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’क्या शीर्ष नेता ही नहीं चाहते, हो बंटवारा !, बोर्ड-निगम पर झारखंड कांग्रेस ने कार्यकर्ताओं को फिर दिया आश्वासन

Ranchi: प्रदेश की सत्ता में आने के बाद से ही जमीन स्तर के कांग्रेस कार्यकर्ता बोर्ड-निगम में जगह पाने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं की इस चाहत में कभी कोरोना तो कभी आंतरिक गुटबाजी ने रुकावट पैदा किया है. 2020 गुजरने के बाद अब 2021 का आधा समय भी खत्म हो चुका है. प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह के तय डेडलाइन की अवधि खत्म हुए पांच माह पूरे होने को है. लेकिन अभी तक निगम बोर्ड-निगम बंटवारे की दिशा में सक्रियता तक नहीं दिखी है. हालांकि बंटवारे को लेकर एक कमेटी तो जरूर बनी है, लेकिन इसे भी केवल खानापूर्ति करने जैसी बात की जा रही है. एक बार फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव जमीनी कार्यकर्ताओं को आश्वासन दे रहे हैं कि जल्द ही बोर्ड-निगम का बंटवारा हो जाएगा. इस आश्वासन से अलग कार्यकर्ता अब यह भी कह रहे हैं कि लगता है कि शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच रखने वाले नेता ही नहीं चाहते कि बंटवारा हो.

आरपीएन सिंह की तय डेडलाइन फेल, पार्टी ने क्यों नहीं दिखायी सक्रियता

दिल्ली से लौटने के बाद रविवार को प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना संकट की दूसरी लहर के कारण बोर्ड-निगम का बंटवारा काम टाल दिया गया है. स्थिति जैसे ही सामान्य होगी, तभी गठन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. इसपर कांग्रेसी कार्यकर्ता काफी नाराज भी बताये जा रहे हैं. कांग्रेस जिला के कुछ अध्यक्षों का कहना है कि डॉ उरांव आखिर यह क्यों नहीं बताते है कि आरपीएन सिंह के तय डेडलाइन तक प्रदेश कांग्रेस ने विशेष सक्रियता क्यों नहीं दिखायी. बता दें कि आरपीएन सिंह ने बीते 17 जनवरी को ही कहा था कि 20 सूत्री कार्यान्वयन समिति का गठन 31 जनवरी तक पूरा हो जाएगा. इसके लिए उनके एक चार सदस्यीय कमिटी भी बनायी थी. लेकिन गठन प्रक्रिया उस समय भी पूरी नहीं हो पायी थी.

चार सदस्यीय कमिटी को मिला था फार्मूला तय करने का जिम्मा

बता दें कि बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन व निगरानी समितियों का बंटवारा बिना किसी विवाद के हो, इसके लिए आरपीएन सिंह ने चार सदस्यीय कमिटी बनायी है. कमिटी के सदस्यों में प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव, विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर व केशव महतो कमलेश शामिल हैं. समिति का मुख्य काम घटक दलों से बातचीत कर समितियों की हिस्सेदारी तय करनी थी. इसके लिए समिति को 31 जनवरी तक हिस्सेदारी का फार्मूला तय करने का जिम्मा मिला था.

पकड़ वाले नेता के पास काम आना बंद जाएगा, जो वे नहीं चाहते!

चर्चा तो यह भी है कि क्या शीर्ष नेतृत्व तक अपनी पकड़ रखने वाले नेता ही नहीं चाहते हैं कि, बोर्ड निगम का बंटवारा हो. इसके पीछे के कई तर्क दिये जा रहे है. एक तर्क यह है कि गठन प्रक्रिया होने से पकड़ वाले नेताओं के पास सीधे काम आना बंद हो जाएगा, जिससे उन्हें अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है. [wpse_comments_template]  

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