Girish Malviya
मोदी सरकार ने IDBI बैंक को बेचने पर मुहर लगा दी है. आईडीबीआई एक सरकारी बैंक था, जो 1964 में देश में बना था. शेयर बाजार के जानकार बताते हैं कि जमकर इनसाइडर ट्रेडिंग हुई है. शायद कुछ लोगों को पहले से मालूम था कि उस दिन IDBI के डिसइन्वेस्टमेंट की घोषणा होने वाली है. प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की बैठक की तो लगा कोरोना काल में जनता को राहत देने वाला कोई फैसला होगा.
सोचने वाली बात है कि यह फैसला आपने दो साल पहले क्यों नहीं लिया ? जब आपने LIC से 21,000 करोड़ रुपये का निवेश करवाया था. औऱ उसे जबरदस्ती 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने को मजबूर किया था ? उसी समय बेच देते ! लेकिन तब कैसे बेचते ? क्योंकि तब तो IDBI बैंक एनपीए के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला बैंक बना हुआ था.
उस वक्त आईडीबीआई बैंक का सकल एनपीए 27.95% तक पहुंच गया था. जिसका मतलब है कि बैंक द्वारा लोन किए गए प्रत्येक 100 रुपये में से 28 रुपये एनपीए में बदल गया था. तब आपने LIC को आगे कर दिया कि इसे बचाओ. नहीं तो बैंक डूबने का सिलसिला शुरू हो जाएगा. उसे लगातार… चार सालों से घाटा हो रहा था और इस साल उसे सालों बाद फायदा होना शुरू हुआ तो झट से उसे बीच चौराहे पर बोली लगाने की वस्तु बना दिया गया.
LIC से IDBI में हिस्सेदारी खरीदवाने के लिए भी खूब खेल खेले गए थे. दरअसल एलआईसी उस वक्त आईडीबीआई के शेयर नहीं खरीद सकती थी. उस पर किसी एक कंपनी में अधिकतम 15 फीसदी शेयर खरीदने की शर्त लागू थी. और एलआईसी के पास आईडीबीआई के 10.82 प्रतिशत हिस्सेदारी पहले से ही थी. लेकिन सारे नियम बदल दिए गए थे. उसकी भागीदारी 51 प्रतिशत करवा दी गयी और उससे 21 हजार करोड़ डालने का दबाव बनाया गया.
ये पैसा आप और हम ही मिलकर के भरते हैं, जब हम पॉलिसी का प्रीमियम चुकाते हैं. एलआईसी पॉलिसीधारकों के पैसे से ही खड़ा हुआ है और उस पैसे की सुरक्षा उसका प्राथमिक दायित्व है. तो एक डूबते हुए बैंक में नियंत्रण की हिस्सेदारी खरीदना एक समझदारी भरा निर्णय नहीं हो सकता था. लेकिन उस वक़्त भी घाटे के सौदे मे हमारे खून पसीने की बचत को होम किया गया.
एलआईसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पहले से ही एक बड़ा निवेशक रहा है और भारत के 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से 16 में 9% से अधिक हिस्सेदारी रखता है. तो उसके बावजूद उसे सर्वाधिक NPA वाले बैंक में इतनी बड़ी हिस्सेदारी के लिए मजबूर किया गया.
जब एलआईसी के बड़ी हिस्सेदारी खरीदने पर सेबी के पूर्व चेयरमैन एम दामोदरन से पूछा गया था तो उन्होंने स्पष्ट कहा था कि इससे ना तो एलआईसी को फायदा होगा ना आईडीबीआई बैंक को. आज उनकी बात सच निकली. अंततः यह बैंक बिक गया. पता नहीं लोग अब भी क्यों नहीं समझ पा रहे हैं.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.