कन्हैया एक प्रयोग हैं. चर्चित युवा नेताओं को अपने पाले में लाने का प्रयोग. बुजुर्ग नेताओं को दरकिनार करने का प्रयोग. नेतृत्व में ताजगी लाने का प्रयोग. वैसा ही प्रयोग, जैसा कांग्रेस ने पंजाब या बीजेपी ने गुजरात में किया. याद रहे, कभी-कभी प्रयोग के परिणाम सार्थक नहीं होते. वैसा ही जैसा पंजाब में हो रहा.बताया गया है कि कांग्रेस उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने जा रही है. बिहार कांग्रेस कमेटी के प्रमुख मदन मोहन झा का कार्यकाल समाप्त हो गया है. संभव है कि कांग्रेस उन्हें बिहार का नेतृत्व सौंप दे. संभव है कि कन्हैया लोकसभा या राज्यसभा में चले जाएं. अब सवाल यह कि कन्हैया से कांग्रेस को क्या मिलेगा? कन्हैया से कांग्रेस को वही फायदा होगा, जो नवादा की सभा में सुरजीत के भाषण के बाद लालू प्रसाद की सभा से हुआ था. यानी कन्हैया क्राउड पुलर वक्ता हैं. वे भीड़ खींच सकते हैं. मजमा जमा सकते हैं. तालियां पिटवा सकते हैं. नारे लगवा सकते हैं. लेकिन वोट? यह एक सरलीकृत व्याख्या है, लेकिन है कि अगर कन्हैया वोट दिलवा सकते, तो बेगूसराय लोकसभा का चुनाव बड़बोले गिरिराज सिंह से बुरी तरह क्यों हार जाते? बेगूसराय में पूरे देश से कन्हैया प्रेमी जुटे थे. मजमा जमा. नारे लगे. क्राउड फंडिंग हुई. लेकिन कन्हैया साढ़े चार लाख मतों से हार गए. इसलिए कहा जाता है कि भीड़, वोट का परिचायक नहीं है. वोट का गणित अलग है. वोट इससे नहीं मिलते कि आप कितने विद्वान, ईमानदार, गुणी हैं या भाषणवीर हैं. ये सारे गुण महज उत्प्रेरक का काम कर सकते हैं. मजमा जमाना अलग बात है, और वोट अलग. भीड़ को वोट में बदल लेना टेढ़ी खीर है. वोट सिर्फ नेता से नहीं मिलते. वोट मिलते हैं नेता, संगठन, पॉलिसी और भावना से. यह भावना जातीय, धार्मिक, राष्ट्र, राज्य कुछ भी हो सकता है. इसलिए सौ टके की बात हुई कि कन्हैया फिलहाल यूपी और बाद में बिहार या दूसरे राज्यों में कांग्रेस का मजमा जमाएंगे. भीड़ जुटाएंगे. संभव है कि कुछ भावना आधारित वोट दिलवा दें. इसलिए मानकर चलिए कि कन्हैया कोई चमत्कार नहीं करने जा रहे हैं. दरअसल, कांग्रेस के लिए कन्हैया एक प्रयोग हैं. चर्चित युवा नेताओं को अपने पाले में लाने का प्रयोग. बुजुर्ग नेताओं को दरकिनार करने का प्रयोग. नेतृत्व में ताजगी लाने का प्रयोग. वैसा ही प्रयोग, जैसा कांग्रेस ने पंजाब या बीजेपी ने गुजरात में किया. याद रहे, कभी-कभी प्रयोग के परिणाम सार्थक नहीं होते. वैसा ही जैसा पंजाब में हो रहा. अब कन्हैया से जोड़कर कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी के बयान पढ़ लीजिएगा. क्या कन्हैया के प्रयोग से कांग्रेस को ताकत मिलेगी? जवाब के लिए इंतजार कीजिए. [wpse_comments_template]
कन्हैया से कांग्रेस को क्या मिलेगा?

Dr Santosh Manav साल-माह-तिथि याद नहीं. महाराष्ट्र के लोकप्रिय अखबार समूह `लोकमत` ने लोकसभा चुनाव कवर करने बिहार-झारखंड भेजा था. मुझे ठीक-ठीक याद है, कदाचित वह नवादा की एक चुनावी सभा थी. सीपीएम महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत बोल रहे थे. वे IMF, विश्व बैंक, WTO, व्यापारिक समझौते आदि की बातें कर रहे थे. बमुश्किल दो हजार श्रोता रहे होंगे. सुरजीत के बाद लालू प्रसाद यादव की बारी आयी. लालू प्रसाद ने आते ही समां बांध दिया. वे कह रहे थे- इसके बाद टमाटर, कोहड़ा की तरह होगा. खुश मत हो. ऊ बड़का टमाटर काटोगे, तो उसमें से निकलेगा गोबर. श्रोता मंत्रमुग्ध थे. वे तालियां पीट रहे थे. नारे लगा रहे थे. दो हजार श्रोता वाली सभा, बढ़कर बीस हजार की हो गयी थी. मैदान भर गया था. सभा खत्म होने से पहले मैं निकल गया. अब आप पूछेंगे, मैंने उस सभा की याद क्यों दिलायी? इसका संदर्भ है, यह आप आगे समझेंगे. कन्हैया कुमार अब कांग्रेस पार्टी के सम्मानित सदस्य हैं. कांग्रेस बड़े अरमान के साथ उन्हें ले आयी है. सीपीआई से कांग्रेस में आए कन्हैया को व्यक्तिगत फायदा हुआ है. वे एक बड़ी पार्टी के मेंबर हो गए.
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