जनवरी 2006 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था.
New Delhi : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक विवि का दर्जा दिये जाने की याचिकाओं पर आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गयी. सात जजों की संविधान पीठ ने आठ दिनों की लंबी सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है. जान लें कि कपिल सिब्बल के अंतिम रिजॉइंडर के साथ सुनवाई पूरी हो गयी. SC ने इस पर विचार किया कि अनुच्छेद 30 के तहत एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाये या नहीं. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
अलीगढ़ विश्वविद्यालय ने रजिस्ट्रार के जरिए मूल याचिका दायर की है
जानकारी के अनुसार सात जजों की संविधान पीठ को फैसला करना है कि एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाना संविधान और विधिसम्मत है या नहीं? इस मामले में 11 याचिकाएं दाखिल की गयी हैं. अलीगढ़ विश्वविद्यालय ने रजिस्ट्रार के जरिए मूल याचिका दायर की हैं. याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, एमआर शमशाद ने अपनी दलीलें संविधान के समक्ष पेश की. दूसरी ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, नीरज किशन कौल, राकेश द्विवेदी ने सरकार की ओर से दलीलें दी. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक पहलुओं की जानकारी दी.
पांच जजों की बेंच का फैसला था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है
सीजेआई के नेतृत्ववाली संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं. जान लें कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला 12 फरवरी, 2019 को सात जजों की बेंच के पास भेज दिया गया था. इससे पहले 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच जजों की बेंच का फैसला था कि एएमयू सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, इसलिए यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. इसके बाद संसद ने 1981 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किया गया, जिससे एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया. हालांकि जनवरी 2006 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था.
यूपीए सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर की.
इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर की. इस क्रम में यूनिवर्सिटी ने भी इसके खिलाफ अलग से पीआईएल दायर की. बात यहीं नहीं थमी. भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले रही है, बाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. यह सरकार द्वारा वित्त पोषित सेंट्रल यूनिवर्सिटी है.
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