Ranchi: विधानसभा के स्थापना दिवस समारोह में स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने कहा कि झारखंड विधानसभा ने इस 25 वर्ष की यात्रा में यह सिद्ध किया है कि यहां वाद से अधिक वाद-विवाद को महत्व दिया गया, यहां मतभेद रहे, परंतु मनभेद नहीं होने दिया गया, यहां नीतियां बनीं, परंतु हमेशा जनता की राय को सर्वोपरि रखा गया, यहां विधान सिर्फ कागज पर नहीं रहा वह गांवों की गलियों और खेतों की मेड़ों तक पहुंचा. लोकतंत्र का अर्थ यह नहीं कि सरकारें बदलें. लोकतंत्र का अर्थ यह है कि विश्वास बदलें, व्यवहार बदलें, जवाबदेही बदले.
सत्ता, संतुलन, समन्वय और संवेदना भी
हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में विधानसभा वह स्थान है जहां सत्ता भी है, संतुलन भी है, समन्वय भी है और संवेदना भी है. झारखंड विधानसभा इसी संतुलित शासन-व्यवस्था का एक उज्ज्वल उदाहरण है.
जनता का विश्वास कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं-यह एक निरंतर अर्जित होने वाली उपलब्धि है. हमारी पांच विधानसभाओं की यात्रा में जनता न हमेशा इस संस्था पर भरोसा किया.
सरकारी निर्णयों में सामाजिक न्याय को सर्वोच्च रखें
भारतीय लोकतंत्र की यही विशेषता रही है कि वह सदैव बदलते समाज के अनुरूप विकसित होता रहा है. हमारा कर्तव्य है कि हम- तकनीकी परिवर्तन को स्वीकार करें, पारदर्शी और डिजिटल व्यवस्था अपनाएं, जनभागीदारी को बढ़ाएं और सरकारी निर्णयों में सामाजिक न्याय को सर्वोच्च रखें.
15 नवंबर 2000 को झारखंड को न केवल प्रशासनिक पहचान मिली थी बल्कि हमारे सांस्कृतिक, संस्कृति और अस्मिता की छाप और प्रबल हुई थी. सरकारी निर्णयों में सामाजिक न्याय को सर्वोच्च रखना चाहिए.
दिशोम गुरु शिबू सोरेन एक आंदोलन थे
दिशोम गुरु को केवल एक राजनेता कहना उनके विराट व्यक्तित्व और योगदान का संकुचन होगा. वे- एक आंदोलन थे, एक संस्कृति थे. एक चेतना थे. उन्होंने झारखंडी अस्मिता को आवाज दी, जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा को संघर्ष का आधार बनाया, आदिवासी मूलवासी समाज में समानता, स्वाभिमान और संगठन का बीज बोया. उनके 19 सूत्री शिक्षा, सामुदायिक खेती, महिला जागरण, पशुपालन, पुस्तकालय, शराबबंदी, जंगल की रक्षा. बाल विवाह एवं दहेज-निषेध, सामाजिक सुधार की परपरा.
आज भी झारखंड के समतामूलक विकास का आधार हैं. वे कहते थे- 'जनता मालिक है, जनप्रतिनिधि केवल सेवक. यह कथन हमारे लोकतंत्र की आत्मा है. शिबू सोरेन के साहस और बलिदान ने झारखंड की परिकल्पना को साकार किया है. आज का दिन झारखंड की लोकतांत्रिक चेतना का ऐतिहासिक उत्सव है.
संघर्ष, स्वाभिमान और सांस्कृतिक अस्मिता की भूमि है झारखंड
झारखंड वह राज्य है, जहां संस्कृति, संघर्ष और सामूहिक आत्मा का समन्वय सदियों से होता आया है. इस पावन धरती ने ऐसी विभूतियां जन्म दीं, जिनके व्यक्तित्व और विचारों ने पूरे भारत को दिशा दी- भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धों-कान्हों, फूलो-झानो, तिलका मांझी, लीलांबर-पीतांबर, शेख भिखारी, गणपत राय, टिकैत उमराव सिंह और अनेक अन्य जननायक, जिनकी चेतना आज भी जनमानस में धड़कती है.
झारखंड का इतिहास बताता है कि यहां का संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं था, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समानता के लिए एक सतत पुकार थी. सबको साथ लेकर चलने की इसी सोच ने झारखंड राज्य आंदोलन को एक जन-आंदोलन का स्वरूप दिया.
शिक्षा ऐसी हो जो हमारे बच्चों को विश्वस्तरीय ज्ञान दे
शिक्षा ऐसी हो जो हमारे बच्चों को विश्वस्तरीय ज्ञान दे. स्वास्थ्य ऐसा हो जो दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों तक समान पहुंच बनाए. रोजगार ऐसे हों जो युवाओं को समान अवसर दें. जनजातीय-सांस्कृतिक संरक्षण ऐसा हो जो हमारी पहचान को और मजबूत करे. पर्यावरण संरक्षण ऐसा हो जो आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित प्रकृति दे.
सड़क, उद्योग, आइटी, कृषि, सभी क्षेत्रों में ऐसा समन्वय हो कि झारखंड राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मॉडल राज्य के रूप में उभरे. हम इस विधानसभा से यही संदेश देते हैं- हम राजनीति से ऊपर उठकर नीति को प्राथमिकता देंगे. हम दल से ऊपर उठकर राज्य के हित को प्राथमिकता देंगे और हम व्यक्तिगत मतभेदों से ऊपर उठकर सामूहिक लक्ष्य को प्राथमिकता देंगे.
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