Adityapur: ‘आसलो मकर खाबो गुड़ पीठा, दीदी गुड़ पीठा तोर बोड़ो मीठा……….’, ‘मकर डुब दिते जाबो संगात, संगे देखा कोरते’ समेत मकर पर्व व टुसु पर्व से संबंधित गीतों की धुन शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में गूंज रही है. जिससे चारों ओर टुसू व मकर संक्रांति पर्व का उत्साह दिखने लगा है. टुसू व मकर झारखंड का एक ऐसा त्योहार है जिसे सभी समुदाय व तबके के लोग उत्साह के साथ मनाते हैं. आदित्यपुर, गम्हरिया, सरायकेला, चांडिल एवं आसपास के क्षेत्रों में टुसू व मकर संक्रांति पर्व 14-15 जनवरी को मनाया जाएगा, जिसकी तैयारी जोरों पर चल रही है.
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चावल धुआ के साथ टुसू पर्व की शुरुआत
12 जनवरी को चाउल धुआ के साथ टुसू पर्व की शुरुआत हो चुकी है. इस दिन घरों में नये अरवा चावल को भिंगोने के बाद लकड़ी की ढेंकी में इसे कूटकर चावल का आटा बनाया गया. फिर इसी आटा से गुड़ पीठा तैयार होगा. 13 जनवरी गुरुवार को बाउंडी पर्व मनाया जाएगा. बाउंडी के मौके पर घरों में विशेष पूजा की जाएगी. इस दिन घरों में गुड़ पीठा बनाकर घर के सभी लोग एक साथ बैठकर पीठा खाएंगे. 14 जनवरी शुक्रवार को टुसू के मौके पर जलाशयों में स्नान करके लोग नये वस्त्र धारण करेंगे.
मेले पर रोक के बावजूद उत्साह में कोई कमी नहीं
मकर संक्रांति को लेकर सभी स्थानीय बाजारों में खरीदारी के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. विशेष कर गुड़- तेल, कपड़े व सौंदर्य प्रसाधन की दुकानों में काफी भीड़ देखी जा रही है. मकर पर्व पर सभी वर्ग के लोग अपने घरों में नये धान के चावल से गुड़ पीठा जरूर बनाते हैं और मकर के दिन आपस में मिलकर प्रसाद के रूप में खाते हैं। हालांकि इस बर्ष कोरोना संक्रमण को लेकर टूडू मेले लगाने पर जिला प्रशासन ने रोक लगा दी है, बावजूद इसके लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही है.
बेटियों के सम्मान का पर्व है टुसू
टुसू पर्व को नारी सम्मान के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. इस पर्व के दौरान कुंवारी कन्याओं की भूमिका सबसे अहम होती है. कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति बनाती हैं. उसकी सेवा-भावना, प्रेम-भावना, शालीनता के साथ पूजा करती हैं. पूजा के दौरान लड़कियां विभिन्न प्रकार के टुसू गीत भी गाती हैं. इसमें कुंवारी लड़कियों की मां, चाची, फुआ, मौसी सहयोग करती हैं. गांवों में मकर संक्रांति से एक माह पहले अगहन संक्रांति से ही टुसू पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती है. करीब एक माह पहले पौष माह से ही टुसू मनी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा होती है. इस दौरान टुसू और चौड़ल (एक पारंपरिक मंडप) सजाने का काम भी होता है. इसे सिर्फ कुंवारी लड़कियां ही सजाती हैं.
गुड़ का पीठा और अन्य खास व्यंजन बनते हैं
टुसू पर्व पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपने घरों में गुड़ पीठा, मांस पीठा, मूढ़ी लड्डू, चूड़ा लड्डू और तिल के लड्डू जैसे खास व्यंजन बनाते हैं. इसमें गुड़ का पीठा सबसे खास होता है. गुड़ पीठा के बगैर टुसू का त्योहार मानो अधूरा रह जाता है. व्यंजनों में विशेष रूप से नारियल को शामिल किया जाता है. जगह- जगह मुर्गा लड़ाई प्रतियोगिता और मेला का आयोजन किया जाता है. हालांकि इस बार कोरोना के कारण मेलों पर रोक है.
टुसू पर्व पर गाये जाते हैं बांग्ला टुसू गीत
टुसू पर्व पर विशेष तौर पर टुसू गीत गाए जाते हैं. टुसू गीत मुख्य रूप से बांग्ला भाषा में होते हैं. टुसू प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए नदी में ले जाते समय टुसूमनी की याद में टुसू गीत गाये जाते हैं. ढोल व मांदर की ताल पर महिलाएं थिरकती हैं. टुसू पर गाये जानेवाले गीतों में जीवन के हर सुख- दुख के साथ सभी पहलुओं को समाहित किया जाता है. ये गीत मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली बांग्ला भाषा में होती है.
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