Shailesh singh Kiriburu : भाकपा माओवादी नेताओं के तमाम शीर्ष नेताओं व बडे़ कैडरों की एक-एक कर निरंतर होती गिरफ्तारियां, आत्मसमर्पण और इलाके में घटते प्रभाव की वजह से पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) को पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) में बदलने का सपना अधूरा ही रहता दिखाई दे रहा है. माओवादी नेता मोतीलाल सोरेन उर्फ संदीप दा (अभी जेल में) ने पीएलजीए और पीएलए का मतलब समझाते हुए बताया था कि पीएलजीए घात लगाकर पुलिस पर हमला करती है, जबकि पीएलए में बदलने से वह आर्मी की तरह पुलिस के साथ आमने-सामने होकर सीधी लड़ाई लडे़गी.
आखिर सपना क्यों टूटता नजर आ रहा है
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alt="" width="224" height="300" /> नक्सली संदीप दा से साक्षात्कार लेते संवाददाता की फाइल फोटो.[/caption] उल्लेखनीय है कि भाकपा माओवादियों ने संगठन व आधार इलाका (प्रभाव क्षेत्र) का विस्तार जब करना शुरू किया तो उस वक्त माओवादी विचारधारा के विपरीत अपराधी, लुटेरा आदि प्रवृति के लोगों को भी आनन-फानन में भारी पैमाने पर संगठन में भर्ती किया गया. आपराधिक प्रवृति के लोग जब इस संगठन से जुड़े तो उनका एक सूत्री कार्यक्रम था विकास योजनाओं, व्यापारियों, पूंजीपतियों आदि को डरा-धमका कर भारी पैसा उगाही करना. वे विकास कार्यों में बाधा पहुंचाना चाहते थे. पुलिस मुखबिरी या अन्य आरोप लगाकर अपने नए-पुराने दुश्मनों और इनके गलत कार्यों का विरोध करने वाले भोले-भाले ग्रामीणों की नृशंस हत्या करना था. ऐसे कार्यों से तमाम वर्ग के लोगों का विश्वास धीरे-धीरे नक्सलियों के ऊपर से खत्म होता गया. झारखंड में सक्रिय माओवादियों के बीच बाहरी व भीतरी का भी झगड़ा तेजी से बढ़ा. पहले जब पीडब्लूजी (पीपुल्स वार ग्रुप) और एमसीसीआई (माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया) का आपस में विलय कर भाकपा माओवादी बना तब कुछ वर्षों तक सब ठीक रहा. लेकिन बाद में जब भाकपा माओवादी संगठन में पीडब्लूजी के लोगों को उच्च पद पर रखा जाने लगा तो अंदर ही अंदर गुटबाजी बढ़ने लगी. गुटबाजी इतनी बढ़ी कि संथाल और हो समुदाय से जुड़े आदिवासी समुदाय के नक्सली भी आपस में दुश्मन बनने लगे. इसका बड़ा उदाहरण सारंडा में सक्रिय 50 लाख रुपए का इनामी नक्सली अनमोल उर्फ समर जी की हत्या की योजना उनके संगठन के साथी नक्सलियों ने बनाई थी, लेकिन संदीप दा ने बीच-बचाव व मध्यस्थता कर ऐसा होने से रोक दिया. यह बात स्वंय संदीप ने लगातार संवाददाता को बताया था.
ग्रामीणों का भूमि विवाद नक्सलियों के लिए गले का फांस बना
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alt="" width="179" height="300" /> नक्सली अनमोल उर्फ समर दा द्वारा मिर्चिकुदर गांव के मुंडा को लिखा गया पत्र.[/caption] सारंडा, कोल्हान और पोड़ाहाट वन प्रमंडल के जंगलों में अवैध व वैध गांव के ग्रामीणों के बीच का भूमि विवाद नक्सलियों के लिए गले का बड़ा फांस बन गया. उल्लेखनीय है कि झारखंड आंदोलन के दौरान जल, जंगल, जमीन पर अधिकार कायम करने हेतु सारंडा, कोल्हान और पोड़ाहाट के जंगलों को बाहरी और स्थानीय लोगों की मिलीभगत से भारी पैमाने पर वन भूमि पर अवैध कब्जा कर दर्जनों नए अवैध झारखंड गांव बसाकर उसका अलग-अलग नाम दे दिया गया था. इस अतिक्रमण के खिलाफ वन विभाग ने बडे़ पैमाने पर कार्यवाही प्रारम्भ की तो जंगल काटने में शामिल बाहरी लोग पलायन कर गए. वे लंबे समय तक अतिक्रमण क्षेत्र में नहीं आए. वन विभाग की कार्यवाहियों अथवा आतंक से इन्क्रोचमेंट गांव के लोगों को मुक्ति दिलाने हेतु पहली बार वर्ष-2001 के आखिरी महीने में नक्सली पोड़ाहाट, टेबो के जंगल होते हुए सारंडा आए और वन विभाग के खिलाफ हमला बोला.
नक्सलियों के भय से वन विभाग की गतिविधियां ठप हो गईं
नक्सलियों के भय से उक्त जंगलों में वन विभाग की गतिविधियां ठप हो गईं. इसके बाद एक बार पुनः बाहरी लोग स्वयं द्वारा काटे गए वन भूमि पर कब्जा करने हेतु आने लगे. इस दौरान उक्त इन्क्रोचमेंट वन भूमि पर स्थानीय वैद्ध गांव के लोग कब्जा जमा लिए थे और बाहरी को जमीन देने से इनकार करने लगे. इसके बाद आपसी विवाद बढ़ा और हिंसक रूप भी धारण कर लिया. अतिक्रमित भूमि पर कब्जा के लिए यह लड़ाई नक्सलियों के लिए सबसे बड़ी परेशानी का कारण बन गया, क्योंकि उनका मुख्य आशियाना या कैंप अवैध रूप से काटे गए जंगल क्षेत्र में ही था. वे उन्हीं को जंगल पर कब्जा दिलाने की लड़ाई लड़ने आए थे. लेकिन स्थानीय ग्रामीणों से भी वे झगड़ा मोल लेना नहीं चाहते थे, क्योंकि उन्हें प्रत्येक गांव में अपने संगठन का तेजी से विस्तार भी करना था.
संदीप दा ने भी अतिक्रमित भूमि विवाद का समाधान करने का किया था प्रयास
अतिक्रमित भूमि पर विवाद पोड़ाहाट के संकरा, ममाईल, हलमद, रोगोतो आदि गांवों के अलावे कोल्हान और सारंडा वन प्रमंडल के बुंडु, अगरवां, दुईया, मर्चिकुदर, जोजोडेरा, दुमंगदिरी, कुलातुपु, धर्नादिरी, चेरवालोर, टोयबो, आदि गांव के ग्रामीणों के बीच भी लंबे समय से चल रहा है. इसका समाधान करने का प्रयास पोड़ाहाट के संकरा जंगल में कुख्यात नक्सली संदीप दा (अब जेल में) और थलकोबाद क्षेत्र के जंगलों में कुख्यात नक्सली अनमोल दा उर्फ समर जी के नेतृत्व में किया गया, लेकिन यह विवाद आज भी खत्म नहीं हुआ है.
माओवादी अनमोल दा ने ग्रामीणओं से कहा था- कब्जा कर खेतीबाड़ी करना गलत
सारंडा के ऐसे ही गांवों के जमीन विवाद मामले में कुख्यात माओवादी नेता अनमोल दा उर्फ समर जी ने मई-2018 को मर्चिकूदर के मुंडा राम साहू को पत्र लिख कहा था- आप सभी कई वर्षों के बाद अपने-अपने गांवों में बस घर बना खेतीबाड़ी प्रारम्भ कर रहे हैं, जो अच्छी बात है. लेकिन आप सभी जोजोडेरा गांव के साथ लगी सीमा को अतिक्रमण यानि पाटीदीरी पत्थर को पार कर नीचे की जमीन पर कब्जा कर खेतीबाड़ी कर रहे हैं, जो गलत है. यह जमीन जोजोडेरा के ग्रामीणों का है. इस तरह की छीना-झपटी की वजह से मर्चिकुदर व आसपास के सभी गांवों जैसे कुलातुपु, चेरवालोर, टोयबो, दुमंगदिरी, जोजोडेरा आदि के बीच विवाद चल रहा है जिससे मारपीट की भी नौबत आई. इस समस्या का समाधान हेतु पूर्व में क्रांतिकारी किसान कमेटी के नेतृत्व में तमाम गांवों के प्रधानों के साथ कई बार बैठक हुई. कुछ वर्षों तक समस्या का समाधान हुआ था, जो पुनः प्रारम्भ हो गया है.
क्रांतिकारी किसान कमेटी का सीमांकन मान्य होगा : समर जी
अनमोल उर्फ समर जी ने ग्रामीणों को आदेश दिया था कि क्रांतिकारी किसान कमेटी द्वारा गांवों का किया गया सीमांकन ही मान्य होगा. किसी के बहकावे में किसी भी गांव की सीमा में प्रवेश कर दूसरे की जमीन पर कब्जा नहीं करें. अनमोल ने ग्रामीणों से अपील की थी कि यह जमीन सरकार व वन विभाग से दान में नहीं मिली है, बल्कि वन विभाग और पुलिस-प्रशासन से संघर्ष से हासिल किया है. इन अवैध गांवों का विकास राजस्व गांवों की तरह खूनी संघर्ष के जरिए ही संभव होगा.
माओवादी संगठन में आंतरिक कलह, लेवी के पैसों की बंदरबांट
माओवादी संगठन में आंतरिक कलह, लेवी के पैसों का बंदरबांट, उक्त जंगलों की वन भूमि पर अवैध कब्जा को लेकर जारी विवाद आदि की वजह के साथ-साथ पुलिस का नक्सलियों के खिलाफ निरंतर ऑपरेशन व ग्रामीणों के बीच दोस्ताना बेहतर संबंध की वजह से भाकपा माओवादी का सारंडा, कोल्हान व पोड़ाहाट के जंगलों में सक्रिय एलआरजीएस (लोकल रेगुलर गुरिल्ला स्क्वॉड), एसआरजीएस (सीनियर रेगुलर गुरिल्ला स्क्वॉड), नारी मुक्ति संघ, क्रांतिकारी किसान कमेटी, सारंडा सब जोनल कमेटी, दक्षिणी छोटानागपुर जोनल कमेटी जैसी अनेक इकाइयां या तो भंग हो गई अथवा मृतप्राय स्थिति में हो गई. संदीप दा ने पोड़ाहाट जंगल में संकरा पहाड़ी पर लगातार संवाददाता से बातचीत में कहा था कि एशिया का सबसे बड़ा सारंडा जंगल से ऑपरेशन ऐनाकोंडा के बाद पीछे हटे हैं, लेकिन सारंडा को हमने छोड़ा नहीं है, क्योंकि सारंडा हमारे लिए रोल मॉडल है. लेकिन लगता है कि अब पश्चिम सिंहभूम के सारे जंगल आने वाले कुछ वर्षों में नक्सलियों के लिये सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगा, क्योंकि यहां नक्सलियों की पढ़ाई पढ़ाने वाले शायद कोई बचे नहीं. [wpse_comments_template]
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