Priyanshu
ये गुलामी का दौर है. ये समाज की नपुंसकता का दौर है. इतिहास के पन्ने जब भी इस त्रासदी का ज़िक्र करेंगे, मौजूदा सरकार को लताड़ा जायेगा. कठिन सवाल पूछे जायेंगें. लेकिन हमारी कायरता और आत्ममुग्धता भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज की जायेगी.
कल पप्पू यादव गिरफ्तार किए गए हैं. बिहार में बाढ़-सुखाड़ से लेकर कोरोना जैसी हर विषम परिस्थिति में उन्होंने हमारी सेवा की है. अस्पतालों में खाना पहुंचाया है. ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर गए हैं, मरीजों के लिए दवाईयां और इंजेक्शन उपलब्ध करवाया है, एम्बुलेंस चोर की हड्डी मरोड़ी है. प्राइवेट अस्पतालों का अईठन छुड़वाया है.
मैं दावे से लिख सकता हूं, ना केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में वो इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनके भीतर सत्ता का कोई लोभ नहीं है. वोटों की चिंता नहीं है. लोगों की चिंता है. लोगों के जान की चिंता है. उनके परिवार की चिंता है.
ये बात पप्पू यादव भी जानते होंगे की जात के नाम पर बिक जाने वाले लोगों का वोट वो कभी नहीं ले सकते. फिर भी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर हर संभव मदद करते आ रहे हैं. लेकिन आज उनकी गिरफ्तारी पर उन्हीं लोगों का आक्रोश कहीं और गोते खा रहा है.
पप्पू यादव की गिरफ्तारी को लोकतंत्र की हत्या नहीं कहा जा सकता. क्योंकि यह एक विकासशील समाज के नैतिकता के पतन का मामला है. मानवता की मृत्यु है. उनसे मदद मांगने वालों की हराम-खोरी का सबूत है. आज पूरे बिहार में पप्पू यादव के लिए कोई आवाज़ नहीं है, कोई गुस्सा नहीं है. कोई आंदोलन और आक्रोश नहीं है. पप्पू यादव की रिहाई के लिए सरकार पर कोई दबाव नहीं है.
हमारे पेट और दिमाग, दोनों पर लात मारी जा रही है और हम कायर-गुलामों की तरह चुप चाप देख रहे हैं. पप्पू यादव आपके वोट के हकदार नहीं हैं, उनको वोट मत दीजियेगा. उनसे मदद लेने के लिए ही सही, उनकी रिहाई की गुहार लगा दीजिए!
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.