Lagatar Desk: शारदीय नवरात्रि इस बार 9 नहीं 10 दिनों का है. इसका कारण अश्विन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का दो दिन पड़ना है. यानी इस बार चतुर्थी तिथि आज और कल (25 और 26 सितंबर) को है.
मां ने अपनी मंद मुस्कान से की थी ब्रह्मांड की रचना
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माता कूष्मांडा की आराधना की जाती है. मान्यता है कि देवी कूष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना की थी, इसलिए उन्हें सृष्टि की आदिशक्ति भी कहा जाता है. इनकी उपासना से रोग-शोक दूर होते हैं और जीवन में सुख, शांति व समृद्धि आती है.
मां कूष्मांडा का स्वरूप
माता कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. उनके आठ हाथों में धनुष, बाण, कमंडल, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और जपमाला सुशोभित रहते हैं. वे सिंह पर सवार होती हैं और उनका तेज सूर्य के समान बताया गया है. संस्कृत में कूष्मांड का अर्थ कुम्हड़ा होता है, इसलिए मां को यह फल अति प्रिय है.
मां की पूजा से प्राप्त होते हैं वरदान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां कूष्मांडा की साधना से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. भक्तों का मानना है कि मां की कृपा से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और साधक का मार्ग प्रशस्त होता है.
पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद विधिवत पूजा करनी चाहिए। कलश स्थापना के साथ मां कूष्मांडा की प्रतिमा या तस्वीर की आराधना करें. उन्हें सिंदूर, पुष्प, अक्षत अर्पित करें और मालपुआ का भोग लगाएं. भक्तों को इस दिन ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडा नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए.
भोग और प्रिय वस्तुएं
मां कूष्मांडा को कुम्हड़ा, दही और हलवा विशेष रूप से प्रिय है. मां कूष्मांडा को मालपुआ भी बहुत पसंद है. भक्त यदि इन्हें उनका प्रिय चीज श्रद्धा से अर्पित करें तो देवी प्रसन्न होकर जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं.
विशेष मंत्र
- ‘ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः’ का जाप करें.
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं.
- या देवी सर्वभतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
देवी कूष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥ पिंगला ज्वालामुखी निराली।शाकंभरी मां भोली भाली॥ लाखों नाम निराले तेरे भक्त कई मतवाले तेरे॥ भीमा पर्वत पर है डेरा।स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥ तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥ मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥ मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥ तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
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