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कब राशन देगी सरकार! कांदा- गेठी खाकर जी रहे दो आदिम परिवार

लगातार न्यूज नेटवर्क संवाद सूत्र Latehar: झारखंड में आदिम जनजाति आबादी को पूरी तरह से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए 3 अप्रैल 2017 को तत्कालीन रघुवर दास की सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की थी. इस योजना को आदिम जनजाति खाद्यान्न सुरक्षा योजना नाम दिया गया था. जिसके तहत सीधे तौर पर हर आदिम जनजाति परिवार के घर तक अनाज पहुंचाना है. इसलिए इसे डाकिया योजना का भी नाम दिया गया है, लेकिन लातेहार जिले के दो आदिम परिवार के लिए यह योजना बेकार साबित हो रही है. उनके घर अनाज कभी पहुंचा ही नहीं. इसे भी पढ़ें- खलिहान">https://lagatar.in/agriculture-minister-in-barn-farmers-will-get-loan-waiver-on-29th-december/9972/">खलिहान

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जरूरतमंद परिवार अब भी इस योजना से हैं दूर

यह योजना कई जरूरतमंद आदिम परिवारों की पहुंच से अबतक दूर है. सुदूर इलाके के आदिम जनजाति परिवार जानकारी के अभाव में इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे ही दो परिवार लातेहार जिले के बरवाडीह में मोरवाई कला पंचायत के सैदुप गांव के हैं. राशन कार्ड नहीं होने के वजह से इन्हें कांदा, गेठी खाकर गुजरा करना पड़ रहा है. [caption id="attachment_10000" align="aligncenter" width="1280"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2020/12/लगातार-4.jpg"

alt="" width="1280" height="720" /> सरकारी राशन की आस में सैदुप गांव की सरजा देवी[/caption]

जिला में लंबित है आवेदन, पेंशन भी हुई खारिज

सैदुप गांव की सरजा देवी के पति हरेंद्र कोरवा ईंट भट्ठा में काम करते हैं. उनके पास राशन कार्ड नहीं है. सरजा देवी ने राशन कार्ड के लिए आवेदन भी दिया लेकिन वह आवेदन जिला में ही लंबित है. लगातार">http://lagatar.in">लगातार

न्यूज नेटवर्क संवाद सूत्र ने सैदुप गांव जाकर आदिम जनजाति परिवार की वस्तु स्थिति जानी. सरजा देवी ने बताया कि उसके आावेदन की संख्या 3590116094 है. सरजा ने कहा कि उन्हें आदिम जनजाति पेंशन योजना का भी लाभ नहीं मिला है. जबकि उनका पेंशन नवंबर 2017 में ही स्वीकृत कर दिया गया है. सरजा देवी ने आगे कहा कि जब काम मिलता है, तब उस पैसे से बाजार से 20 रुपये किलो चावल खरीदती हैं. पैसे नहीं होने पर कांदा, गेठी खा कर गुजारा करना पडता है. इसे भी पढ़ें- किसानों">https://lagatar.in/to-convince-the-farmers-on-december-15-the-kisan-panchayat-of-bjp-in-all-the-divisions/9971/">किसानों

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गांव के भुरोइया की स्थिति और भी दयनीय है

सरजा देवी की तरह कोरवा आदिम जनजाति समुदाय की भुरोइया मसोमात का भी राशन कार्ड नहीं बना है. भुरोइया के पति कोमल कोरवा गुजर चुके हैं. भुरोइया का पहले राशन कार्ड था लेकिन 2015 में राज्य में खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद उनका कार्ड नहीं बना. भुरोइया घर में अकेले रहती हैं. बेटे बाहर काम करते हैं. गांव में इधर-उधर काम कर कमा कर बाजार से चावल खरीदती हैं. ज्ञात हो कि झारखंड में डाकिया योजना के तहत आदिम जनजाति परिवार के घर तक पैकेट में 35 किलो चावल निःशुल्क पहुंचाने का प्रावधान है. लेकिन सरजा देवी और भुरोइया मसोमात की तरह अभी भी सूबे में कई परिवार हैं जो सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं.

डाकिया योजना लिए 68731 आदिम जनजाति परिवार चिन्हित

आदिम जनजातियों को खाद्य सुरक्षा योजना से जोड़ने के लिए सूबे की पूर्व की सरकार ने योजना की शुरुआत गोड्डा जिले के पिछड़े प्रखंड सुंदरपहाड़ी, पलामू जिले के चैनपुर प्रखंड और साहेबगंज जिले के बरहेट प्रखंड से की थी. योजना के तहत 35 किलो को थैली में पैक किया हुआ चावल आदिम जनजाति परिवारों के घर तक पहुंचाना है. इसके लिए राज्य के सभी 68731 आदिम जनजाति परिवारों को चिन्हित किया गया है. इसे भी देखें-

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