Faisal Anurag
सिविल सोसाइटी यानी नागरिक समाज जो आमजनों के मुद्दों और सवालों को दुनिया भर में निडरता के साथ उठाते हैं. आखिर उन्हें भारत में देशद्रोही क्यों कहा जा रहा है? सिविल सोसाइटी के खिलाफ किसी और ने नहीं भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने हमलावर अंदाज में उन्हें देश का दुश्मन करार दिया है. डोभाल के अनुसार, युद्ध के नए मोर्चे, जिसे हम चौथी पीढ़ी का युद्ध कहते हैं, नागरिक समाज है. हैदराबाद स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में पासिंग आउट परेड के दौरान पिछले दिनों अपने संबोधन में कहा वे बहुत नागरिक समाज महंगे और अफोर्डेबल हैं. डोभाल ने कहा “यह नागरिक समाज है जिसे विकृत किया जा सकता है, जिसे विभाजित किया जा सकता है, जिसे राष्ट्र के हित को चोट पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस तरह की बातें सत्तापक्ष के नेता तो अक्सर ही कहते रहे हैं क्योंकि एक लोकतंत्र में असहमति के स्वर को दबाने का उनका रिकॉर्ड पुराना है. लेकिन एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की इन बातों की गंभीरता इसलिए है कि वे उन लोगों के बीच बोल रहे थे, जिनके कंधों पर आने वाले भारत की नौकरशाही की बागडोर मिली है. एक ऐसे दौर में जब देश के भीतर मानवाधिकार के सवालों को ले कर सत्तपक्ष पहले से ही आक्रामक है और त्रिपुरा के ताजा मामले में तो उन्हीं 102 लोगों पर यूएपीए लगा दिया गया है, जिन्होंने सांप्रदायिक दंगे और हिंसा के खिलाफ आवाज उठायी और सरकार से दंगों को तुरंत रोकने की मांग की. इसमें ज्यादातर सविल सोयइटी के लोग या पत्रकार हैं. यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने विचारार्थ है, और सर्वोच्च अदालत ने उन लोगों की सुनवायी तक का संरक्षण दिया है. जिनके खिलाफ यूएपीए का इस्तेमाल त्रिपुरा की सरकार ने किया है.
सिविल सोसाइटी के खिलाफ एक सुनियोजित दुष्प्रचार का दौर चला है. भारत के ज्यादातर गैर सरकारी संगठनों की जुबान पर लगाम लगा दिया गया है. खास कर विदेशी मदद पाने के लिए मिलने वाले सर्टिफिकेट के बंटवारे के संदर्भ में. जिन संस्थाओं या व्यक्तियों ने आदिवासियों ओर दलितों के न्यायहित का सवाल उठाया है उनपर गृह मंत्रालय ने शिकंजा मजबूत कर दिया है. भीमा कोरेगांव मामले में देश के जाने माने मानवाधिकरवादियों को तो पिछले ढाई सालों से जेल में बंद कर रखा गया है. फादर स्टेन की मृत्यु भी हो चुकी है.
सवाल यह है आखिर नागरिक समाज को ही चौथे जेनेरेशन के युद्ध का खतरा किस तर्क के आधार पर बताया गया है. चौथे जेनेरेशन के युद्ध का मतलब उन नॉन-स्टेट यानी गैर सरकारी समूहों से है जो आमतौर पर हिंसक हो जाते हैं. इसमें हथियारबंद संघर्ष और आतंकवादी समूह प्रमुख हैं. तो क्या भारत की सिविल सोसाइटी इन्हीं तत्वों की हिमायत करती है या फिर उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व है जो संविधान सम्मत लोकतंत्र और शासन के लिए आवाज उठाती है. समाज के दबे कुचले लोगों के साथ खड़ी होती है. भारत की सिविल सोसाइटी का बड़ा हिस्सा संविधान, लोकतंत्र और उत्पीड़ित समूहों के न्याय के पक्ष में ही खड़ा रहा है. हां कुछ समूह हैं जो ऐसे कुछ सवाल उठाते रहे हैं जो भारत सरकार के नजरिये में देश की एकता और अखंडता को ले कर प्रश्न खड़ा करते हैं लेकिन उनकी संख्या बेहद नगण्य है और वे समूह व्यापक सिविल सोइटी समूहों में ही हिकारत की नजर से देखे जाते हैं. नागरिक समाज के ही तबकों ने जलवायु परिवर्तन जैसे सवालों को गंभीरता से उठाते हुए विकास की आर्थिक संरचना और नीति पर सवाल उठाते रहे हैं.
पूरी दुनिया में देखा जा रहा है जैसे-जैसे एकाधिकारवादी सत्ताओं का वर्चस्व बढ़ रहा है वैसे- वैसे लोकतंत्रवादियों पर हमले तेज हुए हैं. दुनिया भर में लोकतंत्र को लेकर जिस तरह के हालात हैं उसकी चिंता डेमोक्रेसी इंडेक्स से प्रकट होती रही है. लेकिन भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब सुरक्षा सलाहकार ने नागरिक समाज को चौथे जेनेशन के शत्रु के रूप में रेखांकित किया है.
अजीत डोभाल ने कहा, ”अब युद्ध राजनीतिक या सैन्य उद्देश्यों को हासिल करने का कारगर जरिया नहीं रहा. ये बहुत महंगे और वहन करने लायक नहीं हैं. इसके नतीजों में भी अनिश्चितता होती है. राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के लिए सिविल सोसाइटी से छेड़छाड़ हो सकती है, इसमें विभाजन पैदा किया सकता है और इसमें सेंध लगाकर अपने चंगुल में लिया जा सकता है. जंग का नया मोर्चा जिसे फोर्थ जेनरेशन वारफेयर कहते हैं, वह है सिविल सोसाइटी.” दरअसल, सिविल सोसाइटी का मतलब नागरिक समाज से है. जिसके दायरे में एक्टिविस्ट्स, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी, एनजीओ वगैरह आते हैं.
डोभाल की इन बातों का संकेत साफ है आने वाले दिनों में असहमत स्वर रखने वाले एक्टिविस्टों, सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों और एनजीओं के लिए अवसर सीमित होंगे और वे राज्य और सरकार के लोगों के निशाने पर आ सकते हैं.
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