Shailesh Singh: पश्चिमी सिंहभूम जिले के नक्सल प्रभावित सारंडा जंगल स्थित छोटानागरा पंचायत के अधिकतर गांव इन दिनों चेचक जैसी बीमारी की चपेट में हैं. एक तरफ कोरोना ने पूरे देश व सारंडा क्षेत्र में विकराल रूप धारण किया हुआ है इसी बीच चेचक भी डरावना रूप लेता जा रहा है.
इसे भी पढ़ें: कोरोना का भय : सारंडा के जामकुंडिया गांव में छह घरों को बनाया गया है क्वारेंटाइन हाउस
कोरोना जैसे लक्षण के बाद पूरे शरीर में फुंसी-फोड़ा हो रहा
जोजोगुटू गांव के बच्चे व ग्रामीण इसकी चपेट में सबसे ज्यादा हैं. ग्रामीणों को कोरोना जैसे ही लक्षण अर्थात सर्दी, खांसी, बुखार, बदन दर्द के बाद पूरे शरीर में छोटा-बड़ा फुंसी-फोड़ा हो जा रहा है. ग्रामीण इसे चेचक मान नीम पत्ता आदि से घरेलू इलाज कर रहे हैं. गांव में चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है. जोजोगुटू गांव से छोटानागरा अस्पताल की दूरी लगभग तीन किलोमीटर है लेकिन वहां चिकित्सक हमेशा उपलब्ध नहीं रहते हैं. ऐसे में जरूरत है गांवों में विशेष चिकित्सा शिविर लगा कर सभी संक्रमित लोगों का जांच कर जरूरी दवाइयां देने की.
गांव में 150 परिवार में 700 की आबादी
जोजोगुटू गांव के मुंडा कानूराम देवगम, मानसिंह चाम्पिया आदि ने बताया कि गांव में लगभग 150 परिवार रहते हैं व कुल आबादी 700 के करीब है. इसमें लक्ष्मण सुरीन, बेलो सुरीन, जीरा सुरीन, सामू सुरीन, चुम्बरु सुरीन, अनीत सुरीन, मुंगडू़ सुरीन, लक्ष्मण देवगम, पिंकी सुरीन आदि दर्जनों बच्चों व पुरुष-महिलाएं चेचक के लक्षण से संक्रमित हैं. उन्होंने कहा कि चेचक व कोरोना दोनों बीमारी एक-दूसरे के संपर्क में आने से फैलती है. ग्रामीणों के पास एक या दो कमरे की झोपड़ी होती है जिसमें पूरा परिवार एक साथ रहते, खाते व सोते हैं. हम इस बीमारी से ग्रसित लोगों को चाहकर भी ठंड के मौसम में अलग कमरे में आईसोलेट नहीं कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास अतिरिक्त कमरा व अन्य सुविधा नहीं है. यहीं कारण है कि यह बीमारी पूरे गांव व क्षेत्र में फैल रही है.
अस्पताल दूर है, आवागमन की असुविधा, चिकित्सा शिविर लगाने की जरूरत
उल्लेखनीय है कि सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु जेनरल अस्पताल में सारंडा के गांवों के ग्रामीणों के लिये मुफ्त चिकित्सा की सुविधा है. सिर्फ उन्हें अपने-अपने गांवों के मुंडा-मानकी या पंचायत प्रतिनिधि से सत्यापन करा तथा अपना आधार कार्ड की छाया प्रति साथ लानी होती है. इसके बावजूद लोग कोरोना के लक्षण के बावजूद जांच नहीं करा रहे हैं. इसकी मुख्य वजह सारंडा के सुदूरवर्ती गांवों से अस्पताल की दूरी 20-50 किलोमीटर तथा आवागमन की कोई सुविधा का नहीं होना है. सरकार की स्वास्थ्य विभाग की टीम वैक्सीनेशन कार्यक्रम सिर्फ सारंडा के शहरी क्षेत्रों में चला रही है. जबकि उन्हें बीमारी से प्रभावित गांवों में चिकित्सा शिविर लगाने की जरूरत है जो धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा है.