Nidhi Nitya
इन हंसती मुस्कुराती नीली तस्वीरों के लिए नवीन पटनायक को धन्यवाद दीजिये. क्योंकि हॉकी की पुरानी चमक को वापस लाने के लिए महिला और पुरुष हॉकी टीम को 5 साल के लिए बिना किसी विज्ञापन, बड़ी होर्डिंग्स, प्रचार के चुपचाप स्पॉन्सर किया है.
और रिजल्ट देखिए! दशकों पुरानी चमक कई गुना ज्यादा उत्साह से देख रहे हैं. अब तक के दो पदकों और इन मुस्कुराते चेहरों के बीच एक आंकड़ा ये भी है कि इस साल केंद्र सरकार ने खेलों का 230 करोड़ का बजट कम किया है. वो भी तब जबकि खेल का बजट पहले से ही कम था. और सरकार की बेशर्मी देखिए कि इन सब के बावजूद पदक जीतने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें, होर्डिंग्स में अपनी बड़ी सी फोटो ऐसे लगा रही है, जैसे पदक के लिए मैदान में खिलाड़ी नहीं, चार दिन पहले आये खेल मंत्री खेल रहे थे!
क्रिकेट के लिए अंधे हम लोग कभी दूसरे खेल और दूसरे खिलाड़ियों को वो सुविधा और सम्मान दे ही नहीं पाए, जो किसी के लिए भी जरूरी होता है. जब तक अपनी खुद की मेहनत की वजह से कोई खिलाड़ी 2-4 वर्ल्ड चैंपियनशिप नहीं जीत जाता, तब तक हम उसे खिलाड़ी ही नहीं मानते. और जैसे ही जीत जाता है, वैसे ही उस खिलाड़ी पर टूट पड़ते हैं, और उसके अलावा दूसरे खिलाड़ियों के साथ फिर वही व्यवहार.
हर बार ओलंपिक खेलों के बाद सरकार से उम्मीद की जाती है कि वो खेलों की तरफ ध्यान देगी, बजट बढ़ायेगी, खिलाड़ियों को सुविधाएं देगी, लेकिन कुछ दिनों के जश्न के बाद कही से खबर आती है कि हमारे महान विश्वगुरु देश के खिलाड़ी विदेशों में अपने खाने के लिए भीख मांग कर खेल रहे हैं. तो इस तरह उनसे उम्मीद करना गर्व नहीं हम सब के लिए शर्म का विषय होना चाहिए.
हॉकी की इन तस्वीरों में उम्मीद है, जुनून है, प्यार है, संघर्ष है, खिलाड़ियों का भी और उन से जुड़े लोगों का भी. उन सभी को सलाम की उम्मीद है. आपकी जीत हमारी सरकारों के आंख और कान खोलने का काम करेंगी.
डिस्क्लेमर : ये लेखिका के निजी विचार हैं.