Ranchi : झारखंड में एक बार फिर सरना झंडा के विवाद ने तूल पकड़ लिया है. झारखंड सामाजिक कार्यकर्ता निशा भगत ने कहा कि सरना झंडा का राजनीतिक और धार्मिक गलत इस्तेमाल हो रहा है. जो आदिवासी सरना समाज की पारंपरिक, आस्था, संस्कृति और पहचान पर सीधा हमला हो रहा है.
बुधवार को प्रेस क्लब में मिडिया को संबोधित करते हुए कहा कि सरना झंडा आदिवासियों का प्रतीक चिन्ह नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समाज की आस्था से जुड़ा है. इसे पाहन द्वारा पूजा पाठ से आदिवासियों के धार्मिक स्थल पर स्थापित किया जाता है. जो आदिवासियों के सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा पवित्र झंडा है. लेकिन आज इसे राजनीतिक हथियार बना दिया जा रहा है.
झंडा उखाड़ने और कहीं भी गाड़ने की घटनाएं सरना समाज के साथ अन्याय हैं, निशा भगत ने खुली चुनौती दी है कि सरना झंडा का उपयोग जमीन लूटने, गंदगी वाली स्थान, जैसे स्थानों पर नहीं स्थापित किए जायेंगे. क्योंकि ये सरना झंडा आदिवासियों के आस्था और पंरपरा का प्रतीक चिन्ह है.
गंदगी के अंबार पर स्थापित किए गए थे सरना झंडा
प्रेस क्रॉफ्रेंस के माध्यम से कहा गया कि ईसाई समुदाय द्वारा बिरसा मुंडा समाधि स्थल के सामने बना कचरा पर 26 जुलाई को सरना झंडा स्थापित किया गया था. इसकी शिकायत लालपुर सरना समिति के लोगों के आवेदन पर सामाजिक कार्यकर्ता निशा भगत, हर्षित मुंडा, राजु मुंडा स्थल पर पहुंचे थे.
इसे पारंपरिक पूजा-पाठ और विनती के माध्यम से गंदगी के अंबार से हटाया गया है, लेकिन इसे आदिवासी नेता जानबूझकर आदिवासी समाज को तोड़ने का प्रयास कर रहे है.
लेखक पौलुस कुल्लु की किताब पर लिखी गई है आपत्ति जनक : निशा भगत
निशा भगत ने कहा कि लेखक पौलुस कुल्लु की किताब खडिया धर्म और संस्कृति के विश्लेषण में आदिवासी सरना समाज पर परंपरा पर पेज नम्बर 205 में गलत व्याख्या किया गया है. आदिवासी समाज की भाई बहन की करम पर्व पर होने वाली नृत्य पर आपत्ति जनक लिखा है. यह समाज को नीचा दिखाने का प्रयास किया गया है.
धर्म बदल चुके आदिवासी समाज उठा रहे है सरना समाज का आरक्षण
निशा भगत ने कहा कि वर्ष 2017 में धर्मांतरण रोकने के लिए कानून पारित किया गया था, पर अब भी पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्रों में आदिवासी समाज को ठगा जा रहा है. जो धर्म बदल चुके हैं, वे आज भी आदिवासी आरक्षण और सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं.
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