चरणजीत चन्नी, भगवंत मान और प्रकाश बादल में किसे मिलेगा पंजाब का ताज!
Faisal Anurag पंजाब किसे चुनने जा रहा है? चरणजीत सिंह चन्नी या भगवंत मान. हालांकि प्रकाश सिंह बादल इसे त्रिकोणीय बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं. अमरिंदर सिंह ने भाजपा के साथ गठबंधन बनाया है, लेकिन पंजाब की लड़ाई में वह हाशिए पर ही दिख रही है. किसानों का संयुक्त समाज मोर्चा भी मैदान में है, लेकिन 2017 की तरह ही साफ लग रहा है, असली लड़ाई कांग्रेस बनाम आम आदमी पार्टी के बीच सिमटती जा रही है. 2017 में कांग्रेस का नेतृत्व अमरिंदर सिंह के पास था. लेकिन कांग्रेस छोड़ भाजपा के साथ मिल कर उन्होंने एक गठबंधन बनाया है. इस बार कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा बनाया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए यह आसान फैसला नहीं था कि वे तीन नेताओं के बड़े कद को देखते हुए किसे मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करें. नवजोत सिंह सिद्धू और सुनील जाखड़ के बीच चन्नी का चुनाव कांग्रेस के लिए कितना कारगर साबित होगा, ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन चन्नी के नाम के एलान को एक साहसिक फैसला बताया जा रहा है. देखना है कि सिद्धू और जाखड़ आगे क्या कदम उठाते हैं. जाखड़ को लेकर कई तरह के भ्रम पंजाब में हैं. राहुल गांधी की सभा में जाखड़ मौजूद थे. इस मौजूदगी का राजनैतिक महत्व यह है कि उनकी नाराजगी कम हुई है. सिद्धू जो कि खुद को ही पंजाब का विकल्प बताने में लगे रहे हैं, राहुल गांधी के फैसले को वक्त के तौर पर स्वीकार तो किया है. लेकिन वे कहते रहे हैं कि दिल्ली से नेता थोपे जाने के वे पक्ष में नहीं हैं. राहुल गांधी के एलान को एक साहसिक फैसला बताया जा रहा है और दलित वोटों के साथ कांग्रेस के परंपरागत वोटों का गणित उसकी संभावनाओं का केंद्रीय पहलू है. राहुल गांधी ने अपने भाषण में जहां अपने 40 साल पुराने जान पहचान का हवाला दिया, वहीं कहा कि चन्नी और सिद्धू दोनों के दिल और खून में पंजाब हैं. एक ऐसे दौर में जबकि कांग्रेस को कई अहम नेताओं ने त्याग दिया है, राहुल गांधी का रिस्क पंजाब में सत्ता वापसी के लिए कितना कारगर साबित होने जा रहा है, इसपर प्रेक्ष्कों की निगाह लगी हुई है. पंजाब के चुनाव में दलितों की संख्या का महत्व है. लेकिन दलित नेता के नेतृत्व तक पहुंचने की राह में अनेक बाधाएं बनी रहती हैं. यह पहला अवसर है, जबकि सत्ता में बैठी पार्टी एक दलित नेता के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है. कांशीराम पंजाब में ही पैदा हुए, लेकिन दलितों को आवाज देने के बावजूद उनकी राजनीति पंजाब में कारगर नहीं हुई. उन्हें कामयाबी मिली तो उत्तर प्रदेश में. सरदार बूटा सिंह भी कांग्रेस का दलित चेहरा रहे हैं, लेकिन पंजाब में वे दलितों की आवाज कभी नहीं रहे. पंजाब की राजनीति में जाटों के महत्व को देखते हुए कहा जा सकता है कि पहली बार पंजाब यह परीक्षा देने जा रहा है कि वह एक दलित को बतौर नेता स्वीकार करता है या नहीं. 2017 की तरह आम आदमी पार्टी बदलाव का नारा दे रही है और दिल्ली के शिक्षा और स्वास्थ्य मॉडल के प्रयोगों के आधार पर पंजाब में सत्ता की दावेदारी पेश कर रही है. 2017 में आम आदमी पार्टी ने किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था. तब अरविंद केजरीवाल को लेकर पंजाब में चर्चा थी कि वे दिल्ली छोड़ पंजाब आना चाहते हैं. लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने इस गलती से निजात तो पा लिया है और दो बार के लोकसभा सदस्य भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है. मान के बारे में मान्यता है कि वे आप के लिए जहां एक ताकत हैं तो ड्रग और नशा के खिलाफ पंजाब की लड़ाई के कमजोर पहलू भी हैं. हालांकि चुनावी ओपिनियन में आप का जोर तो दिख रहा है, जो 2017 में भी दिखा था. कांग्रेस और आप के बीच का एक तीखा फर्क जमीनी स्तर पर संगठनात्मक ढांचे का है. पंजाब में कुछ इलाकों में तो आप का आधार ठीक ठाक है, लेकिन वह कांग्रेस की दावेदारी का मुकाबला कितना कर सकेगी, यह निर्भर करता है कि अकाली दल कितने वोट प्राप्त करता है. तिकोना बनती लड़ाई में आप की जीत और हार अकाली दल की संभावनाअें पर ही है. इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन चंडीगढ़ के निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार के अनुसार, कांग्रेस और अकाली दल की गलतियों के कारण आप को करीब 20 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं. पत्रकार डी के सिंह के अनुसार, लेकिन सत्ता में आने के लिए 20 फीसदी वोट काफी नहीं हैं. दशकों से कांग्रेस और अकाली दल को मिलने वाले वोटों का शेयर देखें. पत्रकार डी के सिंह के अनुसार, यहां तक कि जब 2017 में पंजाब विधानसभा में अकाली दल को मात्र 15 सीटें मिलीं, तब भी उसका वोट शेयर करीब 30 प्रतिशत था, जो आप को मिले वोटों से छह प्रतिशत अधिक था. कांग्रेस का वोट शेयर कभी 30 प्रतिशत से नीचे नहीं गया, यहां तक कि ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद 1985 के विधानसभा चुनाव में भी नहीं, जब पार्टी को 38 प्रतिशत वोट मिले थे.` इसी में 2022 के संभावनाअें के सूत्र की तलाश की जा रही है. दिल्ली मॉडल की उम्मीदें और जनता के बीच चन्नी की सहजता में कौन बाजी मारेगा यह 20 फरवरी को तय होगा. [wpse_comments_template]

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