- सवाल यात्रियों की सुरक्षा का! केंद्र सरकार ने हवा के पायलटों के बारे में तो सोचा, लोको पायलटों का क्या?
- क्या मोदी सरकार में रेलवे ने कभी भी लोको पायलटों की ड्यूटी पर कामकाज का विश्लेषण करने की हिम्मत की है?
- स्वीकृत पदों के मुकाबले 30,000 से ज्यादा लोको पायलट कम हैं, जिससे मौजूदा पायलटों पर काम का बोझ बढ़ा हुआ है.
Girish Malviya
इंडिगो संकट के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने कहा है कि हवाई यात्रा में सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा. यानी पायलटों और क्रू मेंबर्स की संख्या बढ़ानी ही होगी. लेकिन क्या केंद्र सरकार से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि रेल यात्रा में जो सालों से सुरक्षा से समझौता किया जा रहा है उस बारे में इनके क्या विचार हैं? आपने हवाई पायलट के बारे में तो सोचा, लेकिन रेल चलाने वाले लोको पायलट का क्या?
दो दिन पहले इंडिगो के एक कर्मचारी का खुला पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें इंडिगो के पायलटों और कर्मचारियों की थकान, सुरक्षा और ड्यूटी नियमों को लगातार नजरअंदाज करने की बात उठाई गई. इतना ही नहीं जब कई पायलटों ने इस पर आपत्ति जाहिर की तो उन्हें दफ्तर में बुलाकर डांटा और डराया भी गया. क्या मोदी सरकार में रेलवे ने कभी भी लोको पायलटों की ड्यूटी पर कामकाज का विश्लेषण करने की हिम्मत की है?
भारतीय रेलवे के लोको पायलट (ड्राइवर) स्टाफ की भारी कमी है. लोको पायलटों को 14 से 16 घंटे की लंबी ड्यूटी, अपर्याप्त आराम और भत्तों में वृद्धि न होने के कारण वह परेशान हैं. उनकी थकान बढ़ती जा रही है और सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है. वे भी रोस्टर, पर्याप्त छुट्टियां और तत्काल भर्ती की मांग कर रहे हैं. स्वीकृत पदों के मुकाबले 30,000 से ज़्यादा लोको पायलट कम हैं, जिससे मौजूदा पायलटों पर काम का बोझ बढ़ गया है.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस और न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, लोको पायलट- खासकर महिलाएं, बिना शौचालय के 9 से 16 घंटे काम करने को मजबूर हैं. जिसके परिणामस्वरूप मूत्र मार्ग में संक्रमण, गुर्दे की पथरी और लगातार निर्जलीकरण होता है. कई महिलाओं को वयस्कों के डायपर पहनने पड़ते हैं और कई महिलाओं ने स्वच्छता और आराम की सुविधाओं की कमी के कारण पैल्विक संक्रमण, फाइब्रॉएड और यहां तक कि गर्भपात की भी शिकायत की है. तंग, खराब हवादार केबिनों में लंबे समय तक बैठे रहने से, अक्सर 40°C से भी ज्यादा तापमान, लगातार कंपन और अपर्याप्त एर्गोनॉमिक सपोर्ट के साथ, मस्कुलोस्केलेटल विकार, रीढ़ की हड्डी की समस्याएं और बवासीर (पाइल्स) होने का खतरा बढ़ जाता है.
रेलवे के नियमों के अनुसार, किसी लोको पायलट को एक बार में 11 घंटे से अधिक काम करने के लिए नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनसे 16-16 घंटे काम लिया जा रहा है. वो 16 घंटे के रेस्ट के अतिरिक्त 30 घंटे का रेस्ट देने की मांग कर रहे हैं.
कई इंजन में टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है. दैनिक भास्कर में एक खबर छपी, उसमें एक महिला लोको पायलट ने बताया है कि 'हम जो ट्रेन चलाते हैं, उनमें हमारे लिए टॉयलेट नहीं होते. कई बार ट्रेन लगातार 3-4 घंटे चलती हैं. इस दौरान टॉयलेट जाना हो, तो बहुत परेशानी हो जाती है. अगला स्टेशन आने तक हम यूरिन रोके रहते हैं. बहुत से मेल लोको पॉयलट पॉलिथीन और बोतल में यूरिन कर लेते हैं और बाहर फेंक देते हैं, लेकिन फीमेल एम्पलाई क्या करेंगी?
दूसरी महिला लोको पायलट कहती हैं कि 'टॉयलेट का प्रेशर तो हम रोक भी लें, लेकिन पीरियड्स में बहुत दिक्कत हो जाती है. वॉशरूम हो तो कम से कम चेंज तो कर सकते हैं. बिना चेंज किए लगातार 8-10 घंटे रहना मुश्किल है. इमरजेंसी में इंजन के अंदर जाकर सैनिटरी नेपकिन चेंज करते हैं. ये है हालत इनकी.
डिस्क्लेमर : इसे लेखक के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है,ये इनके निजी विचार हैं
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