Ranchi : दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, रांची में गाजरघास जागरूकता सप्ताह के अवसर पर किसानों और छात्रों के लिए एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया. यह कार्यक्रम ICAR-निर्देशालय खरपतवार अनुसंधान, जबलपुर और ICAR-ATARI, ज़ोन-IV के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ. कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनोज कुमार सिंह (कृषि वैज्ञानिक) द्वारा किया गया.
गाजरघास क्यों है खतरनाक
कार्यक्रम में डॉ. सिंह ने गाजरघास (Parthenium hysterophorus) को एक बेहद हानिकारक खरपतवार बताया. उन्होंने इसके दुष्प्रभावों को चार प्रमुख वर्गों में समझाया .गाजरघास के संपर्क में आने से खुजली, एलर्जी, दमा, नाक में जलन और आंखों की समस्या हो सकती है.
यह घास जानवरों में चर्म रोग, भूख की कमी और दूध उत्पादन में गिरावट जैसी समस्याएं उत्पन्न कर सकती है.
यह खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्व सोख लेता है, जिससे फसलों की पैदावार घटती है.
यह स्थानीय घास और पौधों को नष्ट कर देता है, जिससे जैव विविधता पर नकारात्मक असर पड़ता है.
कार्यक्रम में किसानों और छात्रों को गाजरघास से छुटकारा पाने के सरल लेकिन प्रभावी उपाय भी बताए गए:
फूल आने से पहले गाजरघास को जड़ समेत उखाड़कर नष्ट करें
खेत की गहरी जुताई करें
ज़रूरत पड़ने पर 2,4-D या ग्लाइफोसेट जैसे रासायनिक शाकनाशियों का उपयोग करें
जैविक नियंत्रण के लिए मेक्सिकन बीटल का इस्तेमाल करें
चकवढ और जंगली चौलाई जैसी झाड़ियाँ लगाकर इसके प्रसार को रोका जा सकता है
नियंत्रित उपयोग से मिल सकते हैं फायदे
डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि यदि गाजरघास का संतुलित और नियंत्रित तरीके से उपयोग किया जाए, तो इससे कई लाभकारी उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं
कम्पोस्ट खाद
बायोगैस
कागज और कार्डबोर्ड
जैविक कीटनाशक
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