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भाकपा माओवादी के सेंट्रल कमिटी के सदस्य पूर्णेंदु मुखर्जी का निधन, माओवादियों ने दी श्रद्धांजलि

Ranchi : भाकपा माओवादी के सेंट्रल कमिटी के सदस्य पूर्णेंदु मुखर्जी(75 वर्ष) का कोलकाता में निधन हो गया. पूर्णेंदु मुखर्जी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज से पीड़ित थे. मुखर्जी को साल 2011 में बिहार से अन्य केंद्रीय समिति के सदस्यों वाराणसी सुब्रह्मण्यम, विजय कुमार आर्य और जगदीश मास्टर के साथ गिरफ्तार किया गया था. साल 2015 में जमानत पर जेल से बाहर निकले थे. केंद्रीय कमेटी भाकपा माओवादी के प्रवक्ता अभय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पूर्णेन्दु मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित किया है. इसे भी पढ़ें -  महाराष्ट्र">https://lagatar.in/ed-issues-look-out-notice-to-former-maharashtra-home-minister-anil-deshmukh/">महाराष्ट्र

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नक्सलबाड़ी पीढ़ी के एक वरिष्ठ माओवादी क्रांतिकारी को खो दिए

अभय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि हमारे बीच ऐसी वातावरण संचार है, कि हमें कुछ ही दिनों में हमारी पार्टी के स्थापना वर्षगांठ समारोह को आयोजित करने वाले हैं. ऐसे में हमें बहुत ही दुखद खबर सुनना पड़ रहा है. हाल में ही हमारी केंद्रीय कमेटी के युवा सदस्य और तेलंगाना राज्य कमेटी के सचिव यापा नारायण की शहादत की खबर से अभी संभल नहीं पायें हैं कि हमने कॉमरेड पूर्णेन्दु मुखर्जी को खो दिया. पार्टी की केंद्रीय कमेटी क्रांतिकारी श्रद्धा सुमन अर्पित करती है. उनका निधन से भारतीय क्रांति ने नक्सलवाड़ी पीढ़ी के एक वरिष्ठ माओवादी क्रांतिकारी को खो दिया. इससे हमारी पार्टी के लिए गंभीर क्षति हुई है. इसे भी पढ़ें - खुशखबरी">https://lagatar.in/good-news-those-75-years-or-above-will-not-have-to-file-itr-get-exemption/">खुशखबरी

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भूमिगत जीवन को त्याग दिया था

2015 में जमानत पर रिहा होने के बाद से मुखर्जी ने अपने भूमिगत जीवन को त्याग दिया था और दक्षिण कोलकाता के बांसड्रोनी इलाके में सार्वजनिक रूप से रह रहे थे. हालांकि, पुलिस को संदेह था कि उन्होंने पार्टी के साथ कभी संपर्क नहीं खोया. मुखर्जी अविवाहित थे और मृत्यु के बाद अपना शरीर दान करना चाहते थे.  वे यह सुनिश्चित करने के लिए कोलकाता में सरकारी अस्पतालों के संपर्क में थे. उनका शरीर चिकित्सा अनुसंधान उद्देश्यों के लिए दान किया जाये. मुखर्जी पहली पीढ़ी के नक्सलियों में से एक थे जो 1960 के दशक के अंत में आंदोलन में शामिल हुए और 1969 में अपनी स्थापना के समय से ही माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) का हिस्सा बने थे. उन्होंने वरिष्ठ माओवादी नेताओं सुशील रॉय (उर्फ बरुन दा) और प्रशांत बोस (उर्फ किशन दा) के साथ निकट समन्वय में काम किया. इसे भी पढ़ें - मजिस्ट्रेट">https://lagatar.in/the-clerk-alerted-on-asking-for-information-about-the-movement-of-the-magistrate-immediately-informed-the-police/">मजिस्ट्रेट

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