Ranchi : कृषि बिल का विवाद गहराते हुए अब राजनीतिक दलों तकाजा पहुंचा है. कुछ राजनीतिक दल व्यवसायियों के आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं. वहीं कुछ दलों का कहना है कि व्यवसायियों को राजनीति के फेर में नहीं पड़ना चाहिए. उन्हें व्यवसाय पर ध्यान देना चाहिए. ऐसे दलों का कहना है कि जनता को दिक्कत होगी तो वह खुद मैदान में उतरेगी. आखिर व्यवसायियों ने जब बेरोजगार युवकों और किसानों के आंदोलन में उनकी दिक्कत का ध्यान नहीं रखा तो कृषि शुल्क के कारण उन्हें जनता की याद क्यों आ रही है. इस बीच झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स ने भी तर्कपूर्ण बातों के साथ अपनी मंशा साफ कर दी है कि अगर उनकी बात सरकार नहीं मानी तो बाजार बंद करेंगे, पलायन होगा, जिसके लिए जम्मेवार सरकार होगी. दूसरी ओर सरकार ने विधेयक को प्रभावी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इससे राज्यभर के खाद्यान्न व्यापारियों, कृषकों एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्यमियों में गहरा आक्रोश है. कृषि शुल्क विधेयक को व्यवसायियों ने काला कानून बताते हुए राज्य सरकार से उसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी है. इस पर पेश है शुभम संदेश टीम की रिपोर्ट.
दैनिक ‘शुभम संदेश रांची’ के प्रधान कार्यालय में शुक्रवार को एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ. संगोष्ठी में फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष सहित पूरी कमेटी पहुंची. सभी ने अपनी बातों को प्रमुखता से रखा. बातचीत में चैंबर के सदस्यों का जोर केवल एक ही बात पर था कि सरकार इस विधेयक को वापस लें. वहीं झारखंड चैंबर के सदस्यों ने तर्कपूर्ण बातों के साथ अपनी मंशा साफ कर दी कि अगर उनकी बात सरकार नहीं मानी तो बाजार बंद करेंगे, पलायन होगा, जिसके लिए सरकार जिम्मेवार होगी.
ई-नाम पोर्टल पर झारखंड के जिलों का अपलोड डाटा मनगढ़ंत : एफजेसीसीआई
पोर्टल के नाम पर झारखंड में भ्रामक स्थिति बनायी जा रही है कृषि शुल्क विधेयक के विरोध में झारखण्ड चैंबर ऑफ काॅमर्स के नेतृत्व में प्रदेश के सभी जिलों में 14 फरवरी तक क्रमवार आंदोलन चला रहे हैं. पूर्व निर्धारित योजना के तहत शुकर्वार को जिलों के चैंबर ऑफ काॅमर्स द्वारा केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ई-नाम पर झारखंड में हो रहे फर्जीवाड़ा की उच्चस्तरीय जांच के लिए प्रधानमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री से पत्राचार किया गया. फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कामर्द्वास एंड इंडस्ट्रीज द्वारा भेजे गए पत्कर में कहा गया है कि ई नाम पोर्टल पर झारखंड के जिलों का अपलोड डाटा मनगढ़ंत है. उदाहरण देते हुए बताया गया कि पोर्टल पर पंडरा बाजार समिति के अपलोड डाटा (1.04.2017 से जनवरी 2023 तक) में कुल 9 तरह के कृषि उपजों की ट्रेडिंग दिखायी गयी है, जिसमें सेदो उत्पाद गोभी और ईमली का क्रमशः इन छह वर्षों में ई-ट्रेडिंग प्लेटफाॅर्म पर केवल दो कार्यदिवस एवं एक कार्यदिवस पर ही व्यापार हुआ है. ई-ट्रेडिंग पोर्टल पर अपलोड डाटा के अवलोकन से इसमें निहित बनावटी मंशा का स्पष्टतः पता चलता है. दिनांक 21.12.2021 को पंडरा बाजार समिति में आलू की आवक शून्य (0) क्विंटल दिखाई गयी है, जबकि उसके सामने ही 25 क्विंटल की बिक्री प्रदर्शित की गयी है. इसी प्रकार दिनांक 13.05.2020 को तरबूज की आवक शून्य (0) क्विंटल और बिक्री 56 क्विंटल प्रदर्शित की गयी है. पुनः दिनांक 01.06.2021 को तरबूज की आवक शून्य (0) क्विंटल और बिक्री 30 क्विंटल दिखायी गयी है.
किसानों के आवक की सत्यता की जांच हो
बार अध्यक्ष ने कहा कि फर्जी डाटा अपलोड कर केंद्र सरकार को एक ऐसी वस्तुस्थिति दिखाने की कोशिश की जा रही है कि झारखंड में ई नाम सुगमतापूर्वक चल रहा है, लेकिन स्थिति बिल्कुल विपरित है.पोर्टल पर पंडरा बाजार समिति में जिन 9 उत्पादों की आवक एवं बिक्री दिखायी गयी है, उसमें मुख्य रूप से गेहूं का व्यापार दिखाया गया है, जबकि किसी भी राज्य में कोई फसल एक निश्चित अवधि के भीतर ही आती है, तो यह वर्ष भर किसानों की आवक की सत्यता की जांच होनी चाहिए, गोभी एवं ईमली जैसी वस्तुओं को छह वर्ष में सिर्फ दो बार आवक और बिक्री दिखायी गयी है. इन छह वर्षों में किसानों के ये उत्पाद पोर्टल पर बिक्री हेतु क्यों नही लाये गये ? इसकी सत्यता की जांच होनी चाहिए.
ई-पोर्टल पर छह वर्षों में 250 दिन के ही व्यापार का ही आंकड़ा
पत्र में यह भी कहा गया कि छह वर्षों में पंडरा (रांची) बाजार समिति के ई नाम पोर्टल पर रागी 363 टन, मकई 134 टन, गेहूं 276 टन, आलू 51 टन, टमाटर 37 टन, अदरक 31 टन, तरबूज 37 टन, गोभी 3 टन एवं ईमली 1 टन का डाटा अपलोड किया गया है. इन छह वर्षों में विभिन्न अवधि में बिक्री एवं आवक का उल्लेख किया गया है. इन उत्पादों को किन पंजीकृत किसानों की ओर से मंडी में लाया गया एवं किन आढ़तियों को इसकी बिक्री की गई, उसकी विस्तृत जानकारी पंडरा बाजार समिति से लेकर इसकी पुष्टि की जा सकती है. पोर्टल पर पंडरा बाजार समिति के अपलोड डाटा के अवलोकन से यह पता चलता है कि लगभग छह वर्षों में 250 दिन का व्यापार ही ई-पोर्टल पर हुआ है, इन छह वर्षों में 250 दिन के अतिरिक्त व्यापार क्यों नहीं हुआ और कृषकों की आवक की बिक्री किस प्रकार हुई, इसकी भी जांच आवश्यक है.
छोटे किसानों को ई-नाम पोर्टल की जानकारी ही नहीं, बहुत काम बाकी है
रांची चैंबर ऑफ कामर्स पंडरा के अध्यक्ष संजय माहुरी ने कहा कि झारखंड में ई नाम पोर्टल पर ट्रेडिंग तो दूर की बात है, इस योजना से छोटे-छोटे कृषक जागरूक भी नहीं हैं. पोर्टल पर कृषकों द्वारा अपलोड करने के साथ ही किस प्रकार ट्रेडिंग की जा सकती है, इस स्तर पर भी राज्य में अभी काम किया जाना बाकी है. ऐसे में ई-ट्रेडिंग किस प्रकार संभव है, इसपर संशय है. छोटे कृषकों को मंडी तक अपना माल ले जाने में उपज की लागत मूल्य अधिक हो जाती है इसलिए यह भी वास्तविकता है कि झारखंड में कृषकों का माल बाजार समिति तक विपणन के लिए आता ही नहीं है. सारा कारोबार स्थानीय स्तर पर ही होता है.
व्यापारियों ने कहा
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झारखंड की आवाज पूरे देश में गूंजेगी
भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय मंत्री प्रेम मित्तल ने कहा कि इससे करप्शन बढ़ेगा और चीजें महंगी होगी. न सिर्फ खाद्यान्न बल्कि प्लाईवुड और सनमाइका भी महंगे हो जाएंगे. चावल, राइस मीलों पर भी असर पड़ेगा. पूरा होलसेल का धंधा चौपट हो जाएगा. किसानों और व्यापारियों को सिर्फ 4 से 5 फीसदी फायदा होता है. उसमें भी सरकार आधी ले लेगी तो व्यापारी मर ही जाएंगे. भ्रष्ट अधिकारियों और बेइमान व्यापारियों के लिए स्वर्ग बन जाएगा और छोटे व्यापारी और आम लोगों के लिए नरक. विधेयक वापस नहीं लिया गया तो झारखंड के व्यापारियों की आवाज पूरे देश में गूंजेगी.
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कृषि पर लगा शुल्क काला कानून
रामगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स के निर्वाचित कार्यकारिणी सदस्य अमित कुमार सिन्हा कहते हैं कि कृषि बाजार पर लगे 2 परसेंट शुल्क काला कानून है. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. पूर्व की सरकार ने इसकी जांच करा कर इस कानून को निरस्त कर दिया था . पड़ोसी राज्यों में भी इसे समाप्त कर दिया गया है. एक महीना पहले उत्तर प्रदेश से भी इसे समाप्त कर दिया गया है. परंतु झारखंड में कुछ अधिकारियों के द्वारा मिलीभगत कर पुनः इसको लागू कराने का प्रयास किया जा रहा है. जिसके दूरगामी परिणाम झारखंड की जनता को भुगतना पड़ेंगा. इस कानून से अधिकारियों की जेब भरने का काम होगा. व्यापार एवं किसान का भया दोहन चालू हो जाएगा . इसलिए इस कानून को निरस्त होने तक सभी व्यापारियों के साथ चेंबर ऑफ कॉमर्स खड़ा है.
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व्यापारियों का समर्थन करते हैं
किसान बेरोजगार संघर्ष मोर्चा के केंद्रीय संयोजक पंकज महतो कहते हैं कि इस विधेयक से आम आदमी प्रभावित होगा. झारखंड सरकार कृषि उत्पादन सामग्री पर दो प्रतिशत अधिक टैक्स लगाएगी. जिसका भार सीधे तौर पर आम लोगों पर पड़ेगा. साथ ही छोटे हो या बड़े सभी व्यापारियों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा. इसलिए कहीं न कहीं आज व्यापारियों द्वारा जो विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है वह जायज है. हम व्यपारियों के आंदोलन का समर्थन करते हैं. इस तरह के काले कानून हर हाल में निरस्त होना चाहिए, नहीं तो विधायक के लागू होने से सिर्फ अधिकारियों का जेब भरा जायेगा.
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इंस्पेक्टर राज शुरू हो जाएगा
रामगढ़ थोक व्यवसाई संघ के अध्यक्ष सह रामगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स के निर्वाचित सदस्य नंदकिशोर प्रसाद गुप्ता कहते हैं कि कृषि विधेयक बिल आने से अफसरशाही और इंस्पेक्टर राज शुरू हो जाएगा इस विधेयक से आम आदमी भी काफी प्रभावित होगा पूर्व में इस बिल को झारखंड में रघुवर सरकार के समय लाया गया था लेकिन फिर इसको निरस्त भी कर दिया गया. इससे व्यापारियों के नुकसान के साथ-साथ महंगाई भी बढ़ेगी. आम उपभोक्ताओं पर भी इसका असर पड़ेगा. इसलिए व्यापारी हित में इस विधेयक को सरकार को वापस ले लेना चाहिए, नहीं तो आने वाले दिनों में रामगढ़ में भी आंदोलन शुरू हो जाएगा और अनिश्चितकालीन आंदोलन पर रहेंगे.
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मंडी टैक्स से झारखंड में खाद्यान्न व्यापार समाप्त हो जायेगा
ज मशेदपुर के खाद्यान्न व्यापारी रामू देबुका का कहना है कि इस विधेयक के लागू होने से व्यापारी ही नहीं आम जनता पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा. झारखंड में खाद्यान्न व्यापार चौपट हो जायेगा. मंडी टैक्स लागू होने से खाद्यान्न महंगा होगा. इसके उपरांत सीमावर्ती राज्य के थोक विक्रेता झारखंड में प्रचुर मात्रा में माल बेचेंगे. इससे जहां झारखंड का खाद्यान्न व्यापार प्रभावित होगा, वहीं झारखंड सरकार को जीएसटी से प्राप्त हो रहे राजस्व की भारी क्षति होगी. मंडी टैक्स के लागू होने से खाद्यान्न महंगा होगा. बड़े व्यापारी जियो रिलायंस जैसी कंपनी मंडी टैक्स से मुक्त होंगे तो व्यापारियों को अपने घर में ही प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी. व्यापारियों के सामने संकट उत्पन्न होगी. इसलिए सरकार को मंडी टैक्स को वापस लेने पर पुनर्विचार करना चाहिए.
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मंडी टैक्स विधेयक सरकार की अदूरदर्शिता का परिचायक
ज मशेदपुर व्यापार मंडल के उपाध्यक्ष पवन नरेडी का कहना है कि सरकार अपने प्रदेश वासियों, व्यापारियों और अपने राजस्व की होने वाली क्षति का आंकलन नहीं करते हुए मंडी टैक्स को लागू करने के लिए प्रयासरत है. यह सरकार की अदूरदर्शिता को दर्शाता है. सीधी सी बात है कि मंडी टैक्स से अनाज की कीमतों में वृद्धि होगी, जिसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा. मंडी टैक्स व्यापारी अपने घर से तो देगा नहीं, वह खाद्यान्न पर 2 प्रतिशत का टैक्स लोगों से ही वसूल करेगा. वहीं सीमावर्ती राज्यों में मंडी टैक्स नहीं होने के कारण खाद्यान्न वहां सस्ता होगा, तो राज्य में सीमावर्ती राज्यों से खाद्यान्न की आवक बढ़ेगी. इससे राज्य में खाद्यान्न व्यापार घटेगा, तो सरकार को जीएसटी से प्राप्त होने वाले राजस्व में कमी आएगी. वहीं व्यापारियों के सामने संकट उत्पन्न होगा. वैसे भी ऑनलाइन बिजनेस एवं जियो रिलायंस फ्रेश जैसी कंपनियों के कारण खाद्यान्न व्यापार 50 प्रतिशत तक प्रभावित हो चुका है. मंडी टैक्स लगने से पूरा खाद्यान्न व्यापार ही बर्बाद हो जाएगा.
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झारखंड में मंडी टैक्स बेमानी है,इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा
जमशेदपुर के व्यापारी दिलीप कुमार सिन्हा का कहना है कि कृषि उत्पादन वाले राज्य बंगाल,ओडिशा और बिहार में मंडी टैक्स लागू नहीं है. झारखंड तो कृषि उत्पादन वाला राज्य भी नहीं है, ऐसे में सरकार द्वारा बाजार अथवा मंडी टैक्स लगाना बेमानी है. मंडी टैक्स लागू होने से सीधा असर खाद्यान्न व्यापार पर पड़ेगा. खाद्यान्न महंगा होगा. आम लोगों पर इसका असर पड़ेगा. मंडी टैक्स लागू होने से इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा. भ्रष्टाचार बढ़ेगा. मंडी लागू करके सरकार ने यह बता दिया है की उसे ना तो व्यापारियों की चिंता है और ना ही आम जनता की ही चिंता है. मंडी टैक्स के विरोध के लिये खाद्यान्न व्यापारी एकजुट है. पूरे राज्यभर में मंडी टैक्स के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा है. सरकार यदि व्यापारियों की मांग पर विचार नहीं करती है तो राज्य में खाद्यान्न के आवक को पूरी तरह से बाधित किया जाएगा.
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व्यापारी विधेयक को समझने में भूल कर रहे हैं
धनबाद के धनबाद जिला कांग्रेस के अध्यक्ष संतोष सिंह ने कहा कि झारखंड के व्यापारी इस बिल को समझने में भूल कर रहे हैं. इस विधेयक से किसानों के हित में कई महत्वपूर्ण कार्य हो सकेंगे. इस विधेयक के लागू होने से राज्य की तमाम बाजार समितियों को सुदृढ़ किया जाएगा. राज्य में रोजगार एवं नौकरियों के अवसर बढ़ेंगे. बाजार समितियों की खाली पड़ी जमीन का सदुपयोग कर किसानों के साथ- व्यापारियो के लिए आवश्यक आधारभूत रचनाएं विकसित करने की योजना है.
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व्यापारी अपने व्यापार पर ध्यान दें, नेता बनना छोड़ दें
धनबाद के झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व महानगर अध्यक्ष देबू महतो के अनुसार व्यापारी वर्ग कभी भी हेमंत सरकार के क्रियाकलापों से संतुष्ट नहीं हो सकते. सरकार ने आज तक झारखंड की जनता को ध्यान में रखते हुए ही सारा प्रस्ताव लाया है. लाया है. 2% कृषि बिल लागू करने से अगर महंगाई बढ़ेगी तो इस पर जनता को आंदोलन करना चाहिए था, न कि व्यापारियों को. जब वर्ष 2020 में केंद्र सरकार द्वारा राज्यसभा में ध्वनि मत से तीन कृषि कानूनों को पास कराया गया था, तब ये व्यापारी कहां थे.
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मंशा है किसानों की आय बढ़ाना और अच्छा बाजार उपलब्ध कराना
धनबाद के झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिला संयोजक समिति की सदस्य नीलम मिश्रा कहती हैं कि विधयेक किसानों की आय बढ़ाने और उनके के लिए अच्छा बाजार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लाया गया है. परंतु 2 % शुल्क का प्रस्ताव व्यापारी भाइयों को गहराई से समझने की जरूरत है. राज्य के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने स्पष्ट कहा है कि व्यवसायियों को विश्वास में लेकर ही सरकार इस विधेयक को लागू करेगी. इसलिए इस विधेयक का विरोध करना जायज नहीं लगता है.
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किसानों का हित छिपा है, फिर भी पुनर्विचार करें
कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष मनोज नारायण भगत कहते हैं कि सरकार को बिल पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. वैसे कांग्रेस, राजद नीत हेमंत सरकार काफी संवेदनशील है. अगर कृषि बिल विधेयक लायी है, तो इसमें किसानों का हित छिपा है. किसान अन्नदाता हैं. यह व्यापारियों को भी समझना चाहिए. उनकी आर्थिक सुधार में सबको सहयोग करना चाहिए. इसलिए इस विधेयक को सरासर गलत बतना ठीक नहीं है. इसे पर गहराई से विचार करने की जरुरत है.
कृषि शुल्क का पुरजोर विरोध किया जाएगा : मुकुल ठाकुर
फूड कारोबारी मुकुल ठाकुर ने कहा कि झारखंड में लगने वाले कृषि शुल्क का पुरजोर विरोध किया जाएगा. इससे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे. जिले के व्यवसाई ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. हम लोग छोटे व्यवसाई हैं .इस तरह का विधेयक लागू कर हम छोटे बड़े व्यवसायियों को परेशान करने का कार्य किया जा रहा है .अगर यह विधेयक लागू हो जाता है, तो हम जैसे छोटे व्यवसाई कहां रहेंगे. हम लोग बेरोजगार हो जाएंगे.
कृषि शुल्क बिल जन विरोधी है,महंगाई बढ़ेगी : प्रदीप कुमार गुप्ता
राशन व्यवसाई प्रदीप कुमार गुप्ता ने कृषि शुल्क विधेयक पर कहा कि कृषि शुल्क विधायक जन विरोधी है . आने वाले समय में उपभोक्ता, व्यापारी, कृषक, मजदूर आदि लोगों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा . इससे हम व्यापारियों को व्यापार करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि हमारे पड़ोसी राज्य बिहार में जहां कि झारखंड के अपेक्षा 2% सस्ता सामान उपलब्ध होगा जबकि हमारे यहां 2% महंगा सामान उपलब्ध होगा.
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हेमंत सरकार ने अपने जाने का मार्ग तय कर लिया है
धनबाद के भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि हेमंत सरकार ने इस बिल को पास करा कर अपने जाने का मार्ग तय कर लिया है. अपने फायदे के लिए सरकार किसानों को मोहरा बना रही है. किसानों को कोई लाभ नहीं होने वाला है. बीजेपी की सरकार में किसान सम्मान निधि योजना का शुभारंभ किया गया था, लेकिन झामुमो की सरकार ने आते ही उस योजना को बंद कर दिया. एक रुपया में जो महिलाओं के नाम पर जमीन रजिस्ट्री हुआ करती थी, उसे भी हेमंत सरकार ने बंद कर दिया है.
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यह हेमंत सरकार का काला कानून, इससे चीजें महंगी होंगी
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सरोज सिंह ने कहा कि यह हेमंत सरकार का काला कानून है. इस विधेयक से बाजार की वस्तुएं महंगी हो जाएगी. किसानों को ऐसी ही घाटा हो जाएगा इस विधेयक से किसानों पर और बोझ बढ़ेगा. खाद्यान का रेट महंगा होगा ही, फूड प्रोसेसिंग के बाद खाद्यान्न के रेट और बढ़ जाएंगे. फूड प्रोसेसिंग प्लांट और चावल मिल जैसे उद्योग लगाने वाले व्यवसायी यहां से पलायन करेंगे। उपभोक्ता पर महंगाई की मार पड़ेगी.
व्यापारियों पर यह विधेयक थोपना सरासर गलत है : कमाल खान
भाजपा के प्रदेश कार्यसमिति सद्स्य कमाल खान ने कहा कि झारखंड सरकार जनहित में काम नहीं कर रही है. व्यापारियों पर कृषि उपज और पशुधन विपणन विधेयक थोपना सरासर गलत है. रघुवर दास की सरकार ने इसे खत्म कर दिया था, लेकिन फिर से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए यह विधेयक दोबारा लाया गया. यह विधेयक न किसानों के हित में है और न आम जनता के हित में है. इस विधेयक के सिर्फ भ्रष्टाचार बढ़ेगा और जनता पर बोझ पड़ेगा.
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विधेयक पूरी तरह जनविरोधी, इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा
झारखंड भाजपा आईटी सेल के स्टेट कन्वेनर राहुल अवस्थी ने कहा है कि झारखंड सरकार द्वारा लाया गया यह विधेयक पूरी तरह से जनविरोधी है. हेमंत सरकार की पहचान ही जनविरोधी नीतियां बनाने वाली हो गई है. इस विधेयक के लागू होने से महंगाई पूरी तरह से बढ़ेगी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. भ्रष्ट अधिकारी इस बिल के एवज में व्यापारियों से अवैध वसूली करने का भी प्रयास करेंगे. इसलिए सरकार को इस विधेयक पर फिर से विचार करने की जरुरत है.
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बिल सरकार की मनमानी और उनकी दादागिरी को दर्शाता है
एफजेसीसीआइ अध्यक्ष किशोर मंत्री ने कहा कि पिछले साल इस टैक्स को लाया गया था, फिर इसे वापस भी लिया गया. इस बार बिना विमर्श किए, चोरी छुपे सरकार ने इस बिल को हमपर थोपा है. यह बिल सरकार की मनमानी और दादागिरी को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि राज्य भर में बहुत से व्यवसाय हैं.ऐसे में सरकार की ओर से कृषि विधयक बिल फिर से लाना कहा तक सही हैं. उन्होंने कहा कि सरकार इस बिल को हमारे ऊपर थोप रही है. करीब डेढ़ लाख व्यापारी इससे प्रभावित होंगे. पहले भी सरकार ने यह किया था. लेकिन हमारे कड़े आंदोलन के बाद सरकार को इसे वापस लेना पड़ा. अब सबसे पहले सरकार से बात की जाएगी.अगर सुनवाई नहीं हुई तो आंदोलन की रणनीति बनेगी.
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झारखंड के उपभोक्ता और ट्रेडर्स सभी को नुकसान
डॉ. अभिषेक रामाधीन ने कहा है कि यह काला कानून हैं. जिससे झारखंड के उपभोक्ता और व्यापारी सभी को नुकसान होने वाला है. झारखंड में बहुत सारे कृषि उत्पाद ऐसे हैं जो पैदा नहीं होते हैं, उन्हें बाहर से लाया जाता हैं. यहां प्रमुखता से धान पैदा की जाती है. उसके अलावा दाल-दलहन आदि चीजें बाहर से आयात की जाती है, अब अगर सरकार 2% टेक्स एक्सट्रा लगाएगी तो इससे चीजों के दाम बढ़ेंगे और इसका सीधा असर उपभोक्ता पर पड़ेगा. उपभोक्ता और किसान दोनों इस कानून के वजह से पीड़ित रहेगें. अगर उत्तर प्रदेश का उदाहरण देखें तो 2 हफ्ते पहले वहां यह टेक्स वापस ले लिए गया हैं. अगर आप इससे होने वाले इनकम की बात करें तो वह भी सरकार को नहीं मिलने वाला हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इसके होने वाला लाभ सरकार तक नहीं जाएंगा.
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हम अंतिम तक लड़ेंगे और इस कानून को लागू नहीं होने देंगे
आदित्य मल्होत्रा ने विधेयक के बारे में कहा कि इस विधेयक से व्यापारी, किसान, उपभोक्ता सभी को नुकसान होगा. इसलिए इस बिल का सभी वर्ग विरोध कर रहे हैं. किसी भी बिल को बनाने से लेकर लागू कराने में राज्य सरकार की एक बहुत बड़ी भूमिका होती है. इस बिल के बिंदुओं में बहुत सारी खामियां हैं. मंडी के अध्यक्ष अब मनोनीत किए जाएंगे. इसे भ्रष्टाचार बढ़ेगा. इस बिल के माध्यम से सरकार 175 चीजें ऐसी हैं जिस पर टैक्स लगाएगी, यह सारे कृषि के उत्पाद हैं. जिससे राज्य में कृषि उत्पादन में काफी कमी आएगी और यहां के किसान और व्यापारी कमजोर पड़ेगें. इसलिए हमारा कहना है कि इस बिल को वापस लिया जाए.जब तक बिल वापस नहीं होगा हम अंतिम तक लड़ेंगे और इस कानून को लागू नहीं होने देंगे.
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इस विधेयक से किसी का लाभ नहीं होने वाला है
रोहित पोद्दार, सह सचिव एफजेसीसीआइ ने बताया कि यह बिल किसान विरोधी, उपभोक्ता विरोधी और व्यापारी विरोधी है. उन्होंने बताया कि यह शुल्क कुछ गिने-चुने अधिकारियों के हित के लिए लाया जा रहा है. इससे बस आम जनता प्रभावित होगी और राज्य में उपभोक्ता की वस्तुएं महंगी होंगी. उन्होंने कहा कि राज्य में करीब 200 से ज्यादा राइस मिलें हैं, पड़ोसी राज्य में इस पर टैक्स नहीं है. ऐसे में लोग यहां से पलायन करेंगे और यह राज्य के हित के लिए अच्छा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इस बढे हुए महंगाई के दौर में उपभोक्ता अतिरिक्त महंगाई से कैसे निपटेंगे. उन्होंने बताया कि किसान के लिए यह बिल सही नहीं है. सरकार को इस बिल को वापस लेना होगा.
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महंगाई बढ़ेगी और इसका सीधा असर जनता पर पड़ेगा
अमित शर्मा ने कहा कि इस विधेयक के आने से महंगाई बढ़ेगी और इसका सीधा असर जनता पर पड़ेगा. इस बिल के माध्यम से अफसरशाही तो बढ़ेगी ही, साथ ही साथ भ्रष्टाचार बढ़ेगा. मंडी में सदस्य बाकी लोगों के द्वारा चुने जाते थे पर इस बिल के आने के बाद मंडी में अध्यक्ष मनोनीत किए जाएंगे, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा. सरकार अपनी पसंदीदा नुमाइंदे को अध्यक्ष पद पर मनोनीत करेगी और इससे भ्रष्टाचार बढ़ने के उम्मीद हैं. बिल के वजह से कृषि उत्पाद से जुड़े व्यवसाय बगल की राज्यों में शिफ्ट होने का खतरा है. इससे पूरे राज्य में कृषि उत्पाद में बड़ा नुकसान होगा. इसलिए हमारा सरकार से अनुरोध है कि वह इस बिल पर हमारे साथ चर्चा करें और इसे वापस लें.
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जीएसटी है तो यह टैक्स क्यों लगा रही है
अविराज अग्रवाल ने कहा कि वन नेशन वन टैक्स (जीएसटी) के बावजूद भी सरकार यह टैक्स क्यों लाना चाह रहीं है. इसका कोई तुक नहीं बनता. एक तरफ सरकार इन्वेस्टमेंट के बाद कर रही हैं तो दूसरी तरफ टैक्स लगा रही है. टैक्स बढ़ोतरी के वजह से बहुत सारी कंपनियां बंद हो जाएंगी. सरकार को सोचना उद्योगों को बढ़ावा देना के बारे में सोचना चाहिए. इसके उल्ट सरकार टैक्स लगा कर कंपनियों पर अतरिक्त बोझ बढा रही हैं. टैक्स बढने का असर आम जनता पर ही पड़ता है, पिछली बार 2022 में इस बिल को लाया गया था लोगों और व्यापारियों के द्वारा बहुत विरोध करने के बाद राज्यपाल इस विधेयक को वापस लौटा दिया था. अब सरकार फिर से इसे गुपचुप तरीके से लेकर आई हैं मुख्यमंत्री को बिल लाने से पहले व्यापारियों के साथ एक बार बात करनी चाहिए थी.
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यह आम जनता के शोषण और दोहन का विधेयक है
रांची चैंबर के अध्यक्ष संजय माहुरी ने कहा है कि यह विधेयक सिर्फ कृषक एवं आम जनता के शोषण एवं दोहन करने का विधेयक है. उन्होंने बताया कि ई-नाम को प्रभावी करने के लिए केंद्र सरकार से आये पैसों से किसानों के प्रोत्साहन के लिए कुछ भी नहीं किया गया. दो तीन माह पूर्व ही 88 लाख रुपए की ग्रेडिंग, पैकेजिंग मशीनें खरीदी गई हैं, जो बाजार समिति में बेकार पडी हुई हैं. इस बिल से सरकार बस ऊपरी कमाई का संशाधन बना रही है. उन्होंने बताया कि सरकार को यह समझना होगा कि व्यापारी इस शुल्क की उगाही उपभोक्ता से ही वसूलकर जमा करेंगे, ऐसे में इस बढे हुए महंगाई के दौर में उपभोक्ता अतिरिक्त महंगाई से कैसे निपटेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार से बस यही उम्मीद है कि इस बिल को जल्द से जल्द वापस लिया जाए.
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सरकार को इस बिल पर फिर से विचार करना चाहिए
दीपक कुमार ने कहा कि यह बिल काला कानून है. सरकार को इस बिल पर फिर से विचार करनी चाहिए, क्योंकि इसका सीधा असर किसान और उपभोक्ताओं पर पड़ेगा जो कि कहीं से सही नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि धान यहां प्रमुखता से होती है. कम से कम 100 मिलें झारखंड में धान की हैं. अगर यहां पर 2 % टैक्स लगा दिए जाते हैं तो लोगों का खर्च बढ़ जाएंगा. किसान हो या व्यापारी सभी के लिए पड़ोस के राज्य में व्यापार करना ज्यादा मुनाफा वाला होगा. इससे यहां पर कृषि से जुड़ी चीजों में नुकासन होना शुरू हो जाएगा. यहां के व्यापारी जो सक्षम हैं वह पड़ोस के राज्य में चल जाएंगे और किसानों को अपने माल दूसरे राज्य में भेज कर प्रोसेस करवाना पडेगा. जिससे उनके खर्च में बढोतरी होगी और इसका असर उपभोक्ता पर पड़ेगा.
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सरकार जनता की जेब में छेद करने का प्रयास कर रही है
अशोक कुमार मंगल ने कहा कि बिल में त्रुटियां ही त्रुटियां हैं. यह बिल आम जनता को नुकसान पहुंचाने वाला है. सरकार 2% टैक्स के माध्यम से जनता की जेब में छेद करने का प्रयास कर रही है. किसानों की हालत और खराब होगी. झारखंड कोई कृषि उत्पादक राज्य नहीं है. फिर भी यहां कृषि को बढ़ावा देने के बजाय 2% टैक्स लगाया जा रहा है. इस विधेयक के आने से अफसरशाही, भ्रष्टाचार बढ़ेगा. लोगों और व्यापारियों को आर्थिक नुकसान होगा. यहां का कृषि व्यापार कम होगा. लोग पड़ोसी के राज्यों में कृषि व्यवसाय करना ज्यादा पंसद करेंगे. इसलिए मेरा मुख्यमंत्री से आग्रह है कि वह बिल पर फिर से विचार करें और इसे जल्द से जल्द वापस ले. जब तक यह बिल नहीं वापस लिया जाएगा तब तक हम लड़ेंगे अंतिम समय तक लडेंगे.