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माइका के कचरे से हर साल होता है 300 करोड़ का कारोबार

Pravin kumar Koderma: अभ्रक की चमक से चमकने वाले झारखंड के कोडरमा की चमक अब फिकी हो गई है. जिला में एक भी वैध अभ्रक खदान नहीं होने के बाद भी अवैध रूप से व्यापार निरंतर चल रहा है. वन क्षेत्र से अभ्रक संग्रह कराने का काम पुराने खदान वाले इलाके में जारी है. इस काम में इलाके के लोगों की अजीविका भी निर्भर है, इस कार्य में पूरा परिवार लगा हुआ है. जिसमें अधिकांश 16 साल के कम उम्र के बच्चे भी शमिल हैं. गौरतलब है कि 1980 के दशक में कोडरमा और गिरिडीह जिले में तकरीबन 750 अभ्रक खदानें संचालित थी. जिसे वन संरक्षण अधिनियम का हवाला देकर बंद कर दिया गया था. अभ्रक खदानें बंद होने से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था चरमरा गई. इसके बाद भी इलाके में अभ्रक कारोबार का अवैध संचालन आज भी हो रहा है. इसे भी पढ़ें - PM">https://lagatar.in/pm-modi-launched-100-lakh-crore-gatishakti-scheme-an-exercise-to-step-towards-self-reliant-india/">PM

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माइका के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है कोडरमा का माइका खदान

कभी माइका के लिए विश्व प्रसिद्ध कोडरमा माइका फिल्ड से माइका करोबार आज भी अवैध रूप से चल रहा है. स्थानीय जानकार नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि माइका के कचरे का प्रतिवर्ष कारोबार 200 से 300 करोड़ में है. उन कचरों को संग्रह कर चूरा तैयार करने का काम जिला में लगभग 30 से 40 स्थानों पर किया जाता है. [caption id="attachment_170559" align="aligncenter" width="600"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2021/10/myca1-600x400.jpg"

alt="माइका के कचरे से हर साल होता है 300 करोड़ का कारोबार" width="600" height="400" /> माइका चुनते खदान के बाहर बैठे ग्रामीण[/caption] जहां पुराने माइंस थे, आज वह बंद हो गये हैं. लेकिन उन स्थानों के साथ-साथ जंगलों से डिबरा चुना जाता है. जिसे स्थानीय व्यापारी 5 से लेकर 20 रूपये प्रति किलो खरीदते हैं. यह कचरा ऐसा कुबेर का खजाना है, जिससे 1980 के बाद से हर साल अनुमानत: 300 करोड़ का व्यापार हो रहा है.

प्रतिवर्ष दो लाख टन माइका का निर्यात होता है विदेशों में

जानकार के मुताबिक, प्रतिवर्ष दो लाख टन माइका का निर्यात विदेशों में है. सरकार भी एक-दो बार इस कचरे के ढेर की निलामी कर इस कारोबार को सैद्धांतिक तौर पर मान्यता दे चुकी है. लेकिन इसके दूसरे पहलुओं पर झांकने से स्पष्ट है कि पूरा कारोबार अवैध उत्खनन से जुड़ा है. जिसमें माफिया, राजनेता, अफसर व अपराधियों का नेक्सस बड़ी भूमिका में है. [caption id="attachment_170560" align="aligncenter" width="600"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2021/10/myca2-600x400.jpg"

alt="माइका के कचरे से हर साल होता है 300 करोड़ का कारोबार" width="600" height="400" /> माइका खदान के पास रहने वाले ग्रामीणों की बस्ती[/caption] कोडरमा, गिरिडीह व बिहार के नवादा जिला के जंगली क्षेत्र में अवैध तरीके से ढिबरा (माइका स्क्रैप) के नाम पर जंगली क्षेत्र में माइका का खनन जबरदस्त तरीके से हो रहा है. एक अनुमान के अनुसार, कोडरमा व बिहार के नवादा के जंगली क्षेत्र में इन दिनों दर्जनों जेसीबी के माध्यम से माइका का अवैध खनन अक्सर किया जा रहा है.

कैसे किया जा रहा है यह खेल

जंगली क्षेत्र से शक्तिमान(ट्रक) व अन्य वाहनों के माध्यम से हजारों टन माइका शहर के गोदामों व फैक्ट्रियों तक लायी जाती है. फिर माइका प्रोसेसिंग होकर विदेशों में निर्यात होता है. वर्तमान में सबसे ज्यादा उत्खनन कोडरमा की जंगली सीमा से सटे बिहार के नवादा जिले के रजौली प्रखंड अंतर्गत सवैयाटांड़ पंचायत व इसके आसपास स्थित फगुनी, सेठवा, सारदा, ललकी आदि स्थानों में बंद पड़े माइका खदानों से हो रहा है. वर्ष 2016 के बाद इन खदानों का लीज नवीकरण नहीं हुआ है. लेकिन माफिया के द्वारा खनन धड़ल्ले से जारी है. इसमें फर्जी चालान का प्रयोग भी जमकर हो रहा है. [caption id="attachment_170561" align="aligncenter" width="600"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2021/10/myca3-600x400.jpg"

alt="माइका के कचरे से हर साल होता है 300 करोड़ का कारोबार" width="600" height="400" /> माइका का बंद पड़ा पुराना खदान [/caption]

क्या है सप्लाई चेन

माइका अवैध कारोबार के जानकार कहते हैं कि दिल्ली, पश्चिम बंगाल और झारखंड के कोडरमा के तस्कारों के द्वारा माइका जो अवैध खनन से प्राप्त होता है, उस माइका को झुमरीतिलैया के दो एक्सपोर्टरों के माध्यम से कोलकाता पोर्ट से विदेशों में भेजा जाता है. अपराधियों का इस कारोबार में परोक्ष रूप से दबदबा है, जो कारोबार में बिचैलिये की भूमिका निभाते हैं. इसे भी पढ़ें - शादी.कॉम">https://lagatar.in/parsudihs-girl-gets-engaged-after-seeing-relationship-with-marriage-com-asks-for-heavy-dowry-accused-of-sexual-abuse/">शादी.कॉम

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