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आदिवासी महिलाओं से विवाह कर, गैर-आदिवासी पुरुष उठा रहे हैं आरक्षण व राजनीति का लाभ

Basant Munda

Ranchi: झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है, जहां संवैधानिक रूप से अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करने की दिशा में लगातार कार्य हो रहा है. लेकिन वर्तमान परिदृश्य चिंताजनक होता जा रहा है. कुछ गैर-आदिवासी पुरुष आदिवासी महिलाओं से विवाह करके न केवल सामाजिक संरचना से खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि आरक्षण और राजनीतिक व्यवस्था का भी लाभ उठा रहे हैं.


आदिवासी महिलाओं की शिक्षा, आत्मनिर्भरता और राजनीतिक भागीदारी में बढ़ती उपस्थिति निश्चित रूप से एक सकारात्मक संकेत है. लेकिन साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि कुछ गैर-आदिवासी पुरुष, विवाह को माध्यम बनाकर इस व्यवस्था में सेंध लगा रहे हैं. इन विवाहों में प्रेम या समानता की भावना कम, और राजनीतिक, आर्थिक तथा भूमि अधिकारों पर लाभ उठाने की मंशा अधिक प्रतीत होती है.


केस 1: पूर्वी पंचायत, रातु :  यह पंचायत अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. बीते दस वर्षों से यहां की मुखिया एक आदिवासी महिला हैं. लेकिन उनके पति, जो साहू समुदाय से हैं, पंचायत के सारे कार्यों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करते हैं. इस प्रकार आदिवासी समुदाय के अधिकारों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण गैर-आदिवासी व्यक्ति का हो गया है.


केस 2: पश्चिमी पंचायत, रातु अंचल :  यहां भी एक गैर-आदिवासी पुरुष ने आदिवासी युवती से विवाह कर उसे पंचायत चुनाव में खड़ा किया और जिताया. पंचायत में खर्च हो रही करोड़ों रुपये की सरकारी राशि का संचालन उस पुरुष द्वारा किया जा रहा है. इससे आदिवासी समाज के लिए आरक्षित प्रतिनिधित्व वास्तविक रूप में उन्हें नहीं मिल पा रहा है.


केस 3: फुटकल टोली पंचायत : यहां एक मुस्लिम युवक ने आदिवासी युवती से विवाह कर उसे इस्लाम धर्म में परिवर्तित कराया. चुनाव में पूरा मुस्लिम समुदाय संगठित होकर महिला को जितवाता है और बाद में पंचायत के सभी निर्णय उसका पति लेता है. इस तरह आदिवासी समाज राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा है.

 

आदिवासी समाज के सामने सामाजिक और सांस्कृतिक खतरा


जनजाति सुरक्षा मंच के सदस्य मेघा उरांव का कहना है कि यह अब केवल व्यक्तिगत संबंधों का मामला नहीं रह गया है, बल्कि आदिवासी महिलाओं की स्वतंत्र पहचान, सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों और आरक्षण की मूल भावना पर गंभीर चोट है. झारखंड के आदिवासियों के अधिकारों पर गहरा संकट मंडरा रहा है और सरकार को इस दिशा में तत्काल ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.

 

आदिवासी समाज की प्रमुख मांगें


•    ऐसे मामलों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए.
•    आदिवासी महिलाओं से विवाह करने वाले गैर-आदिवासी पुरुषों द्वारा पंचायत या किसी सरकारी लाभ के दावों पर रोक लगाई जाए.
•    आरक्षित पंचायत क्षेत्रों में पारिवारिक या बाहरी नियंत्रण की भूमिका की समीक्षा की जाए.
•    आदिवासी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक पृथक निगरानी समिति का गठन किया जाए.