alt="" width="600" height="400" /> स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं मिलती : सरकारी अस्पताल भी इस गांव से 35 किलोमीटर की दूरी पर है. जिससे ग्रामीणों को खासी परेशानी होती है, क्योंकि अस्पताल तक आने-जाने की व्यवस्था भी नहीं है. जिससे गर्भवती महिलाओं की प्रसव गांव की दाई (कुसराईन) रूसनी मुंडाईन, घर में ही करवाती है. हालांकि जब ज्यादा दिक्कत होति है तो गांव वाले निजी गाड़ी की व्यवस्था बड़ा मुश्किल से करके मरीज को ले जाते हैं. इन्हें एंबुलेंस का भी कोई लाभ नहीं मिलता है. गांव के ही 75 वर्षीय बिटु मुंडा दोनों पैरों से लाचार हैं. जंगल की जड़ी-बूटियों से खुद अपना इलाज कर रहे हैं. वो कहते हैं कि इलाज की व्यवस्था नहीं है. उनका दर्द आंखों में छलक रहा था और वे पूछ रहे थे कि बुजुर्ग आदिवासी होना अपराध है. शिक्षा की भी व्यवस्था नहीं : गांव में एकमात्र प्राथमिक विद्यालय है और वह भी एक ही शिक्षक के भरोसे है. हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए 35 किमी दूर संत जोसेफ प्लस टू हाई स्कूल जाना होता है. गुडु खुसर नाम के छात्र ने बताया कि हर दिन बस आती है, फीस नहीं ली जाती, मगर रास्ता लंबा है और आने-जाने में ही बहुत वक्त निकल जाता है.
alt="" width="600" height="400" /> शोधकर्ताओं ने बतायी सही बात : श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसएम. अब्बास के नेतृत्व में 60-70 शोधार्थी भुइंहर मुंडा समुदाय पर अध्ययन करने वहां पहुंचे है. डॉ. अब्बास का स्पष्ट कहना है, भुइंहर मुंडा समुदाय में आदिवासी संस्कृति के सभी तत्व मौजूद हैं. इनकी पूजा पद्धति, भाषा, परंपरा, जीवनशैली सबकुछ आदिवासी परंपरा से जुड़ी हुई है. अब ज़रूरत है कि संविधान की अनुसूची-342 के तहत इन्हें ST की मान्यता दी जाए.
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