vijay Shankar singh
खबर है कि मोदी सरकार ने कार्टूनिस्ट मंजुल के कार्टून से असहज होकर ट्विटर से उनका कार्टून हटाने के लिये कहा है. एक डरा हुआ नायक, देश और समाज को गर्त में ले जाता है. एक तरफ तब के प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्हें एक कार्टून में तब के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर ने एक गधे के रूप में चित्रित किया था. उस कार्टून की इतनी आलोचना होने लगी कि शंकर बेचारे अपराधबोध से ग्रस्त हो गए. वे दिन भर यही सोचते रहे कि कहीं कुछ अधिक तो नहीं हो गया है. दूसरे दिन नेहरू का उनके पास फोन आता है. शंकर ने सोचा वे माफी मांग लेंगे, यदि नेहरू ने कुछ नाराज़गी जताई तो. पर नेहरू ने कहा कि, “शंकर क्या आप एक गधे के साथ शाम चाय पीने आ सकते हो ?”
शंकर को सूझा ही नहीं कि वे क्या कहें. उन्होंने कहा ‘जी आ जाऊंगा.’ शंकर यह सोच कर गए कि, अच्छा है आमने-सामने बात होगी तो मैं, नेहरू का गुस्सा, अच्छी तरह से शान्त कर सकूंगा.
शाम हुई और शंकर नेहरू के आवास पर. हंस-हंस कर बातें होती रही. चाय आयी. साथ-साथ पी गयी. नेहरू ने आत्मीयता के साथ बात की. कहीं गुस्सा, नाराजगी, शिकवे दिखे ही नहीं. फिर तो शंकर भी सहज हो गए. चैन की सांस ली. जब नेहरू, शंकर को विदा करने के लिये उठे तो, यह कहा कि, ” डोंट स्पेयर मी शंकर!” यानी जैसे कार्टून बना रहे हो बनाते रहना और हां, मुझे भी न छोड़ना.
शंकर ने ‘डोंट स्पेयर मी शंकर’ पर नेहरू का एक और कार्टून दूसरे दिन बना दिया. वह भी छपा. शंकर देश के सबसे पहले चर्चित कार्टूनिस्ट थे. केवल कार्टून पर ही उन्होंने एक साप्ताहिक पत्र निकाला, शंकर्स वीकली. उन्होंने गांधी, नेहरू, अंबेडकर, सब पर अपने कार्टून बनाये. और आज तक किसी भी नेता ने किसी कार्टूनिस्ट के कार्टून को अखबार से हटाने के लिये अखबार मालिक से नहीं कहा होगा.
आज का वक़्त होता तो, शंकर देशद्रोह में जेल में होते. गोगोई, बोबडे, जैसे महानुभाव जजों की अदालत होती तो, जमानत के लिये तारीखें ले रहे होते. सरकार अखबार का विज्ञापन बंद कर देती और अखबार मालिक, सरकार का जुगाड़ ढूंढ रहे होते !
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.