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महालेखाकार ने पकड़ी थी अनियमितता, विभागीय जांच में 11 इंजीनियर पाए गए दोषी, कार्रवाई के बजाए मिल रहा प्रमोशन

Amit Singh Ranchi : स्वर्णरेखा बहुदृदेश्यीय परियोजना इंजीनियरों का चारागाह बना हुआ है. वर्ष 1977 में 129 करोड़ रुपये की लागत से स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना शुरू हुई थी. जिसकी लागत बढ़कर अभी 15 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. 44 साल (1977 से 2021 में अबतक) में परियोजना की लागत 116 गुना बढ़ गयी. परियोजना में अबतक कई अनियमितता उजागर हो चुके हैं. मगर अनियमितता करने वाले दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. जल संसाधन विभाग में इंजीनियरों पर कार्रवाई को लेकर फाइल खुलती है, जो कुछ ही समय में ठंढे बस्ते में चली जाती है. दोषी इंजीनियरों पर कार्रवाई के बजाए विभाग में उन्हें प्रमोशन देकर सम्मानित किया जा रहा है. पिछले दिन ही इस मामले में आरोपी इंजीनियर तत्कालिन सहायक अभियंता अशोक कुमार दास को मुख्य अभियंता बनाया गया. वह भी स्वर्णरेखा परियोजना में ही. जहां अशोक कुमार दास के रहते अनियमितता हुई थी. महालेखाकार कार्यालय रांची द्वारा चांडिल बांयी मुख्य नहर के किलोमीटर 78.567 से नि:सृत ओआर-35 बराजूरी लघु नहर एवं इसके वितरण प्रणालियों की जांच की गई थी. जांच के दौरान निर्माण कार्य में वित्तीय अनियमितता उजागर हुआ. महालेखाकार ने जांच प्रतिवेदन पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया. जिसके बाद जल संसाधन विभाग ने योजना की पुर्नमापी के लिए इंजीनियरों की टीम बनायी. टीम ने जांच में पाया कि स्वर्णरेखा परियोजना में पदस्थापित 11 इंजीनियरों ने मिलकर योजनाबद्ध तरीके से चांडिल बांयी मुख्य नहर निर्माण में अनियमितता बरती है. काम करने वाली एजेंसी को इंजीनियरों ने घाटशिला के काशिदा में 14.80 करोड़ रुपए ज्यादा का भुगतान भी किया है. इसे भी पढ़ें - रूपा">https://lagatar.in/mla-deepikas-outspoken-words-on-roopa-tirkey-case-pankaj-mishra/85159/">रूपा

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दोषी इंजीनियरों के खिलाफ प्रपत्र-क गठित कर कार्रवाई का था आदेश 

स्वर्णरेखा परियोजना के तहत खेतों में पानी पहुंचाने के लिए काशिदा में वर्ष 2006-07 में कलसी बिल्डकॉम रांची की ओर से ओआर 35 व 11 माइनर का निर्माण और मिट्टी का काम किया गया था. लेकिन कुछ ही जगहों पर आधारभूत संरचना का निर्माण किया गया. जांच में टीम ने पाया है कि जमीन पर कम काम कर अधिक राशि का भुगतान ले लिया गया था. उपयोगिता प्रमाण देने के समय काम से ज्यादा भुगतान को लेकर महालेखाकार ने आपत्ति जतायी थी. तब जांच में कैनाल व माइनर्स के निर्माण में गड़बड़ी की पुष्टि हुई थी. जिसके बाद दोषी इंजीनियरों के विरुदृध प्रपत्र-क गठित करने का आदेश दिया था. मगर अबतक किसी भी दोषी इंजीनियर के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है. कई दोषी इंजीनियर सेवानिवृत भी हो गए हैं.

एजेंसी ने कोर्ट से वापस ले लिया था मामला

रघुवर सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2018 में यह मामला तब उठा, जब काम करने वाली एजेंसी बिल भुगतान के लिए न्यायालय में गयी. हालांकि सरकार द्वारा जांच कराने व उचित कार्रवाई के आश्वासन के बाद एजेंसी ने कोर्ट से केस वापस ले लिया था.

इन आरोपी इंजीनियरों के खिलाफ प्रपत्र-क गठित कर कार्रवाई का था आदेश

नाम पदनाम  
हेमंत कुमार तत्कालिन कार्यपालक अभियंता
रमेश कुमार सिंह कार्यपालक अभियंता, सेवानिवृत  
मो. सरफराज कार्यपालक अभियंता, सेवानिवृत  
अशोक कुमार दास तत्कालिन सहायक अभियंता  
गोपाल जी तत्कालिन सहायक अभियंता  
शीतल प्रसाद सिंह कनीय अभियंता, सेवानिवृत
भरत प्रसाद ठाकुर कनीय अभियंता, सेवानिवृत  
अनिल कुमार सिंह तत्कालीन कनीय अभियंता  
लक्ष्मी नारायण पाठक कनीय अभियंता सेवानिवृत  
दयानंद सिंह कनीय अभियंता सेवानिवृत  
जय प्रकाश सिंह तत्कालीन कनीय अभियंता  
अंजनी कुमार तत्कालीन कनीय अभियंता  
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